चित्रकूट: 75 साल से सड़क के लिए तरह रहा आदिवासियों का गाँव

आकाश कश्यप | navpravah.com 

चित्रकूट | पहले अंग्रेज़ों ने गुलाम बनाये रखा, फिर ददुआ ने शोषण किया और उसके आतंक ने तोड़ा। फिर छुटभैये डकैतों ने आबरू लूटी और अब सिस्टम-सियासत बची हुई उम्मीद तोड़ रहा है। कई पीढ़ियों की आँखें पथरा गई उस उम्मीद पर टकटकी लगाए कि शायद अब सड़क मयस्सर होगी, अब गांव की कोई भी प्रसव से पीड़ित महिला अस्पताल पहुँचने से पहले दम नहीं तोड़ेगी! बच्चे हसंते खेलते शिक्षा क्षेत्र में झंडे गाड़ेंगे, गांव का जुड़ाव शहर से होगा । लेकिन मानिकपुर विकासखण्ड के चूल्हि गांव के ग्रामीणों की ये उम्मीदें बीते 75 बरस से सिर्फ उम्मीदें ही हैं। कब गांव तक सड़क बनेगी किसी को नही पता !

युवा समाजसेवी अनुज हनुमत ने बताया कि चित्रकूट के पाठा इलाके में मौजूद इस गांव में अपनी टीम के साथ पिछले दिनों गया था, तो यकीन ही नहीं हुआ कि जिस विकासखण्ड में विकास के लिए करोड़ो का बजट आता है, जिस तहसील में जिम्मेदार अधिकारी बैठते हैं, उन सरकारी कार्यालयों से महज 5-6 किमी दूर एक गांव ऐसा भी है जहां आज भी सड़क न होने कारण जीवन ठहरा सा है। एक तरफ देश में नेशनल हाइवे और एक्सप्रेस-वे के निर्माण का विश्व रिकार्ड बनाया जा रहा है वहीं पाठा के चूल्हि, बड़ेहार जैसे कई ऐसे गांव हैं जहां आज तक सड़क नही बन पाई। आखिर क्या दोष है इन गांव वालों का? यही की ये कोल आदिवासी हैं? या अशिक्षित हैं या फिर इनकी आवाज उठाने वाला कोई नही ? वजह क्या है!

उन्होंने बताया कि अब तक जितने स्थानीय नेता हुए वो सब रबर स्टाम्प की तरह हुए, जिनकी चाभी किसी दादू या दबंग के हाथ होती थी। अधिकारी ऐसे गांवो में जाना नही चाहते, कहीं कीचड़ लग गया या गाड़ी फंस गई तो क्या होगा ? नेता/जनप्रतिनिधि ऐसे गांव कभी भी इसलिए नही घुसना पसन्द करते, क्योंकि चुनावी मुद्दे खत्म हो जाएंगे और मौजूदा राजनीतिक कलेवर बुरा मान जाएगा ! सिस्टम और सियासत की बेरुखी का फायदा ठेकेदार, जेई, सचिव और कुछ अन्य तरह के दबंग उठाते हैं। फिर ऐसे गांवो का होता है फाइलों में विकास जो बनाता है “अतुल्य भारत “

आदिवासी गांव चूल्हि की ऐसी हालत है कि देखकर किसी को भी शर्म आ जाए। किसी को शर्म नहीं आती, अगर शर्म नही आती तो डूब मरिये चुल्लू भर पानी में और सोचिए कि अगर आप किसी ऐसे गांव या घर में पैदा होते, तो आपकी क्या औकात होती ? क्या बन पाते आलीशान गाड़ियों में चलने वाले नेता ! बन पाते सरकारी सुविधाओ से लैस नौकरशाह ? बन पाते जागरूक इंसान ? दौड़ पाते विकास की मुख्य धारा की दौड़ में ? “नही”

युवा समाजसेवी अनुज हनुमत ने कहा कि उन्होंने उक्त गांव में सड़क सहित कई अन्य विषयों को लेकर राष्ट्रपति महोदय को पत्र लिखा है। क्योंकि वो खुद आदिवासी समाज से ताल्लुक रखती हैं, शायद चूल्ही गांव के गरीब आदिवासियों का दर्द वो समझें। हम चाहते हैं कि उक्त गांव तक विकास पहुंचे और गरीबों का कल्याण हो।

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