अमित द्विवेदी
रेटिंग- **/5*
समीक्षा- फिल्म ‘शिवाय’
स्टार कास्ट- अजय देवगन, एरिका कार, एबीगेल ईम्स, साएशा सहगल, वीर दास, गिरीश करनाड, सौरभ शुक्ल
डायरेक्टर- अजय देवगन
संगीत- मिथुन शर्मा
लेखक- संदीप श्रीवास्तव, रॉबिन भट्ट
जैसे किसी परिवार में सबकुछ ठीक हो लेकिन तालमेल न हो तो व्यवस्था बिगड़ जाती है, कुछ वैसा ही हाल है फिल्म ‘शिवाय’ का। हिमालय के खूबसूरत नज़ारे, बेहतरीन फोटोग्राफी और ज़बरदस्त एक्शन के बावजूद भावहीन संवाद, ढीली स्क्रिप्ट और कलाकारों के कमज़ोर प्रदर्शन ने फिल्म को दिशाहीन बना दिया। दरअसल फिल्म का ताना बाना बुनने में ही निर्देशक अजय ने काफी समय ले लिया, जिसकी वजह से फिल्म की शुरुआत ही बोझिल हो जाती है। आइए जानते हैं क्या है ‘शिवाय’।
कहानी-
फिल्म की शुरुआत में अजय देवगन यानि शिवाय इंडियन आर्मी की मदद करता है, शिवाय की प्रतिभा से कर्नल खुश हो जाता है और कहता है कि वो शिवाय की नौकरी के लिए आर्मी में बात करेगा। लेकिन शिवाय कहता है कि वो बस हिमालय आने वाले लोगों की मदद करना चाहता है। इसी दौरान बुल्गारिया से आए कुछ यात्रियों को लेकर शिवाय हिमालय की चढ़ाई पर निकल जाता है। जब ये हिमालय पर ज़्यादा ऊंचाई पर चढ़ते हैं, तो बर्फ टूटने लगती है। बचाने का यत्न शुरू होता है और सबको बचाने के बाद शिवाय और बुल्गारिया से आई लड़की (एरिका कार), दोनों फंस जाते हैं। यहीं से दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो जाता है और जब वे सकुशल घर लौटते हैं, तो पता चलता है कि वो एरिका माँ बनने वाली है। अपने करियर को लेकर गंभीर एरिका माँ नहीं बनना चाहती, जबकि शिवाय पिता बनने के लिए उत्सुक है। दोनों समझौता करते हैं कि एरिका शिवाय के बच्चे को जन्म तो देगी लेकिन वापस अपने वतन लौट जाएगी, अपना करियर बनाने के लिए। शिवाय की बिटिया गौरा धीरे धीरे बड़ी होने लगती है। एक दिन भूकंप आने के बाद घर को संवारते हुए गौरा को एक चिट्ठी और कुछ तस्वीर मिलती है, जिससे उसे पता चलता है कि उसकी माँ अभी ज़िंदा है। शिवाय गौरा की माँ से मिलने की इच्छा को दबा नहीं पाता और दोनों बुल्गारिया जाते हैं, यहीं से शुरू होती है असली कहानी। नाटकीय अंदाज़ में गौरा किडनैप हो जाती है। इसके बाद फिल्म धीरे धीरे कसती जाती है। गौरा के साथ क्या क्या होता है, वहाँ की सरकार, पुलिस और किडनैपर्स से किस तरह लड़ता है शिवाय, यह दर्शनीय है। जिसके लिए आपको सिनेमाघर की ओर रुख करना होगा।
पटकथा-संवाद-
बिखरी हुई पटकथा है। शुरुआत के 20 मिनट बेहद बोझिल हैं। यदि पटकथा कसी हुई होती तो फिल्म बेहतरीन होती। संवाद औसत हैं लेकिन अजय के अलावा बाकी कलाकार उसके साथ न्याय नहीं कर सके।
संगीत-
संगीतकार मिथुन का कमाल कुछ खास नज़र नहीं आया। संगीत औसत है लेकिन ‘हर हर हर महादेव’ काफी प्रभावी है। फिल्म का टाइटल ट्रैक मोहित की आवाज़ में काफी प्रभावी लगता है।
अभिनय-निर्देशन-
सायेशा सहगल और एरिका कार ने निराश किया। अजय देवगन लगभग हर फ्रेम में नज़र आए हैं, जिन्होंने अपने अभिनय से पटकथा की कमज़ोरी की भरपाई करने की कोशिश की है। सौरभ को जितना स्पेस दिया गया है, उन्होंने प्रभावित किया। गिरीश कर्नाड, वीर दास ने काफी निराश किया।
आजकल अभिनय के साथ निर्देशन भी करने वाले कलाकारों को इस बात पर विचार करना होगा कि निर्देशन के लिए निर्देशकों पर ही विश्वास किया जाना चाहिए। कलाकारी के साथ निर्देशन करने की जबदस्ती से बट्टा लग ही जाता है।
fair & best criticism…