नृपेन्द्र कुमार मौर्य | navpravah.com
नई दिल्ली| महाराष्ट्र की राजनीति इन दिनों खासा चर्चा में है। मुख्यमंत्री पद को लेकर जारी खींचतान के बीच मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर अपनी स्थिति साफ की। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पर पूर्ण विश्वास जताते हुए कहा कि मुख्यमंत्री पद पर जो भी फैसला वे लेंगे, वह उन्हें स्वीकार होगा। यह बयान न केवल शिंदे की विनम्रता को दिखाता है, बल्कि उनकी पार्टी और गठबंधन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है।
महायुति में मतभेद की खबरों को किया खारिज
एकनाथ शिंदे ने अपने संबोधन में उन अफवाहों को खारिज किया, जिनमें महायुति (भाजपा-शिवसेना-एनसीपी गठबंधन) के भीतर मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद की बात कही जा रही थी। शिंदे ने कहा, “ऐसी बातें पूरी तरह गलत हैं। महायुति में सब कुछ ठीक है, और मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई मतभेद नहीं है।” उन्होंने इसे महाराष्ट्र के विकास के खिलाफ बताया और कहा कि महाविकास अघाड़ी सरकार ही राज्य में ‘स्पीडब्रेकर’ थी, जिसे जनता ने हटा दिया।
‘लाड़ला भाई‘ की पहचान सबसे बड़ी
शिंदे ने मुख्यमंत्री पद को लेकर अपने महत्वाकांक्षाओं पर विराम लगाते हुए कहा, “मेरे लिए मुख्यमंत्री का मतलब कॉमन मैन है। मेरी पहचान ‘लाड़ला भाई’ के रूप में बन गई है, और यह किसी भी पद से ऊपर है। अगर भाजपा किसी और को मुख्यमंत्री बनाती है, तो भी हमें कोई आपत्ति नहीं होगी। मैं इस फैसले को खुले दिल से स्वीकार करूंगा।”
उनके इन शब्दों से उनकी जनसेवा की प्रतिबद्धता झलकती है। उन्होंने कहा कि वह जनता को अपने परिवार का सदस्य मानते हैं और सभी के लिए काम करना उनकी प्राथमिकता है।
दबाव के बीच संतुलन बनाने की कोशिश
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अजित पवार गुट द्वारा उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को समर्थन देने के बाद से शिंदे पर दबाव बढ़ा है। अजित पवार के कदम ने न केवल भाजपा की स्थिति को मजबूत किया है, बल्कि महायुति में शिंदे गुट के लिए चुनौती भी खड़ी की है। ऐसे में शिंदे ने समझदारी से यह फैसला लिया कि सत्ता में बने रहने और गठबंधन की स्थिरता के लिए उन्हें त्याग करना होगा।
उनका यह कदम भाजपा के साथ शिवसेना (शिंदे गुट) की राजनीतिक मजबूती को बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा भी माना जा सकता है। जानकारों का कहना है कि शिंदे की पार्टी को केंद्र सरकार में अच्छे प्रतिनिधित्व के साथ-साथ राज्य में भी महत्वपूर्ण स्थान मिल सकता है।
ढाई साल का रिपोर्ट कार्ड
अपने ढाई साल के कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाते हुए शिंदे ने कहा कि उनकी सरकार ने जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने की हरसंभव कोशिश की है। उन्होंने दावा किया कि जनता उनके काम से संतुष्ट है, और इसी वजह से उन्हें इतना व्यापक समर्थन मिला।
उन्होंने कहा, “हम नाराज होकर बैठने वाले लोग नहीं हैं, बल्कि लड़कर भी काम करने वाले लोग हैं। मैंने पीएम मोदी से भी कहा है कि यदि मेरे कारण सरकार के गठन में कोई बाधा आ रही है, तो मैं मुख्यमंत्री पद छोड़ने को तैयार हूं। मेरे लिए हर फैसला स्वीकार है, क्योंकि मैं महायुति परिवार का सदस्य हूं।”
भाजपा के फैसले का स्वागत
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान शिंदे ने यह भी स्पष्ट किया कि भाजपा जिसे भी मुख्यमंत्री बनाएगी, उनका समर्थन रहेगा। “यह सब गठबंधन की भावना और जनता की सेवा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का हिस्सा है,” उन्होंने कहा।
महाराष्ट्र की राजनीति पर संभावित असर
शिंदे के इस बयान ने महाराष्ट्र की राजनीति में नई संभावनाओं को जन्म दिया है। उनके त्यागपूर्ण रवैये को भाजपा के साथ मजबूत रिश्ते की दिशा में एक कदम माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे न केवल महायुति के भीतर समन्वय बढ़ेगा, बल्कि भाजपा-शिवसेना (शिंदे गुट) की राजनीतिक ताकत को भी नई ऊंचाई मिलेगी।
एकनाथ शिंदे का यह बयान एक नेता की परिपक्वता और उनकी जनता के प्रति जवाबदेही को दर्शाता है। मुख्यमंत्री पद को लेकर त्याग की बात करना कोई आसान निर्णय नहीं है, खासकर जब आप खुद इस पद पर हों। लेकिन शिंदे ने अपनी जिम्मेदारी को परिवार की तरह निभाने और गठबंधन के हित में फैसले लेने का संकेत दिया है।
महाराष्ट्र में सत्ता का संतुलन अब किस ओर जाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा। लेकिन फिलहाल, शिंदे का यह बयान उनकी राजनीतिक छवि को और मजबूत कर रहा है। उनके इस त्याग को महाराष्ट्र की जनता और राजनीतिक विश्लेषकों ने सराहा है।