“विशालमन विभूति प्रमुख स्वामी जी महाराज” -साधु अमृतवदन दास जी

दुनिया में कई परोपकारी लोग हैं। उन्होंने अरबों रूपयों का दान किया है। पैसों के मामले में भारत के जमशेदजी टाटा द्वारा शुरू की गई चैरिटी अब तक करीब 3,103 अरब का दान दे चुकी है।  वह आज भी नंबर वन हैं।

बिल गेट्स और वारेन बफेट ने गिविंग प्लेज नाम से एक आंदोलन शुरू किया है।  जिसमें अमीरों के लिए अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा समाज कल्याण के लिए दान करना ऐसा एक शुभ विचार है।  2021 तक 25 देशों के 220 प्रस्तावों को उसमे पंजीकृत किया गया है।

कई उदार लोग हैं जो अपनी अधिकांश संपत्ति समाज, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य आवश्यकताओं के लिए दान करते हैं।  लेकिन आप कितने लोगों को जानते हैं जिन्होंने समाज और दुख के लिए अपना सब कुछ दे दिया?  शायद बहुत कम नाम याद हों या शायद एक भी नाम याद न हो।

दधीचि ऋषि ने देवताओं और पृथ्वी और त्रिलोक को वृत्तासुर से बचाने के लिए अपना शरीर त्याग दिया।  देवताओं ने उनकी हड्डी से एक वज्र अस्त्र बनाकर राक्षस को मार डाला।

समय-समय पर ऐसे मनुष्य इस धरती पर जन्म लेते हैं ताकि दूसरों का जन्म और जीवन सार्थक हो जाए।  वे दूसरों के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर देते हैं।

प्रमुख स्वामी महाराज एक ऐसे संत थे, जिन्होंने समाज के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।  वह खुद को दूसरों की मदद करने के बारे में नहीं सोचते था।

कुछ साल पहले स्वामीजी एक महत्वपूर्ण धार्मिक समारोह में भाग लेने के लिए इलाहाबाद जाने वाले थे। उस समय उनके पैर मे एक बड़ी गांठ थी। डॉक्टरों ने चेतावनी दी कि ऐसे में वहां जाना आपकी सेहत के लिए बेहद खतरनाक है।  लेकिन स्वामी जी ने किसी की नहीं सुनी।  बस वहाँ गए और दर्द की परवाह किए बिना सभी को बहुत खुश किया।  उस समय गुजरात के नानी वावड़ी गांव के कुछ भक्त स्वामी जी से मिले।  उन्होंने स्वामी जी से कहा कि वे सब यहाँ यात्रा कराने आए हैं।

आयोजक ने पहले वादा किया था कि हम आपके भोजन की व्यवस्था करेंगे।  लेकिन यहां आकर उन्होंने हाथ खड़े कर दिए हैं।  भोजन के लिए कोई मेल नहीं है।  स्वामीजी ने तुरंत संतों को आदेश दिया कि वे सभी भोजन आदि इन लोगों को दें जो हम अपने साथ लाए हैं। सभी संत स्तब्ध होकर देखते रह गए क्योंकि अंजान जगह पर दूसरी व्यवस्था कैसे स्थापित करें?  लेकिन स्वामीजी यही चाहते थे इसलिए उन्होंने सारा खाना उन भक्तों को दे दिया।  स्वामीजी की ऐसी उदार भावना से उपस्थित सभी मनोमन अभिभूत  हो गए।  खुद का बना बनाया बिगाड़ कर दूसरों का भला करने के लिए बड़े दिल की जरूरत होती है।

स्वामीजी का नेतृत्व कितना उदार था, इसके कई प्रसंग हैं।  कुछ साल पहले आंध्र प्रदेश में भारी बारिश हुई थी।  कम से कम दो स्थानों पर तो बाढ़ के खतरे के चरम स्तर की घोषणा की गई।  काफी तबाही मची थी। सरकार का पूरा तंत्र बचाव और राहत कार्य मे जुट गया था। इस बीच सिकंदराबाद के बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिर में भी पानी भर गया।  मंदिर के निर्माण के लिए लकड़ा एवं अन्य चीजे बाढ़ के प्रवाह मे बह चुकी थी।

BAPS Sri Swaminarayan Mandir, Sikandrabad

भक्तों ने यह बात स्वामी जी को बताई।  स्वामी जी ने कहा कि बारिश से हमारे मंदिर भी नुकसान हुआ है ।  लेकिन आपको दूसरों की मदद करनी चाहिए। जो जरूरतमंद हैं या जो पीड़ित हैं उनकी सहायता करें।  स्वामी जी के मन में यह भाव था कि वह स्वयं कष्ट सहकर भी यथासंभव दूसरों की सहायता करें।

उनकी यह आत्मा शाश्वत है।  उसे यह आभास होता है कि आज भी कहीं कोई समस्या हो तो मदद मांगने का मैसेज तुरंत आ जाता है।

हाल ही में यूक्रेन-रूस युद्ध में ऐसा ही हुआ था।  यूक्रेन में पढ़ने वाले हमारे भारतीय छात्र वहाँ के भीषण युद्ध मे बुरी तरह से फँस गए थे। उनको पोलैंड मैं से भारत देश वापस लाने की व्यवस्था की जा रही थी। चारों ओर बुलेट, बम मिसाइल के धमाके सुनाई पड़ते थे।  संकट का समय था ।  सरकार उनके लिए पोलिश सीमा से भारत लौटने की व्यवस्था कर रही थी।

ऐसे कठिन समय में हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी ने संतों को फोन कर के यूक्रेन से आ रहे छात्रों और अन्य लोगों के लिए रहने और खाने की व्यवस्था करने का निवेदन किया।  BAPS स्वामिनारायण संस्था की ओर से तुरंत योजना शुरू की गई।  हमारे यूरोपीय देशों जैसे इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, पोलैंड, हॉलैंड आदि देश एवं अमरिका के हमारे संत, स्वयंसेवकों और हरिभक्तों ने इस अत्यंत खतरनाक और जीवन के लिए खतरनाक माहौल में सरकार के आदेश के अनुसार सभी व्यवस्था करना शुरू कर दिया।  सबसे पहले इस जगह पर मोबाइल किचन भेजा गया।  सभी लोगों को गर्मागर्म भोजन का प्रबंध किया गया। तत्पश्चात उन्होंने अपने साथ एक गोदाम रखा और उसमें सभी भारतीयों के रहने एवं परिवहन की अच्छी व्यवस्था की।  पीड़ित लोगों को सिम कार्ड की भी दिए गए। और अन्य सुविधाएं भी दी गई। इससे लोगों को अभी काफी राहत मिल गई । सब धीरे धीरे शांत होने लगे। यह सब स्वामी जी ने हम सभी को सिखाया है।

जो व्यक्ति अपने से ज्यादा दूसरों के दर्द को महत्व देता है और उन्हें दुःखमुक्त करने का यथोचित प्रयास करता है वही विभूति पूरी दुनिया को बेहतर बना सकती है।

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