आज से हज़ारों वर्ष पूर्व भरत मुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र की प्रस्तावना में उल्लेख है कि जब देवताओं और दानवों के बीच सहस्राब्दियों से चल रहे युद्ध पर सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने अपने प्रयास से युद्ध विराम लगवाया तो कुछ समय तो समुद्र मंथन में व्यतीत हो गया जिसमे दोनों – देवताओं और दानवों ने भाग लिया था।
परन्तु उसके पश्चात दोनों के सामने समय व्यतीत करने की समस्या खड़ी हो गई। युद्ध दोनों पक्षों को दिन रात व्यस्त रखता था मगर अब शांति काल होने के कारण दोनों के पास खाली समय था और उस समय का उपयोग करने के लिए कोई उपक्रम न होने के कारण वो बहुत ऊब रहे थे। उबासी इतनी बढ़ी कि वो परेशान होकर वापिस ब्रह्मा जी के पास गए और अपना दुखड़ा उन्हें सुनाया। उनका दुखड़ा सुन कर ब्रह्मा जी उन पर करुणा करते हुए बोले – जीवन का मार्गदर्शन करने के लिए मैंने जिन चार वेदों की रचना की है उनका लाभ केवल साक्षर ही उठा सकते हैं अतैव अब मैं एक ऐसे पांचवे वेद की रचना करूंगा जिसे देखा भी जा चुके और सुना भी जा सके (दृश्यम-श्रव्यम) जिसका आनंद साक्षर धनाढ्य भी उठा सकेंगे और असाक्षर श्रमजीवी भी। ब्रह्मा जी आगे बोले – मैं इसमें ऋग्वेद से ज्ञान, सामवेद से गान, यजुर्वेद से ध्यान, अथर्वेद से मान के अतिरिक्त इतिहास का समावेश करूँगा ताकि जीव अतीत में घटित घटनाओं से प्रेरणा एवं मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें। ये कह कर ब्रह्मा जी ने नाट्यवेद की रचना की जिसमे नाट्यविद्या के सभी पहलुओं एवं अवयवों का विस्तृत वर्णन है।
नाट्यवेद को असुरों एवं देवों को प्रदान करते हुए उसके प्रयोग से होने वाले लाभों को गिनाते हुए ब्रह्मा जी ने कहा ये नाट्यवेद जो मैं तुम्हे प्रदान कर रहा हूँ इसके प्रयोग से उत्पन्न दृश्यों और ध्वनियों के दर्शन एवं श्रवण से जीवों को तीन लाभ होंगे। मनोरंजन, मानसिक विश्रांति एवं हितोपदेश अर्थात जीवन को बेहतर बनांने के लिए प्रेरित करने वाला सन्देश। कालान्तर में नाट्यवेद, नाट्यशास्त्र के नाम से प्रचलित हुआ और सदियोँ के निरन्तर प्रयोग से भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का अभिन्न अंग बन गया।
जब यवनों का भारत पर राज्य चला जिनकी मान्यता के अनुसार नाट्य अधार्मिक होने के कारण वर्जित था उस दौरान वो लोकनाट्य का रूप धारण कर यवनों की राजधानी और छावनियों से दूर भारत के ग्रामीण परिवेश में जीवित रहा। अंग्रेज़ों के आगमन के साथ नाट्य पुनःशेक्सपियर के नाटकों के रूप में पुनर्स्थापित होकर राजकीय वर्जना से मुक्त हुआ और अंग्रेज़ों की तात्कालिक राजधानी कोलकाता में बंगाली नाटकों का प्रचलन आरम्भ हुआ जिसे रबीन्द्रनाथ टैगोर ने उसकी पराकष्ठा तक पहुँचाया। कोलकाता से प्रेरित होकर मुंबई में सर जीजीभाय ने हिंदी एवं गुजराती नाटकों के मंचन के परम्परा की नींव रखी जो पारसी थिएटर के नाम से लोकप्रिय हुई।
पारसी थिएटर के अधिकतर नाटक आग़ा हश्र कश्मीरी द्वारा लिखित थे जो भारतीय पौराणिक धरोहर के अतिरिक्त अलिफ़ लैला एवं शेक्सपियर की कहानियों पर आधारित होते थे। १८९५ में विश्व में सिनेमा का आविष्कार हुआ और १९१३ में दादा साहेब फ़ाल्के की फिल्म “राजा हरिश्चंद्र” के प्रदर्शन के साथ भारतीय सिनेमा का जन्म हुआ जो १९३० तक मूक था और जिसके दर्शक म्याँमार से लेकर अफगानिस्तान तक फैले हुए थे। १९२९ में अमरीका में पहली सवाक फिल्म “जैज़ सिंगर” प्रदर्शित हुई और १९३१ में मुंबई में अर्देशिर ईरानी ने पहली भारतीय सवाक फिल्म “आलम आरा” की रचना की जो इसी नाम के आग़ा हश्र कश्मीरी द्वारा लिखित पारसी थिएटर में बेहद कामयाब नाटक का सिनेमाई रूपांतरण थी। इस प्रकार ब्रह्मा जी के नाट्यशास्त्र ने वर्तमान काल में भारतीय क्षेत्रीय एवं हिंदी सिनेमा का रूप धारण कर लिया। इसीलिए हर भारतीय फिल्म मनोरंजन के साथ साथ मानसिक विश्रान्ति एवं हितोपदेश भी प्रदान करती है क्योंकि इन्हीं से लाभान्वित होने के लिए ब्रह्मा जी ने नाट्यवेद की रचना की थी।
भारतीय सिनेमा की पहली सवाक फ़िल्म “आलम आरा” हिंदी में बनाई गयी क्योंकि हिंदी ही वो भाषा थी जो म्यांमार से लेकर अफ़ग़ानिस्तान तक के भारतीय मूक सिनेमा के दर्शकों की समझ में आ सकती थी। धीरे धीरे अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी फ़िल्में बनना शुरू हुईं और उन्होंने अपने अपने मार्किट स्थापित किये परन्तु मुम्बई में जन्मे हिन्दी सिनेमा ने अपनी अभूतपूर्व अखिल भारतीय प्रतिभा से भारत वर्ष के सभी दर्शकों का मन जीत लिया और हिंदी भाषा को स्वतंत्र भारत की राष्ट्रीय भाषा बनाने के गाँधी जी के सपने को साकार किया। १९४७ में समस्त राजवाड़ों के विलय के साथ सरदार पटेल ने जिस महान भारत वर्ष की नींव रखी थी उसकी एकता और अखंडता को बनाये रखना एक घटना नहीं एक निरंतर प्रक्रिया थी और भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के पुनरुद्घाटन, पुनर्मूल्यन एवं पुनर्स्थापन के साथ साथ वर्तमान समाज को भारतीय सामाजिक मूल्यों से अवगत करा कर हिंदी सिनेमा ने भारत की एकता और अखण्डता कोसांस्कृतिक निरंतरता प्रदान कर भारत माता की जो अपूर्व सेवा की है उसकी आज तक कोई भी प्रशंसा होना तो दूर कोई स्वीकृति भी नहीं हुई है। राष्ट्रीय भाषा को लोकप्रिय बनाने और भारतवर्ष की एकता और अखण्डता को निरंतरता देने के अतिरिक्त हिंदी सिनेमा का समस्त क्षेत्रीय फिल्मों के साथ भारत वर्ष की अर्थव्यवस्था के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान है। भारतीय फिल्म उद्योग हज़ारों करोड़ सरकार को जीएसटी एवं अन्य करों के रूप में प्रदान करने के साथ साथ भारतीय अर्थव्यवस्था में अप्रत्यक्ष योगदान देता है। आज सारी फ़िल्में मल्टीप्लेक्सों में प्रदर्शित होती हैं जो मॉलों में स्थित है। जब दर्शक फ़िल्म देखने मल्टीप्लेक्स में आते हैं तो मॉल में अतिरिक्त फुटफॉल होते है जो फ़ूड कोर्ट से लेकर मॉल में स्थित अन्य सेवाओं और सामग्रियों की बिक्री में परिवर्तित होते है। साथ ही साथ वो जिस गाडी से मॉल आते हैं उसके पार्किंग चार्जेज से पार्किंग वाले की आमदनी होती है और यदि वो ऑटो या टैक्सी से आते हैं तो ऑटो और टैक्सी वालों की आमदनी होती है।
आज प्रधानमंत्री मोदी संसार में भारत की जिस साख को बढ़ाने के लिए विश्व भ्रमण करते हैं उसी साख को हिंदी सिनेमा अपनी अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता से दशकों से बढ़ा रहा है। आज संसार में ऐसा कोई भी देश नहीं जहाँ हिंदी सिनेमा लोकप्रिय और प्रतिष्ठित ना हो। अपनी इस अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता से हिंदी सिनेमा ने विश्व भर में भारतीय संगीत, भारतीय संस्कृति और भारतीय सभ्यता का ध्वज फहराया हुआ है। अमरीका के हॉलीवुड सिनेमा के बाद समस्त विश्व में केवल भारत के बॉलीवुड सिनेमा का डंका ही बजता है। भारत ने ना अतीत में कभी किसी देश अथवा सभ्यता पर हमला किया है और ना कभी भविष्य में करेगा परन्तु हिंदी सिनेमा ही वो माध्यम है जिसके द्वारा भारत विश्व गुरु के रूप में स्थापित होगा। आज अमरीका भली भांति समझता है की यदि उसकी सैन्य शक्ति उसकी हार्ड पावर है तो हॉलीवुड उसकी सॉफ्ट पावर है परन्तु आज अमरीका के समकक्ष बनने का सपना देखने वाले भारत ऐसा नहीं समझता। समय आ गया है कि भारत सरकार इस ऐतिहासिक भूल का समाधान करे और हिंदी सिनेमा को वो सम्मान एवं प्रोत्साहन दे जिसका कि वो दशकों से अधिकारी है।
भारत सरकार को तुरन्त हिंदी सिनेमा के संरक्षण एवं विकास के लिए निम्न लिखित बिंदुओं पर क्रियाशील होना चाहिए:
१. हिंदी सिनेमा जो विश्व भर में बॉलीवुड के ब्रैंड नेम से स्थापित एवं प्रतिष्ठित है उसे भारतीय अर्थव्यवस्था के एक अति महत्वपूर्ण उद्योग के रूप में मान्यता प्रदान की जाय और उसके सतत उत्थान के लिए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय दिशा निर्देश जारी करे।
२. जिस प्रकार समस्त राज्य अपनी क्षेत्रीय भाषा के सिनेमा के लिए अनेकों प्रोत्साहन देते हैं उसी प्रकार केंद्रीय सरकार हिंदी सिनेमा को प्रोत्साहन देने के लिए हिंदी फिल्मों के अखिल भारतीय प्रदर्शन से प्राप्त हज़ारों करोड़ केंद्रीय जीएसटीमें से १०% का हिंदी फिल्म उद्योग में पुनर्निवेश करे और इस कार्य को वित्त मंत्रालय संपन्न करे।
३. उपरोक्त राशि से हिंदी सिनेमा कारपोरेशन स्थापित किया जाय जो आत्मनिर्भर फिल्मकारों की फ़िल्में मल्टीप्लेक्सों, टीवी चैनलों और ओटीटी प्लॅटफॉर्म पर रिलीज़ करे।
४. प्रतियोगिता एक्ट २००२ (कम्पटीशन एक्ट २००२) को सख़्ती के साथ हिंदी फिल्म उद्योग पर लागू किया जाय ताकि आत्मनिर्भर फिल्मकारों का मल्टी नेशनल कंपनियों, कॉर्पोरेट कंपनियों और बड़े बैनरों के कार्टल द्वारा शोषण समाप्त हो। इस दिशा में सक्रिय होने के लिए प्रतियोगिता कमीशन को तुरंत निर्देश जारी किये जाँय।
५. हिंदी सिनेमा द्वारा भारतीय संस्कृति को विश्व में लोकप्रिय करने के पुरस्कार स्वरुप संस्कृति मंत्रालय हिंदी सिनेमा के उत्थान के लिए एक पृथक कमेटी का गठन करे.
६. भारत वर्ष को हिंदी सिनेमा के अभूतपूर्व योगदान के निरन्तर सम्मान के लिए सूचना एवं प्रसरण मंत्रालय उद्योग द्वारा स्थापित वार्षिक हिंदी सिनेमा सम्मान समारोह में भागीदार बने।
७. हिंदी फिल्म उद्योग एवं केंद्रीय सरकार के बीच सतत संवाद हो ताकि भविष्य में उठने वाली चुनौतियों का समय पर सामना करने के लिए कदम उठाये जा सकें।
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