नलिनी मिश्रा | navpravah.com
कविता –
शहरों को यूँ ही बदनाम किया है,
ना जाने कितनी संस्कृतियों को
अपने आँचल में बसा रखा है।
यहाँ जात-पात का बंधन कम हुआ है,
इंसानियत के रंग में रंगा हर चेहरा है।
गाँव की मिट्टी भी अब शहर की सड़कों पर चलती है,
खेतों की खुशबू यहाँ की हवाओं में भी पलती है।
नौकरी की तलाश में गाँव से जो आते हैं
शहर उन्हें अपने दिल में जगह देता है।
संघर्ष के रास्ते यहाँ आसान नहीं,
पर सपनों को उड़ान यही शहर देता है।
महिलाएँ भी अब आगे बढ़ रही हैं,
शहर की रफ्तार से कदम मिलाकर चल रही हैं।
नया भारत, जो गाँव से उठकर आया है,
शहर ने उसे अपने रंग में रंग लिया है।
शहर सिर्फ इमारतों का नाम नहीं,
यहाँ गाँव की आत्मा ने भी घर बना रखा है।
शहर ने भारत को अपनाया है,
और उसे नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है।