अनुज हनुमत | Navpravah.com
यूँ तो हर किसी को एक न एक दिन इस खूबसूरत दुनिया को अलविदा कहना होता है, लेकिन दुनिया में कुछ लोग सिर्फ जीने के लिए आते हैं, मौत महज उनके शरीर को खत्म करती है। ऐसे ही जांबाजों में से एक भारत की बहादुर बेटी कल्पना चावला थीं। कल्पना चावला एक ऐसी महिला थीं, जिन्होंने अपने मजबूत इरादों से पूरे विश्व में यह साबित कर दिया, कि जब आप कोई कार्य पूरी लगन के साथ करते हैं, तब आप उसमें अवश्य सफल होते हैं। कल्पना अंतरिक्ष की यात्रा करने वाली पहली भारतीय महिला थीं। भले ही 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल के दुर्घटनाग्रस्त होने के साथ कल्पना की उड़ान रुक गई, लेकिन आज भी वे दुनिया के लिए एक मिसाल हैं।
नासा वैज्ञानिक और अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला का जन्म हरियाणा के करनाल में हुआ था। कल्पना अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला थीं, हालांकि बाद में उन्होंने अमेरिका की नागरिकता ले ली थी। उनके पिता का नाम बनारसी लाल चावला और मां का नाम संज्योती था। कल्पना का शुरुआती शिक्षण करनाल के ‘टैगोर बाल निकेतन’ में हुई। जब वह आठवीं कक्षा में पहुंचीं, तो उन्होंने अपने पिता से इंजिनियर बनने की इच्छा जाहिर की। पिता उन्हें डॉक्टर या टीचर बनाना चाहते थे।
परिजनों के अनुसार बचपन से ही कल्पना की दिलचस्पी अंतरिक्ष और खगोलीय परिवर्तन में थी। वह अकसर अपने पिता से पूछा करती थीं कि ये अंतरिक्षयान आकाश में कैसे उड़ते हैं? क्या मैं भी उड़ सकती हूं? पिता बनारसी लाल उनकी इस बात को हंसकर टाल दिया करते थे। कल्पना ने फ्रांस के जॉन पियर से शादी की, जो एक फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर थे।
उल्लेखनीय है कि अंतरिक्ष में उड़ने वाली इस पहली भारतीय महिला से पहले राकेश शर्मा ने 1984 में सोवियत अंतरिक्ष यान से उड़ान भरी थी। कल्पना ने अपने पहले मिशन में 1.04 करोड़ मील सफर तय कर पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं और 360 घंटे अंतरिक्ष में बिताए। इसके बाद नासा और पूरी दुनिया के लिए दुःखद दिन तब आया, जब अंतरिक्ष यान में बैठीं कल्पना अपने 6 साथियों के साथ एक भयानक दुर्घटना का शिकार हुईं। कल्पना की दूसरी यात्रा उनकी आखिरी यात्रा साबित हुई और 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया अंतरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया। देखते ही देखते अंतरिक्ष यान के अवशेष टेक्सस शहर पर बरसने लगे।
इस दुःखद घटना के बाद कल्पना चावला के वे शब्द भी सत्य हो गए जिसमें उन्होंने कहा था, “मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूं। हर पल अंतरिक्ष के लिए ही बिताया है और इसी के लिए मरूंगी।” कल्पना चावला आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन भारत ही नहीं, वरन समूचे विश्व की लाखों करोड़ों महिलाओं के लिए वे एक प्रेरणा हैं, देश का गौरव हैं और भारत के इतिहास का एक अजर अमर हिस्सा बन गई हैं।