Taliban Latest News : भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने एक बहुत अच्छी बात कही थी युद्ध एवं शांति पर.. उनके अनुसार
“आँख के बदले में आँख पूरे विश्व को अँधा बना देगी ” वर्तमान काल में इस शब्द कें क्या आयाम हैं, यह कह पाना तो थोड़ा कठिन है परंतु अगर गहन अध्ययन किया जाए तो पाते हैं कि यह वाक्य हर काल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सक्षम है..
बीते दिनों कुछ खबरें ऐसी मिली जहां हिंसा, अशांति, दर्द अपने चरम पर रहा फिर चाहे वह अफीक्रा में हों रही हिंसा की घटनाएं हों या फिर पुनर्जागृत होते तालिबान की कहानियां.. भारतीय फोटो जर्नलिस्ट की मौत अफगानी कमांडर के अनुसार तालिबान की ओर से की जा रही गोलीबारी में भारतीय पत्रकार सहित एक अफगान अधिकारी भी मारे गए। इस खबर ने ना सिर्फ भारतीय मीडिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया बल्कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया के समक्ष भी असमंजस भरी स्थिति पैदा कर दी.. “क्या तालिबान फिर से अपने रुख पर आ चुकी हैं”
वास्तव में तालिबान के पिछले कारनामों से सिर्फ अफगानिस्तान हीं नहीं बल्कि सारी दुनिया परिचित हैं.. अमेरिका एवं तालिबानी लड़ाकों के बीच संघर्ष कोई नया नहीं हैं लगभग दों दशक से चल रहें इस खूनी संघर्ष में ना जाने कितने ही जानें गयी फिर चाहे वह सैनिक हों, तालिबानी लड़ाकें या फिर आम नागरिक लेकिन अमेरिका के द्वारा अब इस संघर्ष पर विराम लगने वाला हैं.. पिछले साल फरवरी के महीने में कतर के दोहा में तालिबान के वार्ताकार मुल्ला बिरादर एवं दूसरी ओर से अमेरिका के वार्ताकार ज़लमय खलीलजाद ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किया था जिसके अंतर्गत अगले 14 महीने में अमेरिका अफगानिस्तान से अपने सभी सैन्य बलों को वापस बुला लेंगी.
समझौते के अनुसार, अफगानिस्तान में मौजूद अपने सैनिकों की संख्या में अमेरिका धीरे-धीरे कमी लाएगी। इसके तहत अग्रिम छह माह में करीब 8,600 सैनिकों को वापस अमेरिका भेजा जाएगा। हालांकि इस समझौते की बुनियाद तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्ंम्प के समय ही गढ़ी गयी थी इसके बाद अमेरिका में सत्ता परिवर्तन हुआ एवं ट्ंम्प के जगह राष्ट्रपति की गद्दी जों बाइडन ने संभाली उनके सत्ता में आने के बाद कयास लगाए जा रहे थे इस समझौते पर पुनर्विचार किया जायेगा.. हालांकि समझौते की कोशिश पुर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय भी की गई थी पर तालिबान समर्थक इस मुद्दे को मानने को तैयार नहीं हुए थे..अब अमेरिका अपने सैनिकों को उनके वतन भेजने की कवायद में तेजी ला रहा हैं वहीं दूसरी ओर तालिबान का वही पुराना स्वरूप वापस देखने को मिलना आरंभ हो चुका हैं..समझौते के अनुसार तालिबान ने अपने नियंत्रण वाले इलाक़े में अल क़ायदा और दूसरे चरमपंथी संगठनों के प्रवेश पर पाबंदी लगाने की बात कही थी और राष्ट्रीय स्तर की शांति बातचीत में शामिल होने का भरोसा भी दिया था.
लेकिन समझौते के अगले साल से ही तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के आम नागिरकों और सुरक्षा बलों को निशाना बनाना जारी रखा.
अब जब अमेरिकी सैनिक अफ़ग़ानिस्तान से विदा होने की तैयारी कर रहे हैं तब तालिबानी समूह तेजी से पूरे देश अपने पांव पसार रहा हैं.. जिस वजह से मध्य एशिया के देशों के लिए यह एक गहन चिंतन का विषय बनता जा रहा हैं.
90 के दशक का शायद ही कोई बच्चा ऐसा होगा जो कि “तालिबान” के नाम से परिचित नहीं होगा उनके नृशंस कांडों से भयभीत नहीं होगा..जब 2011 में अमेरिका के सील कमांडो ने पाकिस्तान के एबोटाबाद में घुस कर तालिबानी आतंकी ओसामा बिन लादेन का खात्मा किया था तों पूरे विश्व में जश्न की लहर दौड़ गई थी सब ने कहा कि यह श्रद्धांजलि हैं 9/11 हमलों में मारें गयें लोगों की जी हां न्यूयॉर्क के ट्विन टावर्स और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 11 सितंबर 2001को 19 अल कायदा आतंकियों ने जानबूझकर दो विमानों को टकरा दिया था माना जाता हैं कि मानवीय इतिहास में इससे दूर्दांत हमला और कुछ नहीं था.. इसमें सिर्फ अमरीकी मूल के नागरिक हीं नहीं बल्कि अन्य देशों के लोग भी कार्यरत थें जिनकी मौत हों गई थी..इस हमलें का मास्टर माइंड ओसामा बिन लादेन हीं था.
तालिबान के पुनर्जागृत होने से समस्या ना सिर्फ अफगानिस्तान के लिए हैं बल्कि चिंता का विषय संपूर्ण मध्य एशियाई देशों के लिए हैं.. बीते वर्षों में भारत और अफगानिस्तान के संबंध बहुत मजबूत हुए हैं.. आधारभूत संरचना एवं विभिन्न परियोजनाओं कें पुनर्निर्माण में भारत अब तक तीन अरब डॉलर से अधिक का निवेश कर चुका है.
भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के संसद भवन का निर्माण किया है और अफ़ग़ानिस्तान के साथ मिलकर एक बड़ा बाँध भी बनाया है. भारत ने शिक्षा और तकनीकी सहायता भी दी है. साथ ही, भारत ने अफगानिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों में निवेश को भी प्रोत्साहित किया है.
ज़ाहिर है, इस तरह के सुदृढ़ संबंध के कारण भारत अफ़ग़ानिस्तान में किए अपने निवेशों के लिए चिंतित है. तालिबान जिस तरह की हिंसा अफ़ग़ानिस्तान में कर रहा है उस स्थिति में उसके सत्ता हासिल कर लेने की वैधता पर भारत के लिए चिंताजनक स्थिति उत्पन्न होने की संभावना हैं वहीं दूसरी ओर भारत के लिए चिंता का माहौल पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अपनी सामरिक बढ़त खोने को लेकर भी हैं. अफ़ग़ानिस्तान में भारत के मज़बूत होने का एक मनोवैज्ञानिक और सामरिक दबाव पाकिस्तान पर रहता है, वहाँ भारत की पकड़ कमज़ोर होने का मतलब है पाकिस्तान का दबदबा बढ़ना एवं मजबूत होना.
तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य को लेकर तालिबान का स्टैंड स्पष्ट किया कहा कि “जब बातचीत के बाद काबुल में ऐसी सरकार बनेगी जो सभी पक्षों को स्वीकार होगी और अशरफ़ गनी की सरकार चली जाएगी तो तालिबान अपने हथियार डाल देगा.” बीतें दिनों अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ गनी ने अपने भाषण में तालिबान पर हमला करने की बात कही थी. जिसके जवाब में तालिबान ने अशरफ़ गनी को जंग का सौदागर करार दिया है.
तालिबान का इतिहास कोई नया नहीं हैं..
1980 का दशक खत्म होते-होते सोवियत संघ के अफगानिस्तान के जाने के बाद वहां पर कई गुटों में आपसी संघर्ष शुरू हो गया था इस संघर्ष से उत्पन्न तनाव को खत्म करने के लिए जब तालिबान सामने आया तो अफगानिस्तान के लोगों ने उसका स्वागत किया था.
कहा जाता है कि शुरुआत में तालिबान ने अफगानिस्तान में मौजूद भ्रष्टाचार को काबू में किया और अव्यवस्था पर नियंत्रण लगाया. आज डर और दहशत का पर्याय बन चुके तालिबान ने अपने नियंत्रण में आने वाले इलाको को सुरक्षित बनाया ताकि लोग व्यवसाय कर सकें.
तालिबान दरअसल सुन्नी इस्लामिक आंदोलन था जिसकी शुरुआत सन् 1994 में दक्षिणी अफगानिस्तान में हुई थी.
पश्तो भाषा के शब्द तालिबान का अर्थ होता है “विद्यार्थी” यानी वह छात्र जो इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा में यकीन करते हैं. तालिबान को एक राजनीतिक आंदोलन के तौर पर माना गया जिसकी सदस्यता पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को मिलती है.नॉर्थ पाकिस्तान में 1990 के दशक में तालिबान और ज्यादा ताकतवर हुआ. उस समय अफगानिस्तान से सोवियत संघ की सेनाओं की वापसी हो रही थी. पश्तूनों के नेतृत्व में तालिबान और ज्यादा ताकतवर हुआ. कहते हैं कि तालिबान सबसे पहले धार्मिक आयोजनों या मदरसों के जरिए मजबूत होता गया और इसका ज्यादातर पैसा सऊदी अरब से आता था. शरीया कानून को तरजीह देते हुए तालिबान ने सज़ा देने के इस्लामिक तौर तरीकों को लागू किया जिसमें हत्या और व्याभिचार के दोषियों को सार्वजनिक तौर पर फांसी देना और चोरी के मामलों में दोषियों के अंग भंग करने जैसी सजाएं शामिल थीं.
पुरुषों के लिए दाढ़ी और महिलाओं के लिए पूरे शरीर को ढकने वाली बुर्क़े का इस्तेमाल ज़रूरी कर दिया गया. तालिबान ने टेलीविजन, संगीत और सिनेमा पर पाबंदी लगा दी और 10 साल और उससे अधिक उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लगा दी.
हालांकि वर्तमान स्थिति पर तालिबान ने कहा है अब हमारे नियमों एवं नीतियों में काफी बदलाव किया गया हैं हम भी अमन चाहते हैं.
हालांकि उनके कायाक्लपों से यह प्रतीत नहीं होता हैं कि वह शांति स्वरूप से तंत्र में आना चाह रहे हैं अफगानिस्तान के लगभग 90% इलाके जों हैं उस पर तालिबान समर्थकों नें अपना कब्जा जमा रखा है. अफगानिस्तान की धरती बीते तीन दशकों से जंग का दंश झेल रही हैं अब वहां की आवाम भी शांति व्यवस्था चाहती हैं. आम जनता में भी दहशत का आलम बना हुआ हैं ऐसे लोग जिन्होंने कभी तालिबान के खिलाफ आवाज उठाई थी या उनके विरोध कुछ बोलने की हिम्मत दिखाई थी उन सबों को भी जान का खतरा काफी सता रहा हैं..एक अनुमान से यह भी पता चला है कि तालिबान के मुख्य टारगेट में भारत उच्च स्थान पर हैं.. इस कार्य में उसके पुराने साथी पाकिस्तान का सहयोग भी अपेक्षित है वहीं दूसरी ओर अफगानिस्तान में रह रहे भारतीय जनता के लिए भी खतरा साफ साफ दिख रहा हैं.. भयभीत पाकिस्तान भी हैं क्योंकि अफगानिस्तान से पाकिस्तान का एक बड़ा सीमावर्ती इलाका आता हैं जिस पर क़ब्जे के लिए तालिबान तत्पर हैं इसलिए ख़तरे की घंटी पाकिस्तान के लिए भी हैं..मगर उसे खुशी खुद की बर्बादी से ज्यादा भारत में अस्थिरता उत्पन्न करने से हैं.. भारत के लिए चुनौतियां कई हैं एक ओर जहां भारत उसे अफगानिस्तान के साथ अपने संबंध की मधुरता को बरकरार रखना हैं वहीं अपने नागरिकों की सुरक्षा को भी ध्यान में रख कर आगे बढ़ने का भी हैं.. तालिबान वक्तव्य करने हेतु भारत से तत्पर हैं तों वहीं उसकी शर्तों की जटिलता भी कुछ कम नहीं हैं.. तालिबान पुनः सरकार में आतीं हैं कि नहीं यह तो बाद की बात हैं..पर पुरा विश्व चाहता हैं अफगानिस्तान के हालात फिर से सुदृढ़ हों एवं खुश ख़राबे का माहौल समाप्त हो कर राष्ट्र एक बार फिर से प्रगति की ओर बढ़ चलें.
ये लेख आपको कैसा लगा हमें फेसबुक पेज पर जरुर बताएं