नृपेंद्र कुमार मौर्य | navpravah.com
नई दिल्ली | राहुल गांधी, कांग्रेस के प्रमुख नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, हाल ही में तीन दिवसीय अमेरिकी दौरे पर थे। इस दौरे में उनके कुछ बयानों ने भारत में भारी विवाद पैदा किया, खासकर सिख समुदाय और जातिगत आरक्षण पर की गई टिप्पणियों को लेकर। हालांकि, सबसे ज्यादा चर्चा उस मुलाकात की हो रही है, जिसमें उन्होंने अमेरिकी सांसद इल्हान उमर से मुलाकात की, जो अपने भारत-विरोधी रुख के लिए जानी जाती हैं।
इल्हान उमर ने पहले भी भारत के खिलाफ बयान दिए हैं, खालिस्तान के समर्थन में खड़ी रही हैं और भारत के अल्पसंख्यकों के मुद्दों को उठाया है। इस मुलाकात ने भारत में खासकर बीजेपी के नेताओं के बीच तीखी आलोचना को जन्म दिया है।
बीजेपी के प्रवक्ता और अन्य नेताओं ने सवाल उठाए कि राहुल गांधी ने इस मुलाकात को क्यों चुना, जब इल्हान उमर का रिकॉर्ड भारत के खिलाफ इतना स्पष्ट है। बीजेपी ने इसे राहुल के भारत विरोधी तत्वों के साथ खड़े होने के रूप में देखा है। इस मुलाकात को लेकर सोशल मीडिया पर भी चर्चाएं तेज हो गई हैं, जहां कई लोग राहुल के निर्णय पर सवाल उठा रहे हैं।
राहुल गांधी की अंतरराष्ट्रीय यात्राओं और उनकी मुलाकातों को लेकर पहले भी कई बार विवाद हुए हैं। जॉर्ज सोरोस, जो एक अमेरिकी व्यापारी हैं और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट्स में शामिल थे, के साथ उनके कथित संबंधों पर भी सवाल उठाए गए थे। सोरोस पर भारत के खिलाफ काम करने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने का आरोप भी लगाया गया था। राहुल गांधी की सोरोस की सहयोगी सुनीता विश्वनाथ से मुलाकात ने भी उन्हें आलोचनाओं के घेरे में खड़ा किया था।
इसके अलावा, राहुल गांधी के एक भाषण ने भी विवाद को और गहरा कर दिया। उन्होंने एक प्रवासी भारतीय सम्मेलन में सिखों के उत्पीड़न पर बात की, जहां उन्होंने कहा कि आरएसएस और बीजेपी सिखों को उनकी धार्मिक पहचान की वजह से दबाती हैं। यह बयान खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू द्वारा सराहा गया, जिसने इसे खालिस्तान की मांग के पक्ष में देखा।
राहुल गांधी के इन बयानों और मुलाकातों ने न केवल उनके विरोधियों को बल्कि उनके समर्थकों को भी असमंजस में डाल दिया है।