डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
शमा का काम ही होता है नूर बांटना और सहर होते ही ग़ैब में शरीक़ हो जाना|जो टिमटिमाते हैं रात भर जो सितारों की तरह, महफ़िल में, वो बताते भी नहीं कि रोशनी किसने दी उन्हें, न ही ख़ैरियत पूछते हैं, उस ग़ायब शमा की| फिर रिवाज़ चलता है और हर शबकी सहर होती है और धीरे-धीरे, कोई आवाज़ नहीं बुलाती उन्हें, जो लुटा गए, महफ़िल में अपना नूर| गेविन पैकार्ड नाम था उस शमा का|
गेविन, 1964 में, कल्याण, महाराष्ट्र में पैदा हुए| इनके पिता कंप्यूटर के जानकार थे और उस ज़माने में, ये बहुत बड़ी बात थी| गेविन के दादा जो कि अमरीकी सेना में आधिकारी थे, एक बार भारत आए और यहीं के हो कर रह गए|
गेविन का परिवार संपन्न था और उन्हें स्वतंत्रता थी, अपना करियर चुनने की| उन्होंने बॉडी बिल्डिंग को चुना और जल्दी ही राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिताएं जीतने लगे| ऐसी ही किसी प्रतियोगिता में, केरल के कुछ फ़िल्म निर्माताओं ने इन्हें देखा और एक मलयालम फ़िल्म, “आर्यन” में उन्हें एक रोल दिया|
ये 1988 की बात है| उन दिनों, बॉब क्रिस्टो और टॉम आल्टर के अलावा कोई विदेशी सा दिखने वाला और अच्छी हिंदी बोलने वाला नहीं था और ऐसे किरदारों की ज़रूरत बनी रहती थी उन दिनों, तो बहुत दिन तक गेविन, हिन्दी फ़िल्म की दुनिया से छिपे न रह सके| अगले ही साल, राजू मवानी की फ़िल्म ,”इलाका” आई| उसमें भी इनको काम मिला और इसके बाद लगातार छोटे-छोटे रोल इन्हें मिलते रहे|
“इलाका”, 1989 में आई थी और इसमें संजय दत्त थे जो कि नशे की लत से बाहर आए थे और बाहर लाने वाले थे गेविन| इन्होंने संजय दत्त को जिम में इतना मसरूफ़ कर दिया कि संजय दत्त जब “इलाका” में दिखे तो उनके बॉडी की ख़ूब तारीफ़ हुई और वो नशे से दूर होने लगे| अब जब संजय दत्त पर बायोपिक बनी, गेविन का कोई ज़िक़्र भी नहीं उस फ़िल्म में|
1989 में ही, दूरदर्शन पर “इन्द्रधनुष” एक साइंस फ़िक्शन पर आधारित धारावाहिक दिखाया गया और इसमें, करन जौहर, उर्मिला मतोंडकर और आशुतोष गोवारिकर ने भी काम किया था| गेविन भी इसमें थे| इसके बाद 90 के दशक में ये बहुत सारी फ़िल्मों में, कभी गुंडे तो कभी फ़ाईटर के रूप में नज़र आए| इसी दौर में इन्होंने सुनील शेट्टी औ सलमान खान के बॉडीगार्ड, शेरा को भी ट्रेनिंग दी|
“गेविन की दो बेटियाँ हैं, एरिका और कैमिले. इनकी पत्नी से इनका तलाक़ हो चुका था और ये अपने भाई डैरिल के पास वापस कल्याण आ गए| गेविन रोज़ शाम अपने भाई से फ़िल्मों की बातें करते और अपने दोस्तों को याद करते. उनकी तबीयत, ख़राब होती जा रही थी और सांस लेने में तकलीफ़ बढ़ती जा रही थी”
2002 में डेविड धवन की फ़िल्म,”ये है जलवा” के बाद ख़राब तबीयत की वजह से वे एकदम ग़ायब हो गए, फ़िल्मी दुनिया से| वे संजय दत्त और सुनील शेट्टी को अच्छा करता देख बहुत ख़ुश होते थे|
2012 में मई के महीने में एक दिन गेविन सोए और फिर कभी न उठे| बांद्रा के सेंट एंड्रयूज़ कब्रिस्तान में उन्हें दफ़ना दिया गया| उनका कोई फ़िल्मी दोस्त उस दिन वहां मौजूद न था|
नोट: बहुत बार फ़िल्मों की कास्टिंग लिस्ट में इनका नाम, “केविन” भी लिख दिया जाता था जो कि सही नहीं है|
(लेखक जाने-माने साहित्यकार, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)