आनंद रूप द्विवेदी | Navpravah.com
‘यमन’…माना जाता है ये दक्षिण पश्चिम एशिया का सबसे खतरनाक देश है. आखिर क्यों? सवाल तो होना लाज़मी है. क्या यमन में इंसान नहीं बसते? दरअसल यमन को शिया ईरान और सुन्नी सऊदी अरब के झगड़े की कीमत चुकानी पड़ रही है. सऊदी अरब की संयुक्त सेना ने हूती विद्रोहियों से यमन को मुक्त कराना चाहती है. युद्ध का ऐसा मंजर जिसे देखकर इंसान की रूह काँप जाए.
हूती शिया मुसलमान हैं, जिन्हें ईरान का समर्थन हासिल है. यमन के बाक़ी हिस्सों में अधिकतम संख्या सुन्नी मुसलमानों की है एवं हूती विद्रोहियों के ख़िलाफ़ बमबारी करने का नेतृत्व सऊदी अरब ने शुरू किया था. हूती विद्रोहियों ने मौजूदा नेतृत्व के ख़िलाफ़ पूर्व राष्ट्रपति सालेह से हाथ मिलाया जिसे यमन में 2011 की क्रांति के बाद हटा दिया गया था.
न्यूयॉर्क टाइम्स में निकोलस क्रिस्टोफ की खबर के अनुसार यमन भूख और लाचारी के भयावह दौर से गुजर रहा है. ऐसा दौर जहाँ न औरतें सुरक्षित न बच्चे. यमन में लगभग 2 मिलियन बच्चे कुपोषण के संकटकाल से गुजर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे ‘विश्व की सबसे बड़ी मानव त्रासदी’ की संज्ञा दी है. यह त्रासदी अमेरिका और ब्रिटेन के सहयोग से सऊदी द्वारा यमन की गई में भयानक तबाही का परिणाम है.
निकोलस क्रिस्टोफ कहते हैं, यमन की 60 प्रतिशत आबादी को इस बात का अनुमान तक नहीं है कि उनका अगला खाना उन्हें कब मिलेगा. सऊदी द्वारा लगातार दो साल तक यमन पर हूती विद्रोहियों के विरुद्ध कार्यवाही की जाती रही जिसमें यमनियों से भारी आबादी वाले क्षेत्र में भारी बमबारी की जाती रही. बच्चों औरतों बूढों ने मौत का ताण्डव देखा है. भूख और असहायता उनका भाग्य बन चुका है. अमेरिका मंगल की सतह के भीतर घुसने की कवायद में जुटा है,लेकिन इंसानियत के जख्मों का गहरा घाव किसी को नजर ही नहीं आता. आंकड़ों की मानें तो हर पांच मिनट में यमन में एक बच्चा मर जाता है.
निकोलस क्रिस्टोफ ने एक तस्वीर दिखाई जिसमें चार या पांच साल की बुथानिया नामक एक मात्र ऐसी बच्ची बच गई है, जिसका परिवार पिछले हफ्ते की सऊदी बमबारी में मारा गया. इस हमले में १४ लोग मारे गये थे. (लेख की मुख्य तस्वीर)
मानव अधिकार अधिकारिता के लोग बार बार ये चेता रहे हैं कि सऊदी द्वारा यमन में सामरिक अपराध किया जा रहा है. इस अपराध में अमेरिका बराबर का सहयोगी है. अमेरिका सऊदी को हवा में ईंधन भरने, इंटेलिजेंस, और हथियार मुहैया कराने जैसी मदद कर रहा है. अमेरिका सऊदी का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक सहयोगी बनकर उभरा है. सऊदी द्वारा विदेशी पत्रकारों की विद्रोह बहुल इलाकों में घुसने की मनाही है. ऐसा कोई भी जहाज जिसमें कोई विदेशी पत्रकार होता है उसे घुसने ही नहीं दिया जाता.
यमन के गृहयुद्ध में सऊदी की जबरन घुसपैठ का मकसद ईरान के हस्तक्षेप का दमन करना था. लेकिन दमन तो यमन के बेगुनाह नागरिक का हुआ. सऊदी ने वो सारे रास्ते बंद कर दिए जिनसे विद्रोहियों तक रसद पहुँच सके. नतीजन आज यमन का हर बच्चा भूख से दम तोड़ रहा है. 5000 यमनी रोज कॉलरा जैसी घातक महामारी से गुजर रहे हैं. सऊदी सरकार का कहना है वो प्रभावितों को बड़ी मात्रा में सहायता दे रहे हैं, लेकिन बम से किसी के परखच्चे उड़ाकर अगर मरहम पट्टी करने पहुँच जाओ तो उसपर क्या गुजरेगी.
अमेरिकी सीनेट के 47 सीनेटर्स ने सऊदी को हथियार मुहैया कराये जाने को बंद करने के पक्ष में वोट किया है. शायद अब जागरण हो जाए अन्यथा मानवता इस दुनिया में हमेशा सोती ही रहेगी.
(यह लेख न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित निकोलस क्रिस्टोफ के सचित्र आलेख पर आधारित है. स्रोत पर जाने के लिए यहाँ क्लिक करें.)