जटाशंकर पाण्डेय । Navpravah.com
“कुछ मसले हैं ज़िन्दगी के, जो सुलझाने से उलझ जाते हैं
कुछ ज़ख्म हैं बदन पर, जो सहलाने से उभर आते हैं।”
इस शेर का असल मतलब अगली कुछ पंक्तियों के माध्यम से समझा जा सकता है। सुबह-सुबह समाचार तो हम सभी पढ़ते या सुनते हैं। आज कल के समाचारों की सुर्ख़ियों का मूल अंश कुछ ऐसा होता है – “पाकिस्तान ने सीज फायर का उल्लंघन किया। पाकिस्तान यहाँ मोर्टार दाग रहा है, वहाँ गोलियां बरसा रहा है, कहीं ग्रेनेड फेंक रहा है। आज 10 जवान घायल हुए, कल चार शहीद हुए। प्रधानमंत्री ने शहीदों के परिवारों को 50 लाख देने की घोषणा की है। गृहमंत्री ने पाकिस्तान को दो टूक जबाब दिया है। विपक्ष हंगामा मचा रहा है कि क्या जवान के खून की कीमत बस 50 लाख ही है? सार्क सम्मेलन में एकत्रित सभी देशों के प्रधानमंत्रियों ने पाकिस्तान की निंदा की। विश्व अब पाकिस्तान की असलियत जान चुका है। पाकिस्तान का पर्दाफ़ाश हो चुका है। वगैरह, वगैरह, वगैरह…” जितने पक्ष, उतने विपक्ष, सबकी सोच अपनी-अपनी। ये सारे शब्द भारत- पाकिस्तान के लिए इतने आम हो चुके हैं, कि लोगों के कर्ण पटल पर तो पड़ते हैं, लेकिन अंदर प्रवेश नहीं करते। आम जनता अपनी रोजमर्रा की जिंदगी जैसे काटती थी, वैसे ही काटती है।
हाल ही में चैंपियंस ट्रॉफी में भारत-पाकिस्तान का मैच हुआ। कई राजनीतिक पार्टियाँ, जैसे शिवसेना ,मनसे और कई दल जम कर विरोध में उतरे, जम कर मैच हुआ, जम कर मैच देखा गया, जम कर आनंद उठाया गया, जम कर विजय उत्सव में पटाखे फोड़े गए, एक बार भारत की विजय पर, तो एक बार पाकिस्तान की भी! भारत पाकिस्तान को रोज़ चेतावनी देता है। पाकिस्तान के कान पर जूं तक नहीं रेंगता। लन्दन-अमेरिका में भी आतंकी फायरिंग हो रही है। सरकारें निंदा करतीं हैं, जनता विरोध करती है, लेकिन इसका परिणाम क्या होता है? कुछ भी रुकता है?
विश्व के सारे देश शांति चाहते हैं। सारी जनता शांति चाहती है। फिर भी संसार में इतना व्यभिचार, लूट-खसोट, खून- खराबा, हत्या हो रही है। जिसके पास थोड़ा भी विवेक है, उसे इस विषय पर चिंतित होना चाहिए। यह विषय हिन्दू का नहीं है, मुस्लिम का नहीं है, ईसाई या पारसी का नहीं है। विश्व में किसी एक जाति का, एक धर्म का, एक संप्रदाय या किसी एक देश का नहीं है। यह चिंता सार्वभौमिक है और जब चिंता सार्वभौमिक है, विचार भी सार्वभौमिक होना चाहिये कि कैसे दुनिया में अमन रहे, चैन रहे, खुशहाली रहे।
इतना सब होने के बाद भी ये शांति, अमन, खुशाहाली होती नहीं है, यह घोर चिंता का विषय है। यदि कारण पर विचार किया जाये, तो आप पाएँगे कि दुनिया एक रुग्ण मानसिकता से ग्रसित होती जा रही है। लोग सिर्फ अपनी सुरक्षा में लगे हैं। किसी को दूसरे की नहीं पड़ी है। अगर किसी को पड़ी भी है, तो बस प्रत्यक्ष रूप से, परोक्ष में उसका बड़ा स्वार्थ मुँह बाए खड़ा रहता है।
नेता और अभिनेता, ये दोनों बड़े कलाकार होते हैं। ये पैदा ही जनता के लिए होते हैं। इनका धंधा ही देश सेवा है और ये देश सेवा करते भी हैं, लेकिन इनकी सेवा कौन करता है? उत्तर है, “जनता”। जनता की सेवा से, जनता द्वारा ही जो मेवा मिलता है, वह कहीं और नहीं। पाकिस्तान में भी चुनाव आने वाला है। अब चुनाव जीतना है, तो कुछ ऐसा तो करना होगा, जिससे जनता में अपनी धाक बने। शांतिमय देश लुंज-पुंज, शक्तिहीन की तरह पड़ा दिखता है। मुल्क को अगर सशक्त और चुस्त-दुरुस्त रखना है, तो बिना वजह भी नकली दुश्मन खड़ा करके कुछ न कुछ खुराफ़ात करते रहना पड़ता है। यही राजनीति का अंदरूनी राज़ है साहब। तभी देश के नागरिक, देश की सेना उत्साहित रहती है और वहां की जनता में एकता की भावना पैदा होती है, क्योंकि अगर पड़ोसी से लड़ना है, तो पूरे देश को एकजुट होकर ‘दुश्मन’ का सामना करना पड़ेगा।
जनता का रुझान अख़बार और समाचार चैनलों पर ज्यादा रहता है और ऐसे समय में लोगों की समझ में आता है कि सरकार देश के हित में ज्यादा काम कर रही है। यद्यपि विपक्ष पोल खोलने में लगा रहता है, फिर भी जनता में देश प्रेम की भावना इतना उछाल मारने लगती है कि उसे एक ही चुनाव चिन्ह दिखने लगता है। यद्यपि सत्ताधारी लोग बातें देश के हित की करते हैं, लेकिन ये बातें होती कुर्सी हित, अर्थात स्वयं के हित की हैं।
आतंकवाद पूरे विश्व की समस्या है। अमेरिका में भी आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया जाता है, रूस, ब्रिटेन भी आतंकवाद से त्रस्त है। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका में एक बहुत महत्त्वपूर्ण बात कही। आज से बीसों वर्ष पहले से भारत आतंकवाद के विषय में दुनिया को बता रहा था, समझा रहा था, तो दुनिया को समझ नहीं आया, आज खुद आतंकवाद ने अपनी परिभाषा दुनिया को समझा दी है। मोदी की बात बिलकुल सही है। जब तक अपने पैर में बिवाई नहीं फटती, औरों का दर्द महसूस नहीं होता। चीन पाकिस्तान का मददगार है। पाकिस्तान आतंकवाद को पाल रहा है और चीन कभी आतंकवाद को ख़त्म करने की दिशा में कोई कदम उठता नज़र नहीं आता, बल्कि अक्सर पाकिस्तान को आतंकवादी मामलों में सहायता प्रदान करता नज़र आता है। सोचने वाली बात यह है कि क्या पाकिस्तान में आतंकी हमले नहीं होते? क्या ये आतंकी भारत, अमेरिका या ब्रिटेन के होते हैं? नहीं, ये पाकिस्तान के ही ‘रत्न’ होकर, खुद उसके भी नहीं होते। सवाल यह उठता है कि पाकिस्तान इनको पैदा ही क्यों करता है फिर? अगर पाकिस्तान इनको पैदा करता है, तो ये पाकिस्तान पर भी हमले क्यों करते हैं?
दरअसल गरीब देशों में भुखमरी, बेरोजगारी ज्यादा होती है, लेकिन गरीबों के खून में उबाल कम नहीं रहता। पाकिस्तान खुद तो है एक गरीब देश, पर खून का उबाल और पेट की भूख समय समय पर ज़ोर मारती रहती है। इसी कमज़ोरी का फायदा उठाते हैं आतंक के आका। वैसे पाकिस्तान में कहने मात्र को सरकार है, शासन दरअसल सेना के हाथ में रहता है। सेना और सरकार में हमेशा खींचातानी मची रहती है। सेना सरकार के भी ऊपर शासन करना चाहती है और सरकार स्वतंत्र शासन चलाना चाहती है। सबका कारण मात्र कुर्सी है, जिसकी लड़ाई पाकिस्तान या भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में रहती है। सरकार के ऊपर विश्व समुदाय का भी दबाव रहता है, सेना राष्ट्रपति के नीचे रहती है और राष्ट्रपति एवं प्रधान मंत्री में हमेशा विरोधाभास रहता है। इसलिए परोक्ष रूप से आतंकवादी सेना के साथ रहते हैं, सेना आतंकवादियों को पालती है। बहुत टेढ़ी गणित है और ये सारी गणित सिर्फ और सिर्फ सत्ता पर हावी रहने के लिए होती है। जब उनके अपने देश में समस्याएं ज्यादा बढ़ जाती हैं, तो प्रधानमंत्री को बेदखल कर सत्ता राष्ट्रपति के हाथ में आ जाती है और सेना देश संभालने लगती है। ऐसा वाक़या पाकिस्तान में कई बार हो चुका है।
सौ बात की एक बात यह है कि आतंकवाद या आतंकवादी आस्तीन के वो सांप हैं, जो किसी के नहीं हो सकते। पाकिस्तान अगर खुद ये बात समझ नहीं पा रहा, तो उसे जबरन ये समझाने की ज़रूरत है कि वह स्वयं आतंकवादियों के हाथ की एक कठपुतली मात्र बन गया है , उसका खुद का कोई अस्तित्त्व ही नहीं है। सम्पूर्ण विश्व को भी इस विषय की गंभीरता को समझते हुए आतंक के खात्मे में भारत का साथ देना चाहिए। यदि इस दिशा में कोई कठोर कदम न उठाया गया तो रोज़ कई सैनिक ऐसे ही शहीद होते रहेंगे, रोज़ उनके घरों में मातम का माहौल होगा, फिर उनके आंसू सूख जायेंगे और फिर वही हमला होगा।
इस अनवरत सिलसिले को तोड़ना आवश्यक है और यदि देश का प्रधानमंत्री विश्व स्तर पर इस मुद्दे के लिए लड़ रहा है, तो देश की सम्पूर्ण जनता व विपक्ष को भी एक ‘देश’ के रूप में उनके साथ खड़े होने की ज़रूरत है, न कि अपने निजी स्वार्थ को साधने में लगे रहने की, क्योंकि देश पर न्यौछावर होने वाला शहीद आपका न सही, किसी न किसी का बेटा है, भाई है, पिता है। शहीद संदीप जाधव के घर, उनके बेटे के पहले जन्मदिन के अवसर पर जब उनकी जगह उनका पार्थिव शरीर पहुंचा होगा, तो उस परिवार पर क्या बीती होगी, इसका अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता कोई। वो बच्चा , जिसने अपने पहले जन्मदिन पर अपने पिता को मुखाग्नि दी, जीवन भर अपने जन्मदिन को कोसेगा। उस शहीद के स्थान पर अपने बेटे को रखकर देखिये, शायद आपकी अंतर आत्मा जाग जाए, आपको सही व गलत में फर्क करने की समझ आये और आपको अपने कर्तव्य का बोध हो।