Mutthi Bhar Asman : मीनाक्षी सिंह की पहली किताब “बस तुम्हारे लिए” पिछली बार जब हाथ में आई थी तो उसे पढ़कर ही महसूस हुआ था कि कुछ समय बाद एकबार फिर से उनकी कोई नई किताब पढ़ने को जरूर मिलेगी।
यह सच भी हुआ, जब “मुट्ठी भर आसमान” ने एकबार फिर से आकर्षित किया।
सारा ब्रह्मांड हम आसमान की तरफ ही देखकर निहारते हैं, कोई भी नीचे की ओर नहीं देखता। लेखन कला से जुड़े लोगों की ख्वाहिश होती है कि वह आसमान में उड़े। मीनाक्षी ने सिर्फ एक मुठ्ठी आसमान को पकड़कर कुल 21 कहानियां रच दी हैं, यही क्या कम है।
इनकी कहानियों की बहुत सारी बातें उन आधुनिक समाज के रिश्तों से जुड़ी दिखाई देती हैं जो दिखने में तो पर्दे के भीतर हैं, किन्तु जब हम उनकी परतों को कुदेरते हैं तो अचानक से सामने एक आश्चर्य खड़ा हो जाता है।
बेजान रिश्तों के बीच की अधूरी ख्वाहिश
पहली कहानी “अधूरी ख्वाहिश” है जो बेजान से रिश्तों के बीच घूमती है। पति-पत्नी के रिश्तों का बेजान हो जाना कहाँ तक घातक हो सकता है, यह बात इस कहानी में सरलता से समझा दिया गया है।
यह कोई जरूरी नहीं कि एक व्यक्ति हमेशा किसी महान व्यक्तित्व से ही सीखता आया हो। कोई भी घटना आपकी आंखें खोल सकती हैं और कोई भी व्यक्ति, जो आपके आसपास है, चाहे वह आपके घर कामवाली ही क्यों न हो, वह भी एक बड़ी सीख देने की कूबत रखती है। कुछ ऐसा ही कहानी “मुट्ठी भर एहसान” में है।
पति-पत्नी के बीच झगड़े के कई कारण हो सकते हैं, किन्तु मीनाक्षी सिंह ने “मुट्ठी भर एहसान” में जिन कारणों को समझया है वह इस कहानी को पढ़कर ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
इस किताब ने कुल 21 कहानियां हैं और यदि कोई इसे गम्भीरता से पढ़ ले तो वह लेखिका को 21 तोपों की सलामी देना चाहेगा!!
एक कहानी है “मैं पुरूष हूँ” जिसमें लेखिका ने कुछ अलग ही नजरिये से एक पुरूष के मन के जकड़न को पकड़ा है। दुनिया में जिसे हम समाज कहते हैं वह कोई स्थिर रहने वाली चीज नहीं है। यह परिभाषा कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, यहां पर आकर संदेह के घेरे में आ जाता है। इंसान अपनी मर्जी से जब अपने खुद के परिवार का सत्यनाश करने पर तुला हो तो उसे कौन रोक सकता है? यहां पुरूष नहीं, बल्कि एक महिला की मनःस्थिति को लेखिका ने मानों चिमटे से पकड़कर अपनी कलम के अंदर डाल लिया हो, इस कहानी को पढ़कर कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है।
“आईने की तरह साफ जिंदगी” पढ़िए अथवा अपना “आखरी फर्ज” निभाइये, आपको तो हर कहानी में कुछ न कुछ ऐसी बातें जरूर मिल जाएंगी जिससे शायद आप परिचित न हों! हाँ, कुछ कहानियों के शीर्षक, ऐसे प्रतीत होते हैं मानों गुस्से में लिखी गयी हों। इनमें से “दोगले लोग” एक है। एक महिला का दूसरी महिला के साथ आपसी रिश्ते कभी -कभी इस कदर बिगड़ जाते हैं कि उसे अक्सर कथाओं में बयान नहीं किया जा सकता। किन्तु मीनाक्षी सिंह ने ऐसे रिश्तों को भी सामने लाया और शायद यही कारण रहा होगा कि कहानी का शीर्षक कुछ ऐसा बन गया हो।
कुल 111 पेज की यह कथा संग्रह हर्फ़ पब्लिकेशन , नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है। किताब की कीमत मात्र 150 रुपये है तो जेब पर अधिक भार नहीं पड़ने वाला।
यहां पर हम यह कहना चाहेंगे कि एक अच्छी सी किताब को हाथ में रखने के लिए किसी भी पढ़ाकू इंसान को जेब खाली होने का भय कभी भी नहीं सताता । आखिरकार किताब इंसान के हाथों में रखा एक बाग की तरह ही तो है।
मीनाक्षी सिंह फ़ेसबुक पर हमारी मित्रों की सूची में बहुत ऊपर रही हैं। आजकी दुनिया में,खासकर हिंदी सहित्य की दुनिया में, मुँह फुला कर बैठने से बेहतर है कि लोग अपने मित्रों का खुले मन से समर्थन करें। कुछ भी रचने में समय और मेहनत लगती है। सोशल मीडिया पर एक पोस्ट भी कोई मेहनत से ही लिखता/लिखती हैं, यहां तो एक कहानी संग्रह की बात है। तो, मेहनत बर्बाद न हो इन्हीं शुभकामनाओं के साथ मीनाक्षी सिंह को बहुत बधाई ।
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