सम्पादकीय | नवप्रवाह डॉट कॉम
देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि गत दो वर्षों में तमाम चुनावी शिकस्त के बावजूद पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन नहीं कर पा रही। हालाँकि, इस बीच तमाम मुद्दों को लेकर पार्टी पहले से अधिक मुखर नज़र आई है। किसी भी मुद्दे को लेकर पार्टी पहले से अधिक आक्रामक दिख रही है। लेकिन इन सबके बावजूद कोई भी निश्चित राष्ट्रीय नेतृत्व न होने का नुक़सान भी पार्टी को हुआ है।
कहने को पार्टी को सोनिया गांधी का नेतृत्व प्राप्त है लेकिन आज भी नेताओं की अलग-अलग मंडली है, जिसमें कोई राहुल का झंडा ऊँचा करता दिखता है तो कोई प्रियंका का। इस परिस्थिति की वजह से युवा नेताओं को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। नेता यही नहीं निर्धारित कर पा रहे हैं कि वे किस के पीछे चलें, किसे कहें अपना नेता। कुछ युवा कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि हम यही नहीं समझ पाते कि हमें किस की जय-जयकार करनी है।
हाल में राजस्थान में युवा कांग्रेस में काफ़ी युवा नेताओं को स्थान दिया गया। संगठन महासचिव जैसे पद का सृजन किया गया। इस से यह तो समझ आता है कि पार्टी भविष्य को लेकर बेहद गम्भीर है, लेकिन निश्चित केंद्रीय नेतृत्व के अभाव में कोई भी दल कितनी तरक़्क़ी कर सकता है यह विचारणीय मसला है।
हाल में ही सैम पित्रोदा की अध्यक्षता वाली इण्डियन ओवरसीज़ कांग्रेस ने भी कई नियुक्तियों की घोषणा की है। अब जब से यह घोषणा हुई है, तब से यह चर्चा भी तेज़ हो गई है कि अब कांग्रेस भारत से ज़्यादा विदेशों में राजनीतिक माहौल बनाने में लगी है।
कांग्रेस लगातार दो लोकसभा चुनाव और कई विधानसभा चुनाव हार चुकी है, बावजूद इस के कांग्रेस देश में फ़ोकस करने से ज़्यादा विदेशों में अपनी स्थिति मज़बूत करने में लगी है। चर्चा यह भी है कि मोदी की इंटर्नैशनल पॉलिटिकल कंडीशन को देखते हुए कांग्रेस ने यह फ़ैसले किए हैं। अब इसमें कितनी सच्चाई है, ये तो कांग्रेस के आलाकमान ही जाने, लेकिन लगातार चुनावी शिकस्त की वजह से पार्टी की जो फ़ज़ीहत हुई है, उस को लेकर पार्टी कितनी संवेदनशील है यह आने वाला समय ही बताएगा।
अमित द्विवेदी