भूली हुई यादें- “विमी”

डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk

“आसाइश मयस्सर न हुई हयात में

मसायल, महशर को मुकर्रर किया है मैंने”

-विमलेन्दु

पूछना मुनासिब नहीं जान पड़ता और बमुश्किल ज़िंदगी गुज़र रही होती है तो आसरा उम्मीदों पर ही होता है| उम्मीद कमसिन ही मरते हैं, अगर मंज़ूर नहीं होती दुआएं या ग़ैरत का साथ जब छूटता सा लगता है| जी लेने की ख़्वाहिश का ख़त्म होना मौत है और मौत है ऐतबार का खो जाना| कोई तरक़ीब, कोई सूरत, कोई शय, दिलख़राशी को दफ़ा नहीं कर पाती और गुज़रे हुए वक़्त की एक दर्दनाक तस्वीर बन कर रह जाती है कहानी कुछ ख़ूबरू चेहरों की| विमी भी एक ऐसे ही चेहरे का नाम था|

विमी (PC-Pinterest)

विमी एक सिक्ख परिवार में, 1943 में, जलंधर में पैदा हुईं| उनकी ख़ूबसूरती, उनसे पहले मशहूर हुई और कई हमसिन उनके साथ ज़िंदगी बसर करने को बेक़रार थे| विमी ने एक अमीर उद्योगपति शिव अग्रवाल को चुना और इनकी शादी हो गई| विमी के वालिद ने शुरू में, इस शादी की मंज़ूरी नहीं दी थी, लेकिन उन्हें अपनी बेटी की ज़िद को मानना ही पड़ा|

शिव कलकत्ते में भी अपना कारोबार करते थे और वहीं एक पार्टी में मशहूर म्यूज़िक डायरेक्टर रवि ने उन्हें देखा और शौहर के साथ बंबई (अब मुंबई)आने का न्यौता दे दिया| ये 1963-64 की बात है| मुंबई जाने पर रवि ने उनकी मुलाक़ात, बेहद मशहूर फ़िल्मकार बी०आर० चोपड़ा से करवाई| विमी इतनी ख़ूबसूरत थीं कि तुरंत ही बी०आर० चोपड़ा ने उन्हें अपनी फ़िल्म, “हमराज़” के लिए चुन लिया| ये फ़िल्म 1967 में आई और सुनील दत्त के साथ जब विमी, “न सर झुका के जियो”, गाने में नज़र आईं तो दर्शक इनकी ख़ूबसूरती के तिलिस्म में क़ैद हो गए|

हमराज़ १९६७ के एक दृश्य में सुनील दत्त व विमी (PC-Youtube)

फ़िल्म बहुत कामयाब रही लेकिन इस कामयाबी का बहुत फ़ायदा विमी को नहीं मिला| लेकिन इनकी ख़ूबसूरती ने असर पैदा किया था, सो अगले ही साल, 1968 में ये “आबरू” में भी नज़र आईं| ये फ़िल्म बिल्कुल नहीं चली| इसके बाद ये फ़िल्म, “पतंगा” में, शशि कपूर के साथ दिखीं, जिसका गाना, “थोड़ा रुक जाएगी तो तेरा क्या जाएगा”, बहुत पसंद किया गया, लेकिन फ़िल्म फिर नहीं चली|

“ये 1971 का साल चल रहा था और विमी की नाकामयाबी का दौर भी जारी था| उनके पति शिव ने भी तेवर बदल लिए थे, यहाँ तक कि उन्हें मारना पीटना तक शुरू कर दिया था| इन सबसे परेशान हो कर विमी ने अलग रहना शुरू कर दिया और रिश्ते ख़त्म से हो गए| 1974 तक उन्होंने कोशिश की, लेकिन फ़िल्मों ने उन्हें कोई शोहरत नहीं दी|”

इसके बाद उन्होंने कलकत्ते में ही कपड़ों का कारोबार शुरू किया लेकिन यहाँ भी बहुत नुकसान हुआ| इस तरह बेज़ार हुईं विमी कि शराब की लत में पड़ गईं| वे बंबई वापस चली गईं और अपनी लत में इतनी बरबाद हुईं कि जिस्मफ़रोशी तक का बदनुमा दाग़ उनपर लगा|

एक रिकॉर्डिंग के दौरान महेंद्र कपूर, किशोर कुमार, हसरत और शंकर के साथ विमी (PC-Masala)

1977 में एक दिन बहुत ख़राब हालत में, नानावती हॉस्पिटल के जेनरल वार्ड में लिवर की बीमारी के चलते, वे गुज़र गईं| ज़िंदगी के ज़ुल्म मौत के बाद भी बाक़ी थे| उनके पति ने, एक ठेले पर उनकी लाश को रखवाया और श्मशान ले जाकर उनका अंतिम संस्कार किया|जब भी कभी किसी फ़िल्म के किसी जगह उनका चेहरा दिखता है तो लगता है कि वे ज़माने से पूछ भी रही हैं और बता भी रही हैं कि:

       “बैठने कौन दे है फिर उसको

        जो तेरे आस्तां से उठता है”

          -मीर

विमी! आपको उस जहां में सुकून नसीब हो|

(लेखक जाने-माने साहित्यकार, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)

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