नृपेंद्र कुमार मौर्य | navpravah.com
नई दिल्ली | 15 अप्रैल 1912 की रात, एक विशाल जहाज, जिसे “अनसिंकेबल” यानी “कभी न डूबने वाला” माना गया था, ने अपने आखिरी संदेश के रूप में एक वायरलेस कोड भेजा: तीन डॉट, तीन डैश, फिर तीन डॉट्स। यह था SOS। यह जहाज था टाइटैनिक, वही जो एक आइसबर्ग से टकराकर डूब गया था। इस हादसे में कई लोग मारे गए थे, लेकिन कुछ की जान बच गई, सिर्फ उस SOS के जरिए। आसपास के जहाजों ने उस संदेश को रिसीव किया और तुरंत टाइटैनिक की ओर बढ़े।
यह वायरलेस कोड, जिसे मोर्स कोड कहा जाता है, उस रात तो सिर्फ जिंदगी बचाने के काम आया, लेकिन आने वाले समय में इसे युद्ध और संचार के कई और मौकों पर भी इस्तेमाल किया गया। फिर, एक और मोड़ आया जब इस कोडिंग की तकनीक ने एक और क्षेत्र में कदम रखा – अर्थव्यवस्था।
बार कोड से QR कोड तक का सफर-
1950 के दशक तक, अमेरिका में सुपरमार्केट्स में लंबी-लंबी लाइनें लगने लगीं। ग्राहकों को तेज सेवा देने के लिए बिलिंग काउंटर पर नई तकनीक की ज़रूरत महसूस हुई। तब 1952 में जोई वुडलैंड नामक एक अमेरिकी इंजीनियर ने मोर्स कोड की मदद से बार कोड का आविष्कार किया। यह मोटी और पतली लाइनों का एक अनोखा संयोजन था, जो हर प्रोडक्ट को एक विशेष कोड देता था। लेकिन जैसे-जैसे व्यापार का दायरा बढ़ा, यह सिस्टम भी धीमा और सीमित साबित हुआ।
1994 में बार कोड से ज्यादा क्षमता वाले QR कोड का अविष्कार हुआ। यह स्कैनिंग के जरिए क्विक और ज्यादा जानकारी को समेट सकता था। अब, QR कोड हमारी जिंदगी का ऐसा हिस्सा बन गया है, जिसे हम शायद हर दिन देखते और इस्तेमाल करते हैं।
QR कोड कैसे काम करता है ?
QR कोड का मतलब है ‘क्विक रिस्पांस कोड’, यानी ऐसा कोड जो तुरन्त प्रतिक्रिया दे। यह तकनीक दो मुख्य हिस्सों में बंटी होती है: स्ट्रक्चर और डेटा कोडिंग।
1. QR कोड का स्ट्रक्चर-
कल्पना कीजिए कि आप शतरंज खेल रहे हैं। चेस बोर्ड की तरह ही, QR कोड छोटे-छोटे ब्लॉक्स में बंटा होता है। इन ब्लॉक्स की अनूठी स्थिति डेटा को स्टोर करती है। जैसे कि शतरंज में हर मोहरा एक निश्चित जगह पर होता है, वैसे ही QR कोड में हर लाइन और डॉट्स का एक यूनिक अरेंजमेंट होता है। इनकी पोज़िशन ही वह जानकारी है जिसे स्कैनर पढ़ता है।
2. डेटा कोडिंग और डिकोडिंग-
QR कोड में डेटा को एनकोड करने के लिए एक निश्चित पैटर्न का इस्तेमाल किया जाता है। जब आप इसे स्कैन करते हैं, तो यह डेटा डिकोड हो जाता है और आपको जरूरी जानकारी तुरंत मिल जाती है। इसके लिए दो प्रकार की स्कैनिंग तकनीक होती है: एक लेजर स्कैनर और दूसरी कैमरा इंटीग्रेटेड QR रीडर।
QR कोड और बार कोड में फर्क-
बार कोड और QR कोड में सबसे बड़ा फर्क उनकी बनावट का होता है। बार कोड में लाइनों का सीधा पैटर्न होता है और इसे केवल एक दिशा में, यानी लेफ्ट से राइट पढ़ा जा सकता है। जबकि QR कोड को किसी भी दिशा में स्कैन किया जा सकता है। इसका आकार स्क्वायर होता है और इसकी बनावट बहुत जटिल होती है, जिससे यह अधिक जानकारी को स्टोर कर सकता है। उदाहरण के लिए, जहां एक बार कोड में सिर्फ 20 अंकों की जानकारी स्टोर की जा सकती है, वही QR कोड में 7,089 नंबर तक स्टोर किए जा सकते हैं।
QR कोड और सिक्योरिटी-
हालांकि QR कोड हमारे जीवन को आसान बनाता है, लेकिन इसके साथ सिक्योरिटी रिस्क भी जुड़े होते हैं। हैकर्स नकली QR कोड बनाकर फिशिंग के जरिए लोगों के बैंक डिटेल्स चुराते हैं। इसलिए, QR कोड का इस्तेमाल करते वक्त हमें सचेत रहना चाहिए।
तो, QR कोड जैसी तकनीक हमें रोजमर्रा के कामों में सुविधा देती है, लेकिन हमें इसके जोखिमों से भी बचकर रहना चाहिए।