“सानिध्य में आए प्रत्येक व्यक्ति का नाम स्मरण रखने वाले विलक्षण संत प्रमुख स्वामी जी महाराज” -साधु अमृतवदन दास जी

किसी भी भाषा में व्यक्ति का नाम सबसे मधुर और सबसे महत्वपूर्ण ध्वनि है।

जैसा कि प्रसिद्ध मोटिवेशनल लेखक और वक्ता डेल कार्नेगी ने कहा है, “किसी भी भाषा में बोला जाने वाला अपना नाम सबसे प्यारा और सबसे महत्वपूर्ण होता है।”

पैम सोलबर्ग-टेपर, जो कंपनी कोच फॉर सक्सेस चलाती हैं, अपने व्यापक अनुभव के आधार पर कहती हैं कि जब आप किसी को नाम से बुलाते हैं, तो यह दर्शाता है कि आप उनमें रुचि रखते हैं। उन्हें भी लगता है कि यहां उनकी इज्जत बरकरार है और यहां उनकी कद्र है । यह रिश्तों को मजबूत करता है और एक नया विश्वास लाता है। कहा जाता है कि सिकंदर महान अपने सैनिकों को नाम से बुलाता थे । उसके पास 20,000 सैनिक थे। वह अपने देश मैसेडोनिया से अनेक देशों को जीतकर भारत आए थे । यहां इतिहास दर्ज है कि उसकी सेना में सैनिकों की अदला-बदली हुई थी। जब भी वह कोई देश एवं क्षेत्र में विजय प्राप्त करते थे , तो वहां के सैनिक उसकी वीरता की प्रशंसा करते थे और उसकी सेना में शामिल हो जाते थे। अतः स्वाभाविक है कि उन सभी के नाम स्थानीय भाषा में होते थे । फिर भी सिकंदर ने उनके नाम याद रखते थे , या याद रखने की कोशिश अवश्य करते थे । उसकी इस विशेषता से उसकी विशाल सेना उन्हें वशीभूत हो गई थी।

यह कोई सामान्य बात नहीं है। अद्वितीय व्यक्तित्व वाले व्यक्ति में ही ऐसी विशेषता होती है। हम तो किसी से पांच मिनट बात करने में दस बार नाम पूछ पूछते हैं, लेकिन दूसरी बार मिलने पर नाम याद करने के लिए सिर खुजला लेते हैं। नाम में कुछ नहीं ऐसा नहीं । किंतु अब तो सब कुछ नाम ही में है।

प्रमुख स्वामी महाराज प्रतिदिन अनेक लोगों से मिलते थे। यह मिलनेवाली का नाम, गांव और काम आदि पूछना उनका स्वभाव था। क्योंकि वे जिससे भी मिलते थे, उनसे उनका विशेष लगाव होता था। वर्षों तक वे अपने संपर्क में आने वालों का मानसिक रूप से स्मरण रखते थे। फिर जब वे लंबे समय के बाद उनसे मिलते हैं, तब भी उन्हें नाम गांव का नाम याद रहता था । हमारे यहां उन्हें 25,000 या 50,000 नाम याद थे ऐसा कोई दावा नहीं करते है लेकिन एक बात तय है कि उन्हें करीब-करीब कोई भी शख्स और उसकी डिटेल याद रहती है। स्वामी जी अपने विचरण के दौरान मिलने वाले प्रत्येक व्यक्ति को याद रखते थे। स्वामीजी चाहे स्थिर हो या विचरण में हो उन्हें हमेशा याद रहता था ।

baps swaminarayan temple london
BAPS स्वामीनारायण मन्दिर, लंदन

एक बार स्वामीजी लंदन में थे। सत्संग का लाभ लेने के लिए दक्षिण अफ्रीका के डरबन से कुछ श्रद्धालु यहां आए थे। उनमें से दो छोटे भाई विजय और देवेश प्रतिदिन सत्संग में आकर स्वामीजी से मिलते थे। एक बार एक अकेला विजय उनसे मिलने आया। स्वामीजी ने उन्हें प्रेमपूर्वक आशिष दिए और उन्हें अकेला देखकर पूछा, ‘विजय! देवेश आज क्यों नहीं आया?’ विजय ने कहा ‘ स्वामी जी ! आज वह अपने दोस्त से मिलने गया है।’ स्वामीजी ने उन्हें आशीर्वाद दिया। वहाँ से जाते समय छोटे किन्तु बुद्धिमान विजय ने सोचा कि स्वामीजी प्रतिदिन अनेक हरिभक्तों से मिलते हैं। उनमें से कुछ तो बहुत बड़े लोग होते है । इन सब में हम डरबन से आए हैं और बहुत छोटे हैं, लेकिन स्वामीजी को हमारे दोनों भाइयों के नाम याद हैं। उसने यह बात अपने छोटे भाई देवेश को बताई। देवेश भी बहुत प्रभावित हुआ कि स्वामीजी ने मुझे नाम से याद किया। यह बात उसे मनमें लग गई कि स्वामी जी मुझे याद करते है । फिर वह प्रतिदिन स्वामीजी के दर्शन के लिए पहुंच जाता और उनका आशीर्वाद भी अवश्य लेने लगा । इस प्रकार स्वामीजी उनसे मिलने आने वालों के नाम याद किया करते थे।

स्वामीजी 31.12.2010 को मुंबई में थे। यहां भी वे प्रतिदिन आगंतुकों से मिलते थे। एक वृद्ध हरिभक्त दर्शन के लिए कतार में आए। वह अमेरिका के रहने वाले थे । स्वामीजी को देखकर उन्होंने प्रणाम किया और कहा, ‘अटलांटिक सिटी से जय स्वामीनारायण।’ स्वामीजी ने तुरंत उन्हें पहचान लिया और कहा, ‘तुम्हारा नाम अरविंद है?’
‘हाँ।’
‘क्या आप भादरण गांव से हैं?’
‘हाँ।’
‘क्या आपके पिता का नाम गोरधनभाई हैं?’
‘हाँ।’
स्वामीजी के मुख से अपना नाम, गाँव और पिता का नाम सुनते ही अरविन्दभाई की आँखों से आँसू गिरने लगे।

23.2.2006 को स्वामीजी विद्यानगर में थे। यहां एक बार वेदपुरुष स्वामी सभी छात्रों का स्वामी जी से परिचय करा रहे थे। उसमें एक छात्र मितेश खड़ा हो गया। वेदपुरुष स्वामी ने उनका परिचय दिया और कहा, ‘यह मितेश है और वह जेसंगपुरा गाँव का है।’ स्वामी जी ने पूछा, ‘नरसिंह भाई वाला जेसंगपुरा?’ मितेश ने हाँ कहा, तो स्वामीजी ने कहा, ‘तुम्हारा नाम मितेश है। मितेश के पिता रमेश। रमेश के पिता नरसिंहभाई और नरसिंह के पिता नारायणभाई थे । नरसिंह छोटे और गिरधर बड़े भाई थे. वे सभी बहुत पुराने सत्संगी। शास्त्री जी महाराज के समय से उनका सत्संग।’ यह कहकर स्वामीजी ने मितेश से पूछा, ‘गजानन कहाँ है?’ मितेश ने बताया , ‘ स्वामी जी ! वे मेरे घर के बगल में रहते हैं।’ स्वामीजी कहते हैं, ‘यह नरसिंहभाई हमारे देवचरण स्वामी के मामा हैं।’ स्वामी जी के मुख से नाम का जाप सुनकर कमरे में उपस्थित संत व विद्यार्थी अवाक रह गए।

मैंने कई हरिभक्तों से सुना है कि स्वामीजी मेरे पूरे परिवार को जानते हैं। यदि आप उन्हें मेरा नाम बताते हैं, तो वे मुझे तुरंत पहचान लेंगे। प्रमुख स्वामी महाराज का प्रातः स्मरणीय नाम आज हमारे होठों पर है क्योंकि हम सभी के नाम, गांव और काम उनके दिल और होठों पर थे।

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