डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
बीत चुका ज़माना अपनी ख़ूबियों को, अगले ज़माने में ज़ाहिर कर सकने का ज़रिया बना कर ही गुज़रता है और अगली नस्लें, अगर ज़हीन होती हैं, तो समेट लेती हैं नेअमत को और जो भूल जाती हैं अपने जड़ों को और बेख़बर होती...
डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
"आसाइश मयस्सर न हुई हयात में
मसायल, महशर को मुकर्रर किया है मैंने"
-विमलेन्दु
पूछना मुनासिब नहीं जान पड़ता और बमुश्किल ज़िंदगी गुज़र रही होती है तो आसरा उम्मीदों पर ही होता है| उम्मीद कमसिन ही मरते हैं, अगर मंज़ूर नहीं होती दुआएं या ग़ैरत का...
डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
"नफ़ाज़ हुआ है हुक्म लम्हात का
मुंतज़िर रहो सहर होने तक"
-विमलेन्दु
लम्हा लम्हा गुज़रते हुए, एक गुज़ारिश करता है कि वाहिद वही है और आगे नहीं होगा, जी लिए जाने की दरख़्वास्त करता है और जो जी लेते हैं शाम होने के पहले, हाज़िरीन-ए-महफ़िल, उन्हीं...
डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
ज़िंदगी गुज़र जाती है, दाम-ए-ख़्वाहिश में उलझते निकलते और फिर एक शाम यकीन हो जाता है कि अगली सहर भी कुछ नए उस्लूब की सिफ़ारिश करती हुई आएगी और शिकायत करती हुई जाएगी| कुछ ऐसे भी शख़्स होते हैं जो शाम-ओ-सहर, ज़िंदगी बसर...
डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
"रग़बत ही न थी हदों के पैमाइश की हमें
इश्क़ था या होना बेज़ार, खूब किया जो भी किया"
- विमलेन्दु
तख़सीस इतनी ज़्यादा कि छुप न सकें, नूर ऐसा कि दीदाबाज़ी को जी चाहे, आवाज़ ऐसी कि नाहीद भी खामोश हो और इन सब...
डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
"हस्ती अपनी हुबाब की सी है
ये नुमाइश सराब की सी है"
- मीर
इस फ़ानी दुनिया में ख़ूबसूरती एक खु़लूक़ की तरह, उम्र के साथ गुज़र जाती है और रह जाती हैं यादें , माज़ी की। मुन्कज़ी साल मसलसल आँखों में ख़्वाबों की तरह भरते...
डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
"इश्क़ में गुफ़्तगू मुझको,
सहल रही तब तक
मतले से मक़ते के दरम्यां,
ग़ज़ल रही जब तक|"
-विमलेन्दु
"क़सीदा" से शुरू होकर "ग़ज़ल" बन जाने तक, अल्फ़ाज़ों का सफ़र बेहद दिलचस्प है और ग़ज़लों का ज़िंदगी में, इस क़दर शामिल हो जाने का क़िस्सा भी|
अरब के देशों से...
डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
"ये तवह्हुम का कारखाना है
यां वही है जो ऐतबार किया"
-मीर
ज़िन्दगी जब जश्ने अज़ीम की तरह गुज़रे और हर वक़्फ़े में खुसूसियत आपका आक़िब हो, आप से रोशन हो, सब जो दूर हो या जिसको आपकी क़ुरबत नसीब हो, तब भी वहम को नमूदार...
डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
"कभी हम में तुम में भी चाह थी
कभी हम से तुम से भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आश्ना
तुम्हें याद हो कि न याद हो"
- मोमिन
कुछ शक़्लें, कुछ अंदाज़ और कुछ आवाज़े, इस क़दर ज़िंदगी में शामिल हो जाती हैं कि...
डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
"कोई दम का मेहमां हूं ऐ अह्ले महफ़िल
चिराग़े सहर हूं, बुझा चाहता हूं
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बेअदब हूं, सज़ा चाहता हूँ"
-इक़बाल
जब अपनी ही आवाज़ के मायने नग़्मापरदाज़ी से बदल कर दिलख़राश मामलों में उलझ जाए और भीड़ में खो...