नई दिल्ली. चीन में कोरोना वायरस के शिकार होने वाले लोगों का आंकड़ा 636 हो चुका है। इस वायरस का तोड़ ढूंढने के लिए दुनियाभर के साइंटिस्ट जुटे हैं। ऑस्ट्रेलिया से उम्मीद जगाने वाली खबर आई है कि ऑस्ट्रेलिया में प्रवासी भारतीय की अगुआई में शोधकर्ताओं का एक दल इस वायरस की वैक्सीन बनाने के करीब पहुंच गया है।
ऑस्ट्रेलिया में कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (CSIRO) की एक हाई-सिक्यॉरिटी लैब में इस पर रिसर्च करने के लिए पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध है। ऑस्ट्रेलिया के डॉर्टी इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने पिछले हफ्ते एक व्यक्ति के सैंपल से मिले वायरस को आइसोलेट करने में कामयाबी हासिल की थी। CSIRO में वायरस की ग्रोथ को देखते हुए अनुमान है कि प्री-क्लिनिकल स्टडी के लिए बड़ी संख्या में इसकी जरूरत है।
इस डेवलपमेंट की पुष्टि करते हुए CSIRO डेंजस पैथोजेंस टीम को लीड कर रहे प्रोफेसर एसएस वासन ने बताया कि हम डॉर्टी इंस्टिट्यूट के अपने सहयोगियों का शुक्रिया अदा करते हैं, जिन्होंने आइसोलेट किए गए वायरस को हमारे साथ साझा किया। उन्होंने कहा कि हमने जिस वैक्सीन का विकास किया है, वह कोरोना के नियंत्रण में कारगर हो सकती है।
वासन ने आगे बताया ऑस्ट्रेलियन एनिमल हेल्थ लैब में मेरे सहयोगी भी डायग्नोस्टिक, सर्विलांस और रिस्पॉन्स पर काम कर रहे हैं। CSIRO का एक दूसरा हिस्सा मैन्युफैक्चरिंग यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड द्वारा बनाई जा रही वैक्सीन एंटीजेंस को बढ़ाने में सहयोग कर रहा है। उन्होंने कहा कि उनकी लैब अभी वायरस स्टॉक को बढ़ाने पर काम कर रही है। हालांकि, उन्होंने अभी इसकी संख्या की जानकारी नहीं दी।
दुनियाभर में कोरोना वायरस के लिए दवा बनाने के लिए चल रहे काम पर उन्होंने कहा प्री-क्लिनिकल स्टडी के लिए जरूरी वैक्सीन उपलब्ध कराने के अलावा, इससे दवा बनाने में तेजी आएगी। बिट्स पिलानी और आईआईएससी बेंगलुरु के एलुमनाई रहे वासन ने स्कॉलरशिप हासिल करने के बाद ऑक्सफॉर्ड के ट्रिनिटी कॉलेज में पढ़ाई की थी। वहां से डॉक्टरेट हासिल करने के बाद उन्होंने डेंगू, चिकनगुनिया और ज़ीका जैसे वायरस पर काम किया।