अनुज हनुमत | navpravah.com
लखनऊ| वक्फ संशोधन बिल 2024 (Waqf Amendment Bill 2024) भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित एक विधेयक है, जो वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करने के लिए लाया गया है। इसका उद्देश्य वक्फ बोर्ड के कामकाज, वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और पारदर्शिता को बेहतर बनाना है।
मुख्य बिंदु:
वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण: गैर-मुस्लिम संपत्तियों को वक्फ के दायरे से बाहर करने और अवैध कब्जे को रोकने के लिए नए प्रावधान।
पारदर्शिता और जवाबदेही: वक्फ बोर्ड के वित्तीय और प्रशासनिक कार्यों में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए ऑडिट और रिकॉर्ड-कीपिंग को मजबूत करना।
महिला और अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व: बोर्ड में महिलाओं और अन्य समुदायों के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना।
कानूनी विवादों का समाधान:
वक्फ संपत्तियों से संबंधित विवादों को तेजी से निपटाने के लिए बेहतर तंत्र।
कलेक्टर की भूमिका:
वक्फ संपत्तियों के सर्वे और विवादों के निपटारे में जिला कलेक्टर को अधिकृत करना।
यह बिल अगस्त 2024 में लोकसभा में पेश किया गया था, लेकिन इसे संसद की संयुक्त समिति (JPC) को भेजा गया है, जो इस पर चर्चा और सुझाव दे रही है। कुछ समुदायों और संगठनों ने इस बिल पर चिंता जताई है, जबकि सरकार का कहना है कि यह वक्फ प्रणाली को और मजबूत करेगा।
मोदी सरकार वक्फ संशोधन बिल 2024 को क्यों लाई?
मोदी सरकार का दावा है कि वक्फ संशोधन बिल 2024 का उद्देश्य वक्फ बोर्ड के कामकाज को और पारदर्शी, कुशल और समावेशी बनाना है।
इसके पीछे निम्नलिखित कारण बताए गए हैं:
पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना:
सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्ड की संपत्तियों के प्रबंधन में अनियमितताएं और भ्रष्टाचार की शिकायतें रही हैं। बिल के माध्यम से डिजिटल पोर्टल और ऑडिट जैसे उपायों से संपत्तियों का रिकॉर्ड व्यवस्थित करना और गलत इस्तेमाल रोकना चाहती है।
संपत्तियों का दुरुपयोग रोकना:
कुछ मामलों में वक्फ बोर्ड ने निजी या सरकारी संपत्तियों को वक्फ संपत्ति घोषित करने की शक्ति का दुरुपयोग किया है। बिल में सेक्शन 40 को हटाकर और जिला कलेक्टर को सर्वे का अधिकार देकर सरकार इसे नियंत्रित करना चाहती है।
समावेशिता को बढ़ावा: बिल में वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम और महिला सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान है, ताकि बोर्ड की संरचना को और व्यापक बनाया जा सके। सरकार का कहना है कि इससे पिछड़े और गरीब मुस्लिम समुदायों, जैसे पसमांदा मुस्लिमों, को फायदा होगा।
कानूनी सुधार: सरकार के अनुसार, यह बिल सच्चर समिति और अन्य समितियों की सिफारिशों पर आधारित है, जो वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और आय बढ़ाने की बात कहती हैं। इससे सामाजिक कल्याण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा।
सामाजिक न्याय: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि यह बिल गरीब मुस्लिमों, महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करेगा और वक्फ की मूल भावना को बनाए रखेगा।
वक्फ संशोधन बिल का विरोध क्यों हो रहा है?
वक्फ संशोधन बिल का कई विपक्षी दलों, मुस्लिम संगठनों और नेताओं ने विरोध किया है। इसके पीछे निम्नलिखित कारण हैं:
धर्म में हस्तक्षेप का आरोप: विपक्ष का कहना है कि यह बिल संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक समुदायों को अपनी धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार देता है। गैर-मुस्लिमों को बोर्ड में शामिल करने को धार्मिक स्वतंत्रता में दखल माना जा रहा है।
वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता पर खतरा: बिल में जिला कलेक्टर को वक्फ संपत्तियों के विवादों का निर्णय लेने का अधिकार देने से वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता कम होने की आशंका है। इसे बोर्ड को “निष्प्रभावी” बनाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
सामुदायिक ध्रुवीकरण का डर: विपक्षी नेता, जैसे असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस के सांसद, का कहना है कि यह बिल मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाता है और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकता है। उनका दावा है कि यह बिल बीजेपी की वोट बैंक राजनीति का हिस्सा है।
संवैधानिकता पर सवाल: कुछ आलोचकों का कहना है कि बिल में वक्फ बनाने के लिए “पांच साल तक इस्लाम का पालन” जैसी शर्तें संविधान के समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन करती हैं।
पर्याप्त विचार-विमर्श की कमी: विपक्ष और कुछ संगठनों का आरोप है कि बिल को जल्दबाजी में पेश किया गया और संयुक्त संसदीय समिति (JPC) में सभी हितधारकों की राय को पूरी तरह शामिल नहीं किया गया।
संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण का डर: आलोचकों को डर है कि बिल के प्रावधानों से सरकार वक्फ संपत्तियों पर अधिक नियंत्रण हासिल कर सकती है, जिससे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सामाजिक संस्थाएं प्रभावित हो सकती हैं।
सरकार का कहना है कि यह बिल वक्फ प्रणाली को आधुनिक और पारदर्शी बनाएगा, जिससे गरीब मुस्लिमों को लाभ होगा। वहीं, विपक्ष और आलोचक इसे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला मानते हैं। यह मुद्दा संवेदनशील है और इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिकाएं दायर की गई हैं।
मुस्लिम समुदाय और संगठनों द्वारा वक्फ संशोधन बिल 2024 का विरोध निम्नलिखित कारणों से हो रहा है:
धार्मिक स्वायत्तता में हस्तक्षेप का डर:
बिल में गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में शामिल करने का प्रावधान है। कई मुस्लिम संगठनों का मानना है कि यह इस्लामी धार्मिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप को बढ़ावा देगा, जो संविधान के अनुच्छेद 26 (धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार) का उल्लंघन करता है।
वक्फ बोर्ड की स्वतंत्रता पर खतरा:
बिल के तहत जिला कलेक्टर को वक्फ संपत्तियों के सर्वे और विवादों के निपटारे का अधिकार दिया गया है। आलोचकों का कहना है कि इससे वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता कम होगी और सरकारी नियंत्रण बढ़ेगा, जिससे बोर्ड निष्प्रभावी हो सकता है।
वक्फ संपत्तियों पर सरकारी कब्जे की आशंका:
कुछ मुस्लिम नेताओं और संगठनों को डर है कि बिल के प्रावधानों का इस्तेमाल वक्फ संपत्तियों को सरकारी नियंत्रण में लेने या गैर-वक्फ उद्देश्यों के लिए उपयोग करने के लिए किया जा सकता है। खासकर, सेक्शन 40 को हटाने से बोर्ड की संपत्ति घोषित करने की शक्ति सीमित हो जाएगी।
इस्लामी नियमों के खिलाफ प्रावधान:
बिल में वक्फ बनाने के लिए “पांच साल तक इस्लाम का पालन” जैसी शर्तें और वक्फ संपत्ति को केवल मुस्लिम व्यक्ति द्वारा ही दान करने की बाध्यता को इस्लामी कानून (शरिया) के खिलाफ माना जा रहा है। आलोचकों का कहना है कि वक्फ की परंपरागत परिभाषा और उद्देश्य को बदला जा रहा है।
सामुदायिक भावनाओं को ठेस:
कई मुस्लिम संगठन, जैसे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद, मानते हैं कि यह बिल समुदाय को निशाना बनाता है और मुस्लिमों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान पर हमला है। इसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
पर्याप्त परामर्श की कमी:
समुदाय के कई नेताओं का आरोप है कि बिल को तैयार करने और पेश करने से पहले मुस्लिम समुदाय के हितधारकों, जैसे वक्फ बोर्ड और धार्मिक संगठनों, के साथ पर्याप्त विचार-विमर्श नहीं किया गया। इससे समुदाय में असंतोष बढ़ा है।
विवादों को बढ़ावा देने का डर:
बिल के कुछ प्रावधान, जैसे पुरानी संपत्तियों का पुनः सर्वेक्षण, को लेकर आशंका है कि इससे नए कानूनी विवाद पैदा हो सकते हैं, जिससे मुस्लिम समुदाय को लंबी कानूनी लड़ाई का सामना करना पड़ सकता है।
मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा वर्ग इस बिल को अपनी धार्मिक स्वतंत्रता, वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा और बोर्ड की स्वायत्तता के लिए खतरे के रूप में देखता है। उनका मानना है कि यह बिल वक्फ की मूल भावना और इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ है। हालांकि, सरकार का कहना है कि यह सुधार समुदाय के हित में हैं, लेकिन इन चिंताओं ने व्यापक विरोध को जन्म दिया है।
पश्चिम बंगाल में वक्फ संशोधन बिल 2024 (जो अब 2025 में कानून बन चुका है) का विरोध कई कारणों से हो रहा है:
धार्मिक स्वतंत्रता पर हमले का डर:
मुस्लिम समुदाय और स्थानीय संगठनों का मानना है कि बिल में गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने और जिला कलेक्टर को संपत्ति विवादों का अधिकार देने जैसे प्रावधान धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप हैं। इसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन माना जा रहा है, जो धार्मिक स्वतंत्रता और संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार देता है।
राजनीतिक विरोध:
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने इस बिल का कड़ा विरोध किया है। ममता बनर्जी ने इसे “मुस्लिम विरोधी” और “देश को बांटने वाला” करार दिया है। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार इसे राज्य में लागू नहीं होने देगी। यह विरोध TMC की मुस्लिम वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है, क्योंकि पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी लगभग 27% है।
हिंसक प्रदर्शन और सामुदायिक तनाव:
मुर्शिदाबाद, मालदा और अन्य जिलों में बिल के खिलाफ प्रदर्शन हिंसक हो गए, जिसमें पुलिस वाहनों में आग लगाई गई और पथराव हुआ। प्रदर्शनकारियों का मानना है कि यह बिल वक्फ संपत्तियों को कमजोर करेगा और समुदाय की धार्मिक विरासत को खतरे में डालेगा। ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि यह केंद्र का कानून है, न कि राज्य का।
वक्फ संपत्तियों पर कब्जे की आशंका:
स्थानीय मुस्लिम संगठनों और नेताओं को डर है कि बिल के प्रावधान, जैसे संपत्तियों का पुनः सर्वेक्षण और लिमिटेशन एक्ट का लागू होना, वक्फ संपत्तियों को गैर-मुस्लिमों या कॉरपोरेट्स के हवाले करने की साजिश है। खासकर, पश्चिम बंगाल में वक्फ संपत्तियां (जो देश में 9% हैं) आर्थिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण हैं।
बांग्लादेश में वक्फ संशोधन बिल 2024 का विरोध क्यों हो रहा है?
बांग्लादेश में भारत के इस कानून को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं देखी जा रही हैं, और विरोध के निम्नलिखित कारण हैं:
मुस्लिम भावनाओं को ठेस का दावा:
बांग्लादेश में इस्लामी संगठन, जैसे इस्लामी छात्रशिबिर, इसे भारत में मुस्लिमों के खिलाफ कानून मानते हैं। उनका कहना है कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना और सरकारी हस्तक्षेप बढ़ाना वक्फ की धार्मिक पवित्रता को नुकसान पहुंचाता है। ढाका में मानव शृंखला बनाकर इसका विरोध किया गया।
क्षेत्रीय धार्मिक एकजुटता:
बांग्लादेश में कुछ समूह इसे भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के प्रतीक के रूप में देखते हैं। इसे लेकर सोशल मीडिया और स्थानीय प्रेस में भारत सरकार की आलोचना की जा रही है, जिससे वहां के धार्मिक संगठनों ने विरोध को हवा दी है।
राजनीतिक और कूटनीतिक संदर्भ:
बांग्लादेश में भारत के आंतरिक कानूनों पर प्रतिक्रिया असामान्य है, लेकिन वक्फ जैसे संवेदनशील धार्मिक मुद्दे पर चर्चा को कुछ संगठन भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव बढ़ाने के अवसर के रूप में देखते हैं। यह विरोध वहां की इस्लामी पार्टियों और संगठनों द्वारा भारत के खिलाफ भावनाएं भड़काने का प्रयास भी हो सकता है।
गलत सूचना और प्रचार:
बांग्लादेश में कुछ समूहों ने बिल को गलत तरीके से पेश किया है, जैसे कि यह मस्जिदों और वक्फ संपत्तियों को खत्म करने वाला कानून है। इससे वहां के लोगों में भ्रामक धारणा बनी, जिसने विरोध को बढ़ावा दिया।
पश्चिम बंगाल में विरोध मुख्य रूप से स्थानीय राजनीति, मुस्लिम वोट बैंक और वक्फ संपत्तियों पर संभावित प्रभाव के डर से जुड़ा है, जिसे ममता बनर्जी ने और तेज किया है। बांग्लादेश में यह विरोध धार्मिक भावनाओं, क्षेत्रीय एकजुटता और भारत विरोधी प्रचार से प्रेरित है। दोनों जगह इसे मुस्लिम अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता पर हमले के रूप में देखा जा रहा है, हालांकि भारत सरकार का कहना है कि यह सुधार पारदर्शिता और समावेशिता के लिए हैं।
लेखक नवप्रवाह उत्तर प्रदेश के ब्यूरो चीफ हैं।