कपिल शर्मा | Navpravah Desk
अयोध्या के पास के वन में गर्ग कुल के त्रिजटा नामक एक अत्यंत गरीब ब्राह्मण रहते थे जो मिट्टी खोद कर जीवन यापन करते थे, वे बहुत गरीब थे और कई दिनों तक भूखे रहने की वजह से उनका शरीर अत्यंत दुबला पतला, कमजोर हो गया था। कमजोर शरीर के चलते वह अपना आत्मविश्वास भी खो चुके थे और दान दक्षिणा लेने हेतु नगर और अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में जाना भी छोड़ दिया था, उनका जीवन अत्यंत कष्ट में था, पत्नी और बच्चे कई-कई दिन भूखे रहते थे।
एक दिन त्रिजटा की पत्नी ने त्रिजटा को सलाह दी कि उन्हें श्री राम के पास जाकर अपनी वास्तविक स्थिति से अवगत कराते हुए कुछ दान दक्षिणा प्राप्त करना चाहिए। पत्नी की सलाह मानने के बाद त्रिजटा श्रीराम से मिलने के लिए अयोध्या निकल गए। संयोग से यह वही दिन था जिस दिन श्री राम वनवास के लिए जाने वाले थे और वनवास जाने से पहले अपनी संपूर्ण संपत्ति का दान कर रहे थे।
त्रिजटा की स्थिति से अवगत होने के बाद श्रीराम ने त्रिजटा से कहा कि अपनी छड़ी उठाइये और इसे अपनी पूरी शक्ति से दूर तक फेंकिये। आप की छड़ी जितनी गायों के ऊपर से जाएगी, मैं वह सारी गाय आपको दान दे दूंगा.
यह बात सुनकर त्रिजटा को लगा कि श्रीराम उनका उपहास कर रहे हैं और उनके दुर्बल शरीर का मजाक उड़ा रहे हैं। यह बात सुनकर वहां पर उपस्थित कई अन्य लोग त्रिजटा को देखकर हंसने भी लगे। यह देख कर त्रिजटा ने मन में प्रण लिया कि वह पूरी हिम्मत से छड़ी फेंकेंगे। इसके बाद त्रिजटा ने अपनी कमर कसी और छड़ी को भरपूर शक्ति के साथ हवा में उछाल दिया, छड़ी सरयू नदी को पार कर नदी के तट पर घास चर रही लगभग एक हजार गायों के झुंड के पार गिरी। वहां पर उपस्थित सभी लोग त्रिजटा की कमजोर काया की इस अदम्य शक्ति को देखकर आश्चर्यचकित रह गए।
तब श्री राम ने त्रिजटा को गले से लगाया और कहा हे ब्राह्मण बंधु मेरी शर्त का बुरा ना माने,”मैं बस यह चाहता था कि आपको अपनी असाधारण शक्ति का विश्वास हो। मनुष्य के लिए उसका आत्मविश्वास ही उसका सबसे बड़ा अस्त्र है, आत्मविश्वास के बल पर कमजोर स्थिति, कम संसाधन और बुरी परिस्थिति में भी मनुष्य असाधारण कार्यों को अंजाम दे सकता है।”
निष्कर्ष– कुछ भी त्याग दो लेकिन आत्मविश्वास कभी मत त्यागो।
(लेखक बिहार राज्य के मुख्य निर्वाचन कार्यालय में बतौर निर्वाचन अधिकारी कार्यरत हैं.)