दुनिया का सबसे महान फुटबॉल खिलाड़ी पेले सबसे पहले अपने देश ब्राजील के सैंटोस क्लब के लिए खेलते थे।
एक बार 1969 में वे अपने क्लब की ओर से नाइजीरिया फुटबॉल खेलने जा रहे थे। यहां उन्हें बेनिन क्लब के साथ दोस्ताना मैच खेलना था। लेकिन उस समय नाइजीरिया घोर संकट के दौर से गुजर रहा था।
देश में भयानक गृहयुद्ध चल रहा था। यह गृहयुद्ध 1967 से 1970 तक नाइजीरिया देश और बियाफ्रा गणराज्य के बीच चला। इसलिए दोनों पक्षों ने स्वेच्छा से उस क्षेत्र में गृहयुद्ध को रोक दिया जहां यह मैच 48 घंटे तक खेला जाना था। कारण यह था कि सभी जुझारू न केवल फुटबॉल के प्रशंसक थे, बल्कि विशेष रूप से वे पेले के लिए बहुत सम्मान करते थे और उनके बड़े प्रशंसक थे। उन्होंने जीवन में एक बार पेले को खेलते हुए देखने के लिए अपनी बदले की भावना और आक्रामकता को एक तरफ रख दिया। ऐसा था पेले का प्रभाव। हमारे शास्त्रों में लोमश ऋषि का उल्लेख मिलता है। बताया गया है कि उनकी मौजूदगी में हिंसक वृत्ति का शमन हो जाता था । उनके आश्रम और आसपास के तालाब, सरोवर या नदी में बाघ, शेर, तेंदुआ जैसे जंगली जानवर और हिरण, खरगोश आदि सौम्य जानवर भी एक साथ पानी पीते थे। ऐसी होती है साधु की महिमा।
प्रमुख स्वामी महाराज एक गौरवशाली संत थे जिनकी दिव्य और पवित्र उपस्थिति में व्यक्तियों और व्यक्तियों के समूहों ने वैरवृत्ति, आक्रामकवृत्ति और हिंसकवृत्ति को त्याग दिया। उनके पावन सान्निध्य में ऐसी अनेकानेक किस्म की वैर वृत्तियों का भाव मिट जाता था ।
एक गाँव का एक क्षत्रिय अपने भतीजे की हत्या का बदला लेने की इच्छा से बेचैन था। दि. 11-3-1995 को गुजरात के गढ़डा गांव में, उन्होंने स्वामीश्री के सामने विरोध किया और कहा: ‘मैं इसे मार दूंगा। गांव में हम लोगों से लोग कहते हैं- ये सब कायर हैं।..’ तब स्वामीश्री ने उन्हें समझाया और कहा: “हम खुद को मारने की ज़िम्मेदारी नहीं लेते हैं। जो चला गया है वह वापस नहीं आएगा । फिर फालतू का बदला लेकर क्या करें? शांत रहें. भगवान सब अच्छा करेंगे । उसे मारने से जायदाद मिलनेवाली नहीं है ! हम शांत होंगे तो उसी हिसाब से सर्वत्र शांति होगी। आपको तो ऐसे बहोत मिल जाएंगे, लेकिन हमें कुछ नहीं करना है । लोग आपको बर्बाद कर छोड़ेंगे । पत्नी -लड़के तुम्हारे हैं। आपको चढ़ाने वाले को क्या कुछ है? इसलिए भांजे की मौत को केवल एक निमित्त समझें। इसे ईश्वर की इच्छा ही समझना। एक और झगड़ा खड़ा मत करो । शांति से भजन करो ।’ और स्वामीश्री की इस अनुभवपूर्ण वाणी से उनका क्रोध शान्त हो गया !
एक बार किसी गांव में किसी युवक ने गांव के एक सज्जन की हत्या कर दी। इस मामले ने पूरे गांव को खूनी गृहयुद्ध में झोंक दिया। खुन का बदला खून..आंख के बदले आंख निकालने की प्रवृत्ति से पूरा गांव जलने लगा। ऐसे ही गरमाते माहौल में स्वामीजी ने मृतक के बेटे से कहा, ‘तुम शांत रहो। हमें कोई शिकायत करनी नहीं है। कोर्ट से केस हटाओ। अपनी मां से कहो कि उस खूनी को भी माफ कर दे ।’ स्वामीश्री के इस वचन पर भावनगर की अदालत में जज के सामने महिला ने अपने पति के हत्यारे को अपनी आंखों के सामने माफ कर दिया! हर कोई चकित था। स्वामीश्री तब स्वयं गाँव में आए और गाँव के दोनों पक्षों को लगातार दो दिनों तक समझा-बुझाकर शांत किया, आपसी क्षमा की भावना पैदा की और जलते हुए गाँव को प्रतिशोध की ज्वाला से बचा लिया । उस घटना के चश्मदीद आज भी कहते हैं: ‘अगर प्रमुखस्वामी महाराज न होते तो न जाने कितनी लाशें गांव के रास्ते पर आ जातीं!’
सौराष्ट्र में कुकड़ और ओदारका आदि 45 गाँवों के क्षत्रियों में, डेढ़ सौ वर्ष पूर्व चराई भूमि विवाद से प्रतिशोध की ज्वाला भड़क उठी थी। लगातार डेढ़ सौ वर्षों से हिंसा और जबरन वसूली की आग पीढ़ी दर पीढ़ी को जोर पकड़ रही थी। भावनगर के महाराजा कृष्णकुमार सिंहजी से लेकर ब्रिटिश नौकरशाहों और यहां तक कि स्वतंत्र भारत के अधिकारियों तक ने इस वैर को कुचलने के कई प्रयास किए। लेकिन असफलता ने पीछा नहीं छोड़ा। 1980 के दशक में स्वामी जी ने इन क्षत्रियों में वरिष्ठ ऐसे सूत्रधार रामसंग बापू का जीवन परिवर्तित किया तबसे डेढ़ सौ साल पुराने प्रतिशोध से मुक्ति का सिलसिला शुरू हुआ।
स्वामी जी ने सभी को क्षमा का अमृत पिलाने का निरंतर प्रयास किया। दि. 12-4-1990 का दिन इतिहास में एक प्रेरणादायी दिन बन गया । डेढ़ सौ साल बाद पहली बार दोनों दलों के क्षत्रिय स्वामीश्री की छत्रछाया में एकत्रित हुए, आपसी प्रतिशोध को त्यागा, डेढ़ सौ साल बाद स्वामीश्री के हाथों एक दूसरे के गाँव का पानी पिया। उस समय क्षत्रिय नेता बोल उठे, ‘जो ब्रिटिश सरकार या भारत सरकार डेढ़ सौ साल में नहीं कर पाई, वह इस साधु ने कर दिखाया। यह काम केवल प्रमुख स्वामी महाराज ही कर सकते हैं।’
संत वो है जो मेल-मिलाप करता है। संत वो है जो सामंजस्य बनाता है। एक संत जो आपको सुखी करता है। प्रमुख स्वामी महाराज ऐसे ही एक संत श्रेष्ठ थे।
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