शिखा पाण्डेय | Navpravah.com
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड (आरआईएल) और उसकी पार्टनर कंपनी बीपी को सरकार ने तय सीमा से कम नेचुरल गैस प्रोडक्शन के लिए दोषी करार फिया है। इसी के चलते सरकार ने इन दोनों कंपनियों पर 264 मिलियन डॉलर (करीब 1700 करोड़ रुपए) की नई पेनल्टी लगाई है।
दोनों कंपनियों पर यह एक्शन 2015-16 में केजी-डी6 फील्ड से टारगेट से कम नेचुरल गैस प्रोडक्शन के चलते लिया गया है। ऑयल मिनिस्ट्री के एक अफसर ने बताया कि इस तरह दोनों कंपनियों पर कुल पेनल्टी बढ़कर 3.02 अरब डॉलर हो गई।
केजी-डी6 ब्लॉक में धीरूभाई- 1 और 3 गैस फील्ड से गैस प्रोडक्शन पर प्रतिदिन 80 मिलियन स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर उत्पादन होना चाहिए। लेकिन, 2011-12 में वास्तविक प्रोडक्शन केवल 35.33 mmscmd, 2012-13 में 20.88 mmscmd और 2013-14 में 9.77 mmscmd रोजाना रहा। बाद के साल में प्रोडक्शन लगातार गिरता गया और यह 4 mmscmd के निचले स्तर पर आ गया। हालांकि रिलायंस और उसकी पार्टनर कंपनियों बीपी और निको रिसोर्सेस यह दलील देती आई हैं कि रेत और पानी की वजह से गैस उत्पादन घटा है।
उल्लेखनीय है कि सरकार और रिलायंस के बीच प्रोडक्शन शेयरिंग कॉन्ट्रैक्ट (पीएससी) है। इसके तहत, गैस की बिक्री से मिलने वाली रकम में से आरआईएल और उसकी सहायक कंपनी बीपी पूंजीगत और ऑपरेटिंग खर्च के बराबर की रकम अपने पास रख लेती है। बाकी बचे पैसे का कंपनी और सरकार के बीच बंटवारा होता है। पेनल्टी लगाने का मतलब है कि कंपनी अपने खर्चों में यह रकम नहीं जोड़ पाएगी। इससे सरकार के मुनाफे की रकम बढ़ जाएगी। अफसर के अनुसार, सरकार ने लागत निकालने के बाद अतिरिक्त 175 मिलियन डॉलर के प्रॉफिट शेयर पर दावा किया है।
न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार, इस बारे में आरआईएल और बीपी को भेजे गए ई-मेल का जवाब अब तक नहीं आया है। दोनों कंपनियों ने पिछले कुछ सालों में पूंजीगत और ऑपरेटिंग खर्च के बाद बची रकम को चैलेंज किया है। इस मसले को उन्होंने इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन में उठाया है, जहां इसे खत्म करने की मांग की है। उनका कहना है कि पीएससी के तहत ऐसे किसी भी तरह के दंड का प्रावधान नहीं है।
पीएससी के तहत सरकार ने कंपनियों की तरफ से 457 मिलियन डॉलर, 2011-12 में 548 मिलियन डॉलर, 2012-13 में 729 मिलियन डॉलर, 2013-14 में 579 मिलियन डॉलर और 2014-15 मिलियन डॉलर की लागत को खारिज कर दिया है। यानी, गैस बेचने के बाद मिली रकम में से कंपनियों ने इन रकम को लागत बताया है। अब 2015-16 में टारगेट मिस करने पर 264 मिलियन डॉलर की कास्ट को सरकार ने खारिज कर दिया है। अफसर ने बताया कि 2016-17 में भी आउटपुट टारगेट से कम था इसलिए कास्ट डिस्अलाउंस अगले साल कैलकुलेट की जाएगी।