हेल्थ डेस्क. आमों की मल्लिका के रूप में मशहूर किस्म नूरजहा के फलों का औसत वजन इस बार मौसम की मेहरबानी से बढ़कर 2.75 किलोग्राम पर पहुंच गया है। यही वजह है कि आम की इस दुर्लभ किस्म के मुरीद इसके केवल एक फल के लिये 1,200 रुपये तक चुका रहे हैं।
अफगानिस्तानी मूल की मानी जाने वाली आम प्रजाति नूरजहां के गिने-चुने पेड़ मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के कट्ठीवाड़ा क्षेत्र में ही पाये जाते हैं। यह इलाका गुजरात से सटा है।
इंदौर से करीब 250 किलोमीटर दूर कट्ठीवाड़ा में इस प्रजाति की खेती के विशेषज्ञ इशाक मंसूरी ने रविवार को बताया, “इस बार अनुकूल मौसमी हालात के चलते नूरजहां के पेड़ों पर खूब बौर (आम के फूल) आये और फसल भी अच्छी हुई।”
उन्होंने बताया कि मौजूदा सत्र में नूरजहां के फलों का वजन औसतन 2.75 किलोग्राम के आस-पास रहा, जबकि गुजरे तीन सालों में इनका औसत वजन तकरीबन 2.5 किलोग्राम रहा था।
मंसूरी ने बताया कि पिछले साल इल्लियों के भीषण प्रकोप के चलते नूरजहां की फसल लगभग बर्बाद हो जाने से इसके मुरीदों को मायूस रहना पड़ा था। बहरहाल, इस बार अच्छी फसल के चलते जहां नूरजहां के स्वाद के शौकीन खुश हैं, वहीं इसके विक्रेताओं की भी पौ बारह हो गयी है।
मंसूरी ने बताया, “इन दिनों नूरजहां का केवल एक फल 700 से 800 रुपये में बिक रहा है। ज्यादा वजन वाले फल के लिये 1,200 रुपये तक भी चुकाये जा रहे हैं।”
उन्होंने बताया कि पड़ोसी गुजरात के अहमदाबाद, वापी, नवसारी और बड़ौदा के कुछ शौकीनों ने नूरजहां के फलों की सीमित संख्या के कारण इनकी अग्रिम बुकिंग तब ही करा ली, जब ये फल छोटे थे और डाल पर लटककर पक रहे थे।
मंसूरी ने बताया कि कट्ठीवाड़ा क्षेत्र में कई लोगों को आमों के बाग में नूरजहां के भारी-भरकम फलों से लदे पेड़ के साथ फोटो और सेल्फी खींचते भी देखा जा सकता है।
नूरजहां के पेड़ों पर जनवरी से बौर आने शुरू होते हैं और इसके फल जून के आखिर तक पककर तैयार होते हैं। नूरजहां के फल तकरीबन एक फुट तक लम्बे हो सकते हैं। इनकी गुठली का वजन 150 से 200 ग्राम के बीच होता है।
बहरहाल, यह बात चौंकाने वाली है कि किसी जमाने में नूरजहां के फल का औसत वजन 3.5 से 3.75 किलोग्राम के बीच होता था।
जानकारों के मुताबिक, पिछले एक दशक के दौरान मॉनसूनी बारिश में देरी, अल्पवर्षा, अतिवर्षा और आबो-हवा के अन्य उतार-चढ़ावों के कारण नूरजहां के फलों का वजन पहले के मुकाबले घट गया है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण आम की इस दुर्लभ किस्म के वजूद पर संकट भी मंडरा रहा है।