डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
ज़िंदगी गुज़र जाती है, दाम-ए-ख़्वाहिश में उलझते निकलते और फिर एक शाम यकीन हो जाता है कि अगली सहर भी कुछ नए उस्लूब की सिफ़ारिश करती हुई आएगी और शिकायत करती हुई जाएगी| कुछ ऐसे भी शख़्स होते हैं जो शाम-ओ-सहर, ज़िंदगी बसर करते हैं और पोशीदा रखते हैं अपनी हसरतें, क्योंकि जो मिल रहा होता है उसे मुक़द्दर मान कर इंतज़ार करते हैं वे, मुफ़ीद वक़्त आने का| जलाल आग़ा की ज़िंदगी और उनके मिज़ाज के बारे में कहना भी ऐसी ही दिलचस्प क़िस्सागोई होगी|

इनकी पैदाइश, 1945 में हुई और इनके वालिद उस दौर के मशहूर कॉमेडियन, आग़ाजान बेग थे, जिन्हें फ़िल्मी दुनिया में आग़ा के नाम से जाना जाता था| जलाल, इकलौते बेटे थे और बहुत ही ज़हीन थे|
इन्होंने शुरूआत की, बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट और फ़िल्म का नाम था , “मुग़ल-ए-आज़म”| इस फ़िल्म में इन्होंने, शहज़ादा सलीम(दिलीप कुमार) के बचपन का किरदार बख़ूबी निभाया| FTII, पुणे से इन्होंने एक्टिंग की तालीम ली और 1967 में इन्हें ख़्वाजा अहमद अब्बास की फ़िल्म, “बम्बई रात की बाहों में” में काम मिला और तब से 90 के दशक के शुरूआती सालों तक ये काम करते रहे| इन्होंने लगभग 60 फ़िल्मों में छोटे बड़े किरदार निभाए|
“इनके रोल फ़िल्मों में, बहुत बड़े तो नहीं थे लेकिन इनका स्क्रीन प्रेज़ेस इतना ज़बरदस्त था कि एक नज़र में ही ये दिल और दिमाग में चस्पा हो जाते थे| मसलन, फ़िल्म, “शोले”, में हाथों में रूबाब बजाते हुए, “महबूबा ओ महबूबा”, या “घर घर की कहानी” में, गिटार के साथ, “समां है सुहाना”, अब तक कोई नहीं भूला |”
इसके अलावा भी “जूली” और “थोड़ी सी बेवफ़ाई” जैसी फ़िल्मों में इन्होंने छोटे लेकिन यादगार किरदार निभाए|इन्होंने “गरम हवा” में बलराज साहनी और एम०एस०सथ्यु जैसे बेहतरीन लोगों के साथ काम किया|

ये हमेशा से डायरेक्टर बनना चाहते थे लेकिन एक्टिंग के ही इतने काम मिलते थे कि मौक़ा ही नहीं मिला| इन्होंने एक फ़िल्म डायरेक्ट की भी, लेकिन वो रिलीज़ न हो पाई| 1989 में इनकी लिखी और निर्देशित फ़िल्म, “गूंज”, आई और इसे सराहना भी मिली| जलाल आग़ा ने कई अंग्रेज़ी फ़िल्मों भी काम किया| 1982 में आई “गांधी” इनकी मशहूर अंग्रेज़ी फ़िल्म साबित हुई| इसके अलावा इन्होंने “किम” और “द डिसीवर्स” जैसी अंग्रेज़ी फ़िल्मों में भी काम किया| बाद में इन्हें कई इश्तेहारों में भी देखा गया| गगन वनस्पति का इश्तेहार आज भी सब को याद है, जिसमें ये, “खाओ गगन, रहो मगन” बोलते हुए नज़र आते थे|

इनकी तीन बहनें भी हैं, जिनमें से एक, शहनाज़ हैं जो कि मशहूर डायरेक्टर टीनू आनंद की शरीक़-ए-हयात हैं| बाक़ी दो बहनों के बारे में मालूमात नहीं है| जलाल की बेटी अमरीका में हैं और उनके बेटे गोवा में रेस्तरां के मालिक हैं|
जलाल आग़ा अपने दोस्तों से हमेशा कहा करते थे कि उन्हें कुछ चाहिए, तो ऐसी मौत जो चलते फिरते नसीब हो, और 1995 में, दिल्ली में, मार्च की एक सुबह, उनकी ये ख़्वाहिश भी पूरी हुई और वे इस दुनिया से चल बसे|
आज भी उनको कभी किसी गाने या सीन में देखकर, उस दौर की रूमानियत और संजीदगी को एक साथ महसूस किया जा सकता है|
(लेखक जाने-माने साहित्यकार, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)