डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
आवाज़, रफ़ीक़ा होती है रूह की और रह जाती है, ठहर जाती है, हमेशा के लिए, उसी की तरह, उसी के साथ| कभी लम्हात का बयान बन कर तो कभी यादों का तरन्नुम बन कर, आवाज़ ही पहचान बनती है और यही पहचान याद...
आनंद आर. द्विवेदी | Editorial Desk
दुनिया के कुछ बेहतरीन अदाकारों में शुमार रखने वाले इरफ़ान खान अब हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी कालजयी अभिनीत फ़िल्मों में और हमारे ज़हन में हमेशा जिंदा रहेंगे।
राजस्थान के टोंक जिले के टायर व्यवसायी जागीरदार खान और बेग़म खान के घर 7 जनवरी...
एंटरटेनमेंट डेस्क | Navpravah.com
फिल्म अभिनेता इरफान खान का बुधवार को निधन हो गया। मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में इरफान खान ने 54 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। इरफान लंबे वक्त से बीमार थे और पिछले दिनों उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। दिग्गज कलाकार के जाने...
डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
1947 हमारे मुल्क की आज़ादी के साथ, उसके तक़सीम होने का भी साल है| कुछ नया बना पाने की उम्मीदों के साथ, कुछ पुराना खो जाने का भी साल है, दिलों के अंदर तूफ़ान भरने का भी साल है, सरहदों और सियासत के आगे,...
डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
अपना मुस्तक़बिल नामालूम हो, कुछ फ़ासले के बाद वक़्फ़ा हो और हर वक़्फ़े में थोड़ा सुकून और थोड़े मुश्क़िलात हों, कुछ शजर के साए भी मिलें, कुछ धूप भी, तब सफ़र यादगार बन जाता है और मुड़ कर देखने पर लगता है, ख़ूब...
एंटरटेन्मेंट डेस्क । navpravah.com
कोरोना वाइरस से जीत चुकी पार्श्व गायिका कनिका कपूर ने अन्य मरीज़ों के लिए अपना प्लाज़्मा डोनेट करना चाहती हैं। लखनऊ के केजीएमयू अस्पताल के अधिकारियों ने ये जानकारी दी कि कनिका ने अपना प्लाज्मा डोनेट करने की पेशकश की है। कनिका हाल ही में अस्पताल...
डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
छोटे शहर बहुत प्यारे होते हैं, उनमें रहना चाहिए, लेकिन एक वक़्त आने पर, उन्हें छोड़ भी देना चाहिए| छोटे शहर, इंसान को छोटी बातों का मतलब समझाते हैं और हर छोटी चीज़ के लिए, शुक्रगुज़ार होना भी सिखाते हैं| छोड़ इसलिए देना...
डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
गुज़रने के बाद भी अगर हयात में ठहरना हो, किसी के दिल तक जाना हो, कोई बात भूलनी हो या किसी को हर रोज़ याद आना हो, ज़रिया एक है, एक ही सूरत निकलती है, किसी पन्ने पर अश'आर बन के ठहर जाना,...
डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
शमा का काम ही होता है नूर बांटना और सहर होते ही ग़ैब में शरीक़ हो जाना|जो टिमटिमाते हैं रात भर जो सितारों की तरह, महफ़िल में, वो बताते भी नहीं कि रोशनी किसने दी उन्हें, न ही ख़ैरियत पूछते हैं, उस ग़ायब...
डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
1942 का साल था, दूसरी जंग-ए-अज़ीम के शोलों से, दुनिया जल रही थी और हिन्दुस्तान में क्रिप्स मिशन नाकामयाब हो चुका था, लगभग सभी बड़े नेता जेलों में बंद कर दिए गए थे और "भारत छोड़ो" के नारे से हर गली गूंज रही...