राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का आह्वान: ‘भव्य भवन के अनुरूप संघ कार्य को बनाना होगा भव्य’

नृपेन्द्र कुमार मौर्य| Navpravah.com

नई दिल्ली|  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने झंडेवालान में पुनर्निर्मित ‘केशव कुंज’ के प्रवेशोत्सव कार्यक्रम में संघ कार्य के विस्तार और उसकी भव्यता को और भी व्यापक बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि जैसे यह भवन भव्य है, वैसे ही संघ के कार्यों की भव्यता भी दिखनी चाहिए और इससे भारत को विश्वगुरु बनाने का लक्ष्य पूरा होगा।

संघ कार्य को सतत विस्तार देने की अपील

सरसंघचालक भागवत ने उपस्थित स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा, “देश में संघ कार्य गति पकड़ रहा है और इसका विस्तार भी हो रहा है। हमें इसे और भी भव्य बनाना होगा ताकि हमारे कार्यों से इसकी अनुभूति हो सके। संघ का कार्य पूरे विश्व में फैलेगा और भारत को विश्वगुरु के पद पर आसीन करेगा, इसमें हमें पूर्ण विश्वास है। लेकिन इसके लिए संघ के स्वयंसेवकों को सतत पुरुषार्थ करना होगा।”

उन्होंने आगे कहा कि संघ के विभिन्न आयामों के माध्यम से कार्य विस्तृत हो रहा है, इसलिए प्रत्येक स्वयंसेवक के व्यवहार में सामर्थ्य और शुचिता का होना अनिवार्य है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ की दशा बदली है, लेकिन उसकी दिशा नहीं बदलनी चाहिए। भागवत ने कहा, “समृद्धि आवश्यक है, लेकिन उसे मर्यादा में रहकर अर्जित करना चाहिए। इस पुनर्निर्मित भवन की भव्यता के अनुरूप ही कार्य को भव्य बनाना होगा।”

संघ के इतिहास का उल्लेख

डॉ. भागवत ने आरएसएस के शुरुआती दौर की कठिनाइयों का भी उल्लेख किया और नागपुर के पहले कार्यालय ‘महाल’ की शुरुआत के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “दिल्ली देश की राजधानी है और यहां से ही सूत्रों का संचालन होता है, इसलिए यहां कार्यालय की आवश्यकता महसूस हुई। यह भव्य भवन तैयार हो गया है, लेकिन मात्र इसका निर्माण ही कार्य की समाप्ति नहीं है। हमें अनुकूलता के वातावरण में भी सतर्क रहने की आवश्यकता है।”

कार्यालय के वातावरण की चिंता करना हर स्वयंसेवक का कर्तव्य

सरसंघचालक ने कहा, “कार्यालय हमें कार्य की प्रेरणा देता है, लेकिन उसके वातावरण की पवित्रता और शुचिता बनाए रखना हर स्वयंसेवक का कर्तव्य है।” उन्होंने संघ की मूल विचारधारा और अनुशासन पर जोर देते हुए कहा कि भव्य भवन में भव्य कार्य तभी संभव होंगे जब संघ के स्वयंसेवक नैतिकता और अनुशासन को सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे।

गोविंददेव गिरी जी और अन्य संतों के आशीर्वचन

श्रीराम जन्मभूमि न्यास के कोषाध्यक्ष पूज्य गोविंददेव गिरी जी महाराज ने इस अवसर पर कहा कि यह दिन विशेष है क्योंकि यह श्री गुरुजी और छत्रपति शिवाजी की जयंती का भी दिन है। उन्होंने कहा, “शिवाजी संघ की विचार शक्ति हैं। छत्रपति शिवाजी ने ऐसे मावले तैयार किए जो थकते नहीं, रुकते नहीं, झुकते नहीं और बिकते नहीं। संघ के स्वयंसेवक भी शिवाजी के तपोनिष्ठ मावलों के समान हैं।”

उदासीन आश्रम दिल्ली के प्रमुख संत राघावानंद जी महाराज ने कहा कि संघ ने समाज के प्रति समर्पण भाव से कार्य किया है और हर वर्ग के उत्थान के लिए काम किया है। उन्होंने कहा, “संघ 100 वर्ष पूरे कर चुका है और यह डॉ. हेडगेवार के प्रखर संकल्प का परिणाम है।”

केशव कुंज का पुनर्निर्माण और उसकी विशेषताएं

श्री केशव स्मारक समिति के अध्यक्ष आलोक कुमार ने केशव कुंज के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया और इसके विभिन्न चरणों की जानकारी दी। उल्लेखनीय है कि 1939 में दिल्ली में इसी स्थान पर एक छोटा सा भवन बनाया गया था, जिसे समय-समय पर विस्तारित किया गया। 2016 में वर्तमान भवन का शिलान्यास किया गया और अब यह तीन भव्य टॉवरों के साथ तैयार है – 1. साधना, 2. प्रेरणा, और 3. अर्चना।

इसके अलावा, इसमें एक आधुनिक अशोक सिंहल सभागार, केशव पुस्तकालय, ओपीडी चिकित्सालय, साहित्य भंडार, सुरुचि प्रकाशन, 150 किलोवाट का सोलर प्लांट और 140 केएलडी क्षमता का एसटीपी प्लांट भी है। भवन में एक दिव्य हनुमान मंदिर भी स्थापित है, जो पहले की तरह ही अपनी सुंदरता और आध्यात्मिकता को संजोए हुए है।

उपस्थित गणमान्य व्यक्ति और स्वयंसेवकों का उत्साह

प्रवेशोत्सव में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा, संघ के वरिष्ठ अधिकारी दत्तात्रेय होसबाले, डा. कृष्ण गोपाल, अरुण कुमार, सुरेश सोनी, रामलाल, नरेन्द्र ठाकुर, इंद्रेश कुमार, प्रेम गोयल, और रामेश्वर सहित अनेक वरिष्ठ स्वयंसेवक उपस्थित थे।

दिल्ली प्रांत संघचालक डॉ. अनिल अग्रवाल ने कहा, “केशव कुंज का पुनर्निर्माण केवल एक भवन का निर्माण नहीं है, बल्कि यह संघ के कार्य और विचारधारा को एक नई ऊंचाई देने का प्रयास है।” उन्होंने बताया कि इस भवन का निर्माण इस तरह किया गया है कि यह आधुनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ संघ के सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी मूल्यों को भी प्रतिबिंबित करता है।

संघ कार्य के प्रति समर्पण का संदेश

डॉ. मोहन भागवत ने अपने संबोधन के अंत में स्वयंसेवकों को संदेश दिया कि संघ कार्य के प्रति समर्पण और पुरुषार्थ ही संघ को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। उन्होंने कहा, “हमें अनुकूलता के वातावरण में भी जागरूक रहना होगा, क्योंकि यह समय स्वयंसेवकों के लिए और भी अधिक सतर्कता का है।”

संघ की भव्यता का प्रतीक – केशव कुंज

केशव कुंज का यह नवनिर्मित भवन संघ के विस्तार और उसकी भव्यता का प्रतीक है। यह केवल एक भवन नहीं, बल्कि संघ की विचारधारा, उसकी भव्यता और उसके विस्तार का प्रतीक है। सरसंघचालक मोहन भागवत के नेतृत्व में संघ ने एक बार फिर यह संदेश दिया है कि यह संगठन न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में भारतीय संस्कृति और विचारधारा को स्थापित करने के लिए कृतसंकल्पित है।

संघ की दिशा और दशा पर विशेष जोर

डॉ. भागवत ने अपने वक्तव्य में स्पष्ट किया कि संघ की दशा बदल रही है, लेकिन दिशा नहीं बदलनी चाहिए। उन्होंने संघ कार्य को मर्यादा में रहकर करने की नसीहत दी और कहा, “हमें अपनी आखों से भारत को विश्वगुरु बनते देखना है, इसके लिए सतत पुरुषार्थ की आवश्यकता है।”

इस भव्य प्रवेशोत्सव ने संघ के भविष्य की भव्यता और इसके वैश्विक विस्तार की दिशा को और भी स्पष्ट किया है।

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