निर्देशक – निखिल भट
लेखक- शान्तनु श्रीवास्तव
कलाकार- स्वरा भास्कर, सुनाक्षी ग्रोवर, आयुष्मान सक्सेना।
अमित द्विवेदी | नवप्रवाह डॉट कॉम
डार्क कॉमेडी क्या है? कॉमेडी से डार्क, लाइट, ब्लू और ब्लैक जोड़कर आप जैसे गंध मचाना चाहें, मचा सकते हैं? ये कैसी ओटीटी की आज़ादी है, जिसपर किसी भी तरह का नियंत्रण नहीं है? ऐसी फ़िल्में छिछोरेपन का सर्टिफ़िकेट बाँट रही हैं, और युवाओं को गंदी गलियों से होकर गुज़रने के लिए प्रेरित भी कर रही हैं।
स्वरा भास्कर पिछले कुछ समय से बेरोज़गार हैं, उनकी पॉलीटिकल कांट्रवर्सी के चलते उन्हें अवॉइड किया जाने लगा और कई फ़िल्मों से ग़ायब हो गईं, लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं होता कि काम के चक्कर में आप अपने ग्राफ़ का ही सत्यानाश कर दें, वही किया है स्वरा ने रसभरी में। अगर इस फ़िल्म को सेमी अडल्ट की कैटेगरी में रखें, तो वहाँ भी ये खरी नहीं उतरती, सेमी अडल्ट फ़िल्मों की भी नक़ल लग रही है ‘रसभरी’।
आइए जानते हैं क्या है कहानी-
यूपी के मेरठ पर केंद्रित है फ़िल्म। इसी शहर में एक लड़का रहता है नन्द नाम का, जिसकी यौन इच्छाएँ ही पूरी नहीं हो पातीं। अब ये दुनियाभर के हथकण्डे अपनाता है, अपनी इच्छाओं को शांत करने के लिए। इसी बीच नन्द के स्कूल में एक इंग्लिश पढ़ाने वाली टीचर की एंट्री होती है, उसे देख नन्द फुदकने लगता है, उसे लगता है जैसे यही वो ज़रिया है, जिससे उसके कामेच्छाओं को शान्ति मिलेगी। इंग्लिश टीचर शानू बंसल के कैरेक्टर को लेकर शहर भर में चर्चा है कि वो शहर के मर्दों को ख़ुश करने का माद्दा रखती है।
अब नन्द अपनी शिक्षिका को ही पा लेने के जुगाड़ में लग जाता है। अब इसी कोशिश में वो इस टीचर के यहाँ ट्यूशन पढ़ने जाने लगता है। एक दिन अपनी टीचर को चूमने के चक्कर में पिट जाता है। ग़ुस्से में नन्द इंग्लिश टीचर शानू बंसल के कारनामे के बारे में उसके पति को बता देता है कि सारा शहर शानू के बारे में क्या बात करता है। इसके बाद जो नन्द को पता चलता है, उससे उसका मन ही बदल जाता है।
उधर शहर की महिलाएँ शानू बंसल को सबक़ सिखाने का मन बना लेती हैं। सबको लगता है कि इसने हमारे मर्द और बच्चों को बिगाड़ दिया है। अब नन्द शानू को बचाने के लिए क्या-क्या जुगाड़ करता है और कलाइमेक्स में क्या है, इसके लिए आपको फ़िल्म देखना होगा।
अभिनय-निर्देशन-
जितने भी कलाकार हैं स्वरा भास्कर को मिलाकर सभी ने औसत और उससे कम दर्जे का अभिनय किया है। स्वरा एक अच्छी कलाकार हैं, लेकिन वो भी रसभरी के रस में गुम हो गई हैं। बेहद निराश करती हैं स्वरा। निर्देशक ने शायद ग़लत कॉन्सेप्ट चुन लिया, न्याय नहीं कर पाए निर्देशक। कमज़ोर स्क्रीन्प्ले में रंग नहीं भर पाए।
देखें या नहीं-देखें, ये कहना दर्शकों के साथ अन्याय होगा। भरोसा उठ जाएगा लोगों का। ज़्यादा मन ही है देखने का तो सिर्फ़ ट्रेलर देख लीजिए। और कुछ नहीं है रसभरी में ट्रेलर से ज़्यादा।
ओटीटी पर सेंसरशिप न होने का मतलब ये क़तई नहीं कि निर्देशक और निर्माता अपनी हद ही भूल जाएँ। क्या आप पॉर्न परोस देना चाहते हैं? क्या ओटीटी प्लैट्फ़ॉर्म पर फ़ैमिली के लिए कोई स्पेस नहीं रखा जाएगा? क्या सिर्फ़ हॉस्टल में रहने वाले ही आपकी ऑडिएंस में शुमार है?
(अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आधार पर की गई समीक्षा एक जटिल काम है, जिसके अंतर्गत केवल पॉजिटिव कमेंट्स की उम्मीद रखना अनुचित है। हमारे यहाँ पेड रिव्यू जैसी भी कोई व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।)