डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
“रग़बत ही न थी हदों के पैमाइश की हमें
इश्क़ था या होना बेज़ार, खूब किया जो भी किया”
– विमलेन्दु
तख़सीस इतनी ज़्यादा कि छुप न सकें, नूर ऐसा कि दीदाबाज़ी को जी चाहे, आवाज़ ऐसी कि नाहीद भी खामोश हो और इन सब के बाद भी ज़िन्दगी ऐसी कि कोई हमअसर, हमराज़ न हो। किसी से कह लें अपनी बातें, ऐसा हमसफ़र न हो और छूटते चले जाएँ वो सारे सहारे जो अपने थे कभी। कई दफा ऐसा हो ता है कि सारी खुसूसियत के बावजूद, ज़िन्दगी अंधेरों में ग़र्क़ होती चली जाती है। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि इस तरीके का इंसान खुले दिल का होता है और उसे दुनियादारी की समझ नहीं होती। सुलक्षणा पंडित का ज़िक़्र आते ही ये सारी अफसानों जैसी लगने वाली बातें असल ज़िन्दगी कि बातों में बदल जाती हैं।
सुरैया और नूरजहां के बाद हिंदुस्तान की फ़िल्मी दुनिया में ऐसी कोई अदाकारा नहीं आयी थी १९७० के पहले, जो देखने में भी खूबसूरती की मिसाल हो और गाने में भी माहिर हो। ये कमी पूरी हुई सुलक्षणा पंडित के आने से।
१९७० के दशक और ८० के दशक के शुरूआती सालों में सुलक्षणा काफी मसरूफ रहीं अदाकारा और गायिका दोनों के तौर पर। इनके पिता प्रताप नारायण पंडित एक मशहूर शास्त्रीय संगीत गायक और विद्वान् थे और इनके चाचा, पंडित जसराज को आज भी हमारे देश का एक नगीना माना जाता है। ये भी मशहूर शास्त्रीय संगीत गायक और विद्वान हैं।
सुलक्षणा, १९५४ में पैदा हुईं और घर में बहुत ही अच्छा माहौल था संगीत सीखने और सिखाने का तो इन्होने बाक़ायदा, संगीत की तालीम, अपने भाई बहनों के साथ ली। छोटी सी उम्र में ही १९६७ में आयी फिल्म,”तक़दीर’ का गाना ,”पापा जल्दी आ आना”, लता मंगेशकर के साथ गाया। १९७० के दशक में इन्होने बतौर अदाकारा और गायिका काम करना शुरू कर दिया और अपने समय के लगभग सभी बड़े सितारों के साथ काम किया। जीतेन्द्र, संजीव कुमार, विनोद खन्ना, राज बब्बर और कई बड़े सितारों के साथ इन्होने अदाकारा के तौर पर काम किया और इसी दौरान ये रफ़ी साहब, किशोर कुमार, शैलेन्द्र सिंह, येसुदास और कई गायकों के साथ गए भी रही थीं।
” पूरे ७० के दशक में इनके हुनर और इनकी खूबसूरती के चर्चे रहे। १९८१ आते आते, इनकी बहन विजेता पंडित, कुमार गौरव के साथ “लव स्टोरी” में काम कर के रातों रात मशहूर हो चुकी थीं। सब कुछ ख्वाब जैसा हसीं चल रहा था और इसी दौरान इन्होने कई फिल्में कर ली थीं। सबसे ज़्यादा इन्होने संजीव कुमार के साथ काम किया। ये उनके साथ ७ फिल्मों में ने आयीं। सुलक्षणा, संजीव कुमार के साथ ज़िन्दगी बिताना चाहती थीं पर उन्होंने मना कर दिया। यहीं से सुलक्षणा टूट गयीं और उनका ध्यान काम से हटने सा लगा।”
सुलक्षणा बहुत अच्छा कर रही थीं। उन्हें दूसरी भाषाओं की भी फिल्में मिल रही थीं। १९८० में उन्होंने ग़ज़लों का एक एल्बम भी निकला जिसका नाम “जज़्बात” था। इसके पहले १९७५ में वे अपने गाने के लिए फिल्मफेयर अवार्ड भी जीत चुकी थीं। लेकिन संजीव कुमार का इनकार वे सह न पायीं। समय बीतता गया और धीरे धीरे उन्हें काम मिलना कम होता चला गया। फिर एक वो भी समय आया जब काम मिलना बिलकुल बंद ही हो गया।
इनके तीन में से दो भाई जतिन और ललित बहुत मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर बने और कई लोगों को मौके भी दिए, लेकिन अपनी बहन सुलक्षणा के लिए कुछ ख़ास नहीं किया। १९९६ में आयी फिल्म “ख़ामोशी”, के एक गाने में आलाप उन्होंने अपनी बहन से गाने को कहा। इसके अलावा कोई बड़ा काम तो उन्हें नहीं दिया। एक समय बिलकुल बेज़ार होकर, सुलक्षणा अपने अपार्टमेंट के फ्लैट में रह रही थीं, जिसमे कोई फर्नीचर तक नहीं था। इनकी बहन और बहनोई ( विजेता पंडित और मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर आदेश श्रीवास्तव), ने उनको अपने पास रखना शुरू किया और मशहूर अदाकार जीतेन्द्र ने सुलक्षणा का वो फ्लैट बिकवाया जिससे उनकी हालत बेहतर हुई। आदेश उनके साथ एक बड़ा कम करने की सोच ही रहे थे कि उनकी ज़िन्दगी भी ठहर गयी और वे इस दुनिया से चले गए।
अभी भी सुलक्षणा अपनी बहन के ही साथ रहती हैं, एक बार गिर जाने के कारण, अब वे ठीक से चल नहीं पातीं और बहुत कम निकलती हैं। २०१७ में उनकी आवाज़ एक रेडियो इंटरव्यू में सुनाई दी थी। अब उनकी ज़िन्दगी को देख कर, सुदर्शन फ़ाकिर का एक शेर याद आता है:
“ज़िन्दगी कुछ भी नहीं,फिर भी जिए जाते हैं,
तुझपे ऐ वक़्त हम, एहसान किये जाते हैं “
-डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह
(लेखक जाने-माने साहित्यकार, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)