नृपेंद्र कुमार मौर्य | navpravah.com
नई दिल्ली | त्योहारी सीजन में दिल्ली मेट्रो की सेवाओं ने हजारों यात्रियों को बुरी तरह से निराश किया। शुक्रवार को मेट्रो सेवा का एक ऐसा नज़ारा देखने को मिला जो यात्रियों के लिए किसी दुःस्वप्न से कम नहीं था। एक बार फिर, विश्वस्तरीय मेट्रो सेवा का दावा ध्वस्त हो गया, जब मेट्रो विश्वविद्यालय स्टेशन पर मेट्रो के कई मिनटों के इंतेज़ार के बाद किसी तरह आई तो वहीं रुकी रह गई और लगभग15 मिनट तक ठिठकी रही और फिर मेट्रो को खाली कराया गया और फिर दूसरी मेट्रो आती है जो यात्रियों को सिविल लाइन्स पर ले जाकर छोड़ देती और फिर दूसरी मेट्रो के लिए 10 मिनट तक इंतजार कराया जाता है। दिल्ली मेट्रो की यात्रा, जिसे आमतौर पर तेज और सुगम माना जाता है, आज पूरी तरह से उलझी और असुविधाजनक बन गई।
शुरुआत विश्वविद्यालय से: इंतजार की पहली कहानी
शुक्रवार शाम लगभग 7.30 बजे मेट्रो में यात्रा कर रहे यात्री अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में व्यस्त थे। तभी अचानक मेट्रो विश्वविद्यालय स्टेशन पर रुक गई और लगभग 15 मिनट तक वहीं खड़ी रही। पहले तो यात्रियों ने इसे सामान्य समझा—आखिरकार, थोड़ी-बहुत देरी तो मेट्रो में आम बात है, खासकर पीक आवर्स में। लेकिन जब देरी लगातार बढ़ती गई, तो यात्रियों के बीच असमंजस और झुंझलाहट बढ़ने लगी। क्या यह कोई तकनीकी खराबी थी? या फिर मेट्रो प्रशासन का यह एक और असफल प्रयास था, समय पर सेवाएं देने का?
सिविल लाइन्स पर अगला ठहराव: और बढ़ी परेशानी
जैसे-तैसे मेट्रो विश्वविद्यालया से चली और यात्रियों को राहत की उम्मीद बंधी, लेकिन राहत बहुत जल्दी निराशा में बदल गई जब मेट्रो सिविल लाइन्स स्टेशन पर फिर से 10 मिनट तक खड़ी हो गई। अब यात्रियों का सब्र टूटने लगा। लोग अपनी मंजिल तक पहुंचने के बजाय मेट्रो के अंदर फंसे रह गए। सिविल लाइन्स पर रुकी मेट्रो मानो यात्री समय और धैर्य की परीक्षा ले रही थी। कई लोग अपने काम या अन्य जरूरी कार्यों के लिए जा रहे थे, लेकिन उनकी यात्रा इस असुविधा की भेंट चढ़ गई।
विश्वविद्यालया से राजीव चौक: 40 मिनट का सफर
आमतौर पर विश्वविद्यालया से राजीव चौक का सफर 15-20 मिनट में तय हो जाता है, लेकिन शुक्रवार को यह सफर किसी लंबी यात्रा जैसा महसूस हुआ। 40 मिनट तक यात्री मेट्रो के अंदर बैठे रहे, हर स्टेशन पर यह उम्मीद करते हुए कि अब मेट्रो तेजी से चलेगी। लेकिन मेट्रो की यह ‘तेज सेवा’ मानो धीमी चाल में तब्दील हो गई थी। इस बीच, यात्री अपने मोबाइल पर टाइम चेक कर रहे थे, अपने ऑफिस या घरों में फोन कर देरी की जानकारी दे रहे थे, और कुछ तो दिल्ली मेट्रो की इस ‘सेवा’ पर तंज कसते हुए सोशल मीडिया पर अपने अनुभव साझा कर रहे थे।
त्योहारी सीजन में यात्रियों की असुविधा
यह पूरा घटनाक्रम सिर्फ यात्रियों के कीमती समय की बर्बादी तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि यह मेट्रो की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा करता है। त्योहारी सीजन में जब हजारों लोग खरीदारी, त्योहार की तैयारियों और अपने प्रियजनों से मिलने के लिए मेट्रो का उपयोग कर रहे होते हैं, तब ऐसी सेवाएं उन्हें परेशानी के अलावा कुछ नहीं देतीं। हजारों यात्री इस अव्यवस्था का शिकार हुए और उनकी यात्रा बर्बाद हो गई।
तकनीकी खराबी या प्रशासनिक लापरवाही?
अब सवाल यह उठता है कि यह तकनीकी खराबी थी या प्रशासनिक लापरवाही? दिल्ली मेट्रो, जो अपनी समयनिष्ठा और सुगमता के लिए जानी जाती है, आखिर कैसे इतने बड़े स्तर पर यात्रियों को असुविधा में डाल सकती है? क्या मेट्रो प्रशासन ने इस देरी के लिए माफी मांगी या कोई ठोस स्पष्टीकरण दिया? या फिर यह मान लिया गया कि ‘यात्री तो सहन कर ही लेंगे’?
दिल्ली मेट्रो की इस अव्यवस्था ने फिर एक बार यह साबित कर दिया कि कभी-कभी अत्याधुनिक तकनीक भी यात्रियों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाती। मेट्रो प्रशासन को चाहिए कि वह इस प्रकार की घटनाओं को गंभीरता से ले और समय पर सेवाएं देने के अपने दावों पर पुनर्विचार करे। आखिरकार, त्योहारों के समय लोग उत्साह और खुशियों के साथ यात्रा करना चाहते हैं, न कि घंटों मेट्रो के अंदर बैठकर अपने समय को बर्बाद करना।