“धर्म आधारित है पंडित दीनदयाल का मानव एकात्म दर्शन” : प्रो. रजनीश शुक्ल

आनंद आर. द्विवेदी | Navpravah Desk

एबीवीपी के ऑनलाइन संवाद कार्यक्रम में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश शुक्ल ने बताया कि ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव सिद्धान्त’  ही धर्म आधारित दर्शन है। उन्होंने इसे मनुष्य की सार्वभौमिकता के सिद्धान्त की संज्ञा दी है।

लॉकडाउन के चलते प्रो. शुक्ल शनिवार अपने ऑनलाइन कार्यक्रम में अवध प्रान्त इकाई द्वारा एकात्म मानव दर्शन पर अपने विचार प्रस्तुत कर रहे थे। प्रोफेसर शुक्ल के फेसबुक पेज व प्रोफाइल के माध्यम से इस व्याख्यान का सीधा प्रसारण किया गया,  जिससे हजारों विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता व दर्शक इस व्याख्यान में सम्मिलित हो लाभ ले सके।

ऑनलाइन व्याख्यान के सम्बोधन के दौरान कुलपति प्रो. रजनीश शुक्ल (PC- Facebook Live)

अपने सम्बोधन में प्रो.शुक्ल ने कहा कि, ‘”पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानव दर्शन मनुष्य का निर्माण करता है और उसे जोड़कर विश्व व्यवस्था की रचना करता है। यह दर्शन धर्म आधारित होकर अखंड मंडलाकार ब्रहमांड की अवधारणा प्रस्तुत करता है। धर्म ही मनुष्य को विशिष्ट बनाता है। यह मनुष्य और पशु में अंतर भी दर्शाता है।”

व्याख्यान में प्रो. शुक्ल कहते हैं कि पंडित दीनदयाल धर्म की जिस अवधारणा की चर्चा करते हैं, उसमें वह पंथ आधारित समाज या राजव्यवस्था की बात नहीं करते। पंडितजी की दृष्टि में धर्म व्यक्ति के लिए मानव मूल्य है। समाज धर्म में यह परोपकार, करुणा और अहिंसा है। इसी तरह राजधर्म के रुप में यह समस्त समाज को बगैर किसी भेदभाव के विकसित होने का अवसर प्रदान करता है।”

” व्यक्ति अपनी आत्मा को संतुष्ट करते हुए अन्य लोगों के सुख हेतु यत्न कर सके, ऐसी पोषक व्यवस्था को निर्मित करना ही राजधर्म है। एकात्म मानव दर्शन मानव जीवन व सम्पूर्ण सृष्टि के एकमात्र सम्बन्ध का दर्शन है। दुनिया के अन्य सिद्धान्त एकांगी रहे, जिनमें मनुष्य के शोषण की दृष्टि रही। इसी का परिणाम द्वितीय विश्व युद्ध रहा। वहीं पंडित दीनदयाल का सिद्धान्त प्राचीनतम जीवन मूल्यों पर आधारित अधुनातन समाज और भविष्य के जीवन निर्माण के लिए एक दार्शनिक अवधारणा का निर्माण करता है। “

सम्बोधन में प्रो. शुक्ल कहते हैं कि, “एकात्म मानव दर्शन के केंद्र में मनुष्य है। यह अखंडमंडलाकार रचना में एक ऐसी अवधारणा है जो वृत्ताकार न होकर वर्तुलाकार होकर व्यक्ति से समाज, फिर राष्ट्र, विश्व और अंत में सम्पूर्ण ब्रम्हांड को अपने में समाविष्ट किये है। इस अखंडमंडलाकार आकृति में व्यष्टि का सम्पूर्णता के साथ एक नैरन्तरता का संबंध है और इससे विश्व व्यवस्था का निर्माण हो रहा है। इसमें कोई किसी का शोषक नहीं है। इसीलिए इनमे किसी संघर्ष की कोई गुंजाइश भी नहीं है।”

व्याख्यान के उत्तरार्ध में विद्यार्थी परिषद के कुछ सदस्यों ने ऑनलाइन माध्यम से ही कुलपति जी से कुछ सवाल भी किये, जिनका केंद्र बिंदु पंडित दीनदयाल के दर्शन और वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता को लेकर था। एक श्रोता ने कोरोना वायरस को भी पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के विचारों से जोड़ने का प्रयास किया एवं कहा कि वह विदेशी व्यापार को मना करते थे। उसने यह भी आशंका व्यक्त की कि कोरोना वायरस विदेशी व्यापार का ही परिणाम हो सकता है।

सभीकी जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए प्रो0 रजनीश शुक्ल ने कहते हैं कि, “पंडित दीनदयाल स्वदेशी के पोषक थे, लेकिन वह अंतरराष्ट्रीय व्यपार के विरोधी कभी नहीं रहे।” उन्होंने आज के कार्यक्रम को कोरोना से न जोड़ने की सलाह दी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि प्रकृति का अधिकाधिक शोषण ही तमाम विषाणुओं को पैदा करता है।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा डा. भीमराव आंबेडकर की जयंती 14 अप्रैल से लगातार इस तरह का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इसके अंतर्गत सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों के माध्यम से संपर्क और संवाद के कार्यक्रम देश भर में आयोजित हो रहे हैं। विद्यार्थी परिषद से जुड़े लोगों का कहना है कि कोरोना के चलते देश में जारी लॉकडाउन तक ये कार्यक्रम इसी प्रकार आयोजित किये जायेंगे ।

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