शिखा पाण्डेय,
दीन दुखियों की सेवा करने वाली नन मदर टेरेसा को आज ‘संत’ घोषित कर दिया गया। पोप फ्रांसिस ने वेटिकन के सेंट पीटर्स स्कवायर में एक लाख श्रद्धालुओं की मौजूदगी में उन्हें संत की उपाधि दी।
पोप फ्रांसिस ने लैटिन भाषा में कहा कि वे कोलकाता की टेरेसा को संत घोषित करते हैं और उन्हें संतों की सूची में शामिल करते हैं। उन्होंने कहा कि अब से वह सभी चर्चों के लिये श्रद्धेय हैं।
इस कार्यक्रम को शांतिपूर्ण बनाने के लिए करीब 3,000 अधिकारियों को तैनात किया गया था। एकत्र भीड़ में शामिल रहे करीब 1,500 गरीब लोगों की देखभाल टेरेसा की ‘मिशनरी ऑफ चैरिटी’ की इतालवी शाखाएं कर रही हैं। संत की उपाधि दिए जाने के बाद फ्रांसिस के अतिथियों के लिए वेटिकन में पिज्जा भोजन कराया गया जिसे 250 सिस्टर और 50 पुरुष सदस्यों ने परोसा।
20 वीं सदी की महानतम हस्तियों में शामिल मदर टेरेसा करीब चार दशकों तक कोलकाता में रहीं और वहां उन्होंने बीमार और दीन दुखियों की सेवा में अपना जीवन गुजार दिया। कल उनकी 19वीं बरसी है। 5 सितम्बर 1997 में कोलकाता में उनका निधन हो गया था।
महान ‘संत’ मदर टेरेसा का संक्षिप्त जीवन परिचय-
टेरेसा का जन्म 1910 में ओट्टोमन अंपायर के तत्कालीन भाग स्कोप्जे में एक कोसोवर अल्बानियाई परिवार में हुआ था। यह इलाका अब मेसिडोनिया की राजधानी है। उनके बचपन का नाम एग्निस गोंक्शा बोजाशियू था। उनके पिता कारोबारी थे। जब वह सिर्फ आठ साल की थीं, तभी उनके पिता का निधन हो गया था ।बचपन से वह कैथलिक पूजास्थलों में जाया करती थीं और अपना जीवन मिशनरी के कामों में लगाना चाहती थीं।
टेरेसा युवावस्था में भारत में रहीं, इस अवधि के दौरान पहले उन्होंने शिक्षण किया और फिर दीन दुखियों की सेवा की। उन दिनों गरीबों की सेवा करने के उनके तरीके की कई लोगों ने आलोचना भी की पर उन्होंने अपने तरीके का पुरजोर बचाव किया। जो लोग कहते थे कि जन्म को रोकना गरीबी से लड़ने का अहम तरीका है, उन्हें मदर टेरेसा जवाब देती थीं कि गर्भपात मां द्वारा की गयी सीधी हत्या है।
तत्कालीन कलकत्ता में उनके सेवा कार्यों को लेकर उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया।
उन्हें ईसाई मूल्यों के लिए आत्म बलिदान और परमार्थ सेवा के पथ प्रदर्शक के रूप में दुनिया भर में जाना जाता है।