एनपी न्यूज़ डेस्क | Navpravah.com
केंद्र सरकार ने बिहार सरकार का समर्थन करते हुए समान कार्य के लिए समान वेतन का विरोध किया, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने बिहार सरकार के स्टैंड का समर्थन किया है, केंद्र के तरफ से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि नियोजित शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि ये समान कार्य के लिए समान वेटर की कैटेगरी में नहीं आते हैं।
केंद्र सरकार ने कहा कि इन नियोजित शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन देने पर केंद्र सरकार पर करीब 40 हजार करोड़ का अतिरिक्त भार आएगा, पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अंतिम सुनवाई की तारीख 12 जुलाई के लिए तय की थी।
केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखने के लिए और वक्त मांगा था, केंद्र सरकार ने कहा था कि वो अन्य राज्यों के परिपेक्ष में इसे देख रही है, क्योंकि एक राज्य को अगर सैलरी पर विचार किया जाएगा तो अन्य राज्यों की ओर से भी मांग उठने लगेगी, केंद्र सरकार ने यह भी कहा था कि हम बिहार को आर्थिक तौर पर कितनी मदद कर सकते हैं, ये हम कोर्ट को अवगत कराएंगे।
बिहार में राबड़ी देवी सरकार में नियोजन की प्रक्रिया साल 2003 में शुरू हुई, उस समय नियोजित शिक्षकों को शिक्षामित्र के नाम से जाना जाता था और इनकी सैलरी महज 1500 रुपये हुआ करती थी, एक जुलाई 2006 को नीतीश कुमार की नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में सभी शिक्षामित्रों को पंचायत और प्रखंड शिक्षक के तौर पर समायोजित किया गया।
इसके बाद ट्रेंड नियोजित शिक्षकों का वेतन पांच हजार, जबकि अनट्रेंड नियोजित शिक्षकों का वेतन चार हजार रुपए कर दिया गया, उसके बाद बिहार में लगातार नियोजित शिक्षकों की बहाली होती रही और अब इनकी संख्या तीन लाख 69 हजार के आसपास पहुंच चुकी है।
बिहार में क्लास एक से लेकर क्लास आठ तक नियोजित शिक्षकों और पुस्तकालय अध्यक्षों को वर्तमान में 14 हजार से लेकर 19 हजार तक सैलरी मिलती है, इनमें ट्रेंड और अनट्रेंड शिक्षक शामिल हैं, समान काम के लिए समान वेतन का फैसला लागू होता होते ही इनका वेतन 37 हजार से 40 हजार तक पहुंच जाएगा।