क्या जाट और जलेबी में ही फंस के रह गई कांग्रेस?

नृपेन्द्र कुमार मौर्य| navpravah.com 

नई दिल्ली | हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजे एक बड़ा राजनीतिक मोड़ लेकर आए हैं। बीजेपी ने सभी एग्जिट पोल को गलत साबित करते हुए 57 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया और तीसरी बार सत्ता में वापसी की। वहीं, कांग्रेस का ओवर कॉन्फिडेंस उनके लिए भारी पड़ा, जहां एग्जिट पोल उन्हें बंपर बहुमत देते दिखा रहे थे, वहीं पार्टी सिर्फ 35 सीटें जीत सकी।

चुनावी चर्चा: जाट और जलेबी-

इस चुनाव में दो शब्दों की सबसे ज्यादा चर्चा रही: जाट और जलेबी। कांग्रेस ने इन दोनों पर ध्यान केंद्रित किया, खासकर जाट समुदाय के मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की। साथ ही, हरियाणा की प्रसिद्ध मातूराम की जलेबियों को भी चुनावी प्रचार का हिस्सा बनाया। राहुल गांधी ने गोहाना की रैली में इस मुद्दे को उठाया, जहां उन्होंने जलेबी को रोजगार सृजन का जरिया बताया और जलेबी फैक्ट्री लगाने की बात कही। उनके बयान के बाद, जलेबी एक मज़ेदार और लोकप्रिय चुनावी मुद्दा बन गई।

मातूराम की जलेबियों की राजनीतिक यात्रा- 

मातूराम हलवाई की दुकान हरियाणा के गोहाना में स्थित है और यह जलेबी शुद्ध देसी घी से बनती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर राहुल गांधी तक इस जलेबी का स्वाद चख चुके हैं। खासतौर पर राहुल गांधी को यह जलेबी इतनी पसंद आई कि उन्होंने इसे अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए भी पैक कराया। गोहाना की रैली में राहुल गांधी ने एक डिब्बा दिखाते हुए कहा कि ये जलेबी पूरे देश में मशहूर होनी चाहिए और इसकी बिक्री देशभर में होनी चाहिए।

राहुल गांधी ने एक कदम आगे बढ़ते हुए जलेबी फैक्ट्री लगाने की बात कही, जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिलने का वादा किया। उनके इस बयान ने राजनीतिक हलकों में खूब चर्चा बटोरी। सोशल मीडिया पर यह बयान वायरल हुआ और इसे एक नए चुनावी मोड़ के रूप में देखा गया। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने शुरुआती नतीजों में बढ़त मिलने पर दिल्ली में जश्न के तौर पर जलेबियां भी बांटी, लेकिन बाद के नतीजे उनके खिलाफ गए।

BJP की चुटकी और जलेबी की सियासत-

राहुल गांधी के जलेबी बयान पर बीजेपी ने चुटकी लेने में देर नहीं की। बीजेपी के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि उन्हें भी गोहाना की जलेबियां पसंद हैं, लेकिन राहुल गांधी को यह समझना होगा कि जलेबियां फैक्ट्री में नहीं बनतीं, बल्कि मेहनत और हुनर से हलवाई की दुकान में बनाई जाती हैं। बीजेपी नेता गौरव भाटिया ने भी राहुल गांधी पर तंज कसते हुए कहा कि हरियाणा की जनता ने यह दिखा दिया कि जलेबी की तरह राजनीति नहीं चलती।

चुनावी रैलियों में इस मुद्दे को बार-बार उठाया गया। बीजेपी नेताओं ने राहुल गांधी के बयान को एक मजाक के तौर पर पेश किया और इसे उनके “अपरिपक्व” राजनीति के सबूत के रूप में दिखाया। बीजेपी के नेता यह बताने में कामयाब रहे कि जलेबी एक प्रतीक के तौर पर हार और जीत के बीच की धुंधली लाइन को दर्शाती है। बीजेपी ने जलेबियों को चुनावी जीत के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया और हरियाणा में अपनी जीत का जश्न जलेबियां बांटकर मनाया।

जलेबी की राजनीति: प्रतीक और परिणाम-

जलेबी चुनाव में एक प्रतीक बन गई, जो न केवल कांग्रेस की रणनीति पर तंज कस रही थी, बल्कि यह भी दिखा रही थी कि कैसे छोटी-छोटी बातों को चुनावी प्रचार में बड़ा मुद्दा बनाया जा सकता है। पीएम मोदी ने भी अपने भाषण में इस जलेबी मुद्दे का जिक्र किया, जहां उन्होंने विपक्षी गठबंधन पर तंज कसते हुए कहा कि विपक्ष के पास प्रधानमंत्री पद के लिए पांच साल में पांच उम्मीदवार हैं। उन्होंने सवाल उठाया, “क्या प्रधानमंत्री पद हमारी मातूराम की जलेबी है?” यह बयान साफ तौर पर कांग्रेस की अस्थिर राजनीति पर हमला था।

मातूराम हलवाई: एक पहचान-

मातूराम हलवाई की दुकान की स्थापना 1958 में की गई थी और तब से यह अपनी शुद्ध देसी घी की जलेबियों के लिए प्रसिद्ध है। एक जलेबी का वजन करीब 250 ग्राम होता है, और एक किलो में चार ही जलेबियां आती हैं। एक किलो जलेबी का दाम 320 रुपये है, और इनकी शेल्फ लाइफ एक हफ्ते तक की होती है। इस दुकान को अब उनके पोते रमन गुप्ता और नीरज गुप्ता चला रहे हैं, और यह गोहाना का एक प्रमुख आकर्षण बन चुका है।

चुनावी परिणाम और आगे की राह-

हरियाणा चुनाव 2024 के परिणाम भाजपा की तीसरी बार सरकार बनाने की ओर इशारा कर रहे हैं। इस जीत ने जहां बीजेपी को राज्य की राजनीति में मजबूत किया है, वहीं कांग्रेस के लिए यह एक बड़ी सीख साबित हुई। कांग्रेस को न केवल अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा, बल्कि अपनी जमीनी पकड़ को भी मजबूत करना होगा।

जलेबी की इस अनोखी राजनीति ने दिखा दिया है कि चुनावों में छोटे प्रतीक भी बड़े मुद्दे बन सकते हैं। इस चुनाव में मातूराम की जलेबियों का जिक्र यह साबित करता है कि भारतीय राजनीति में प्रतीकों का कितना महत्व होता है, और कैसे जनता और राजनीतिक दल उन प्रतीकों को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश करते हैं।

कुल मिलाकर, हरियाणा चुनाव 2024 की कहानी सिर्फ सीटों की गिनती से नहीं, बल्कि प्रतीकवाद और चुनावी रणनीतियों की टकराहट से भी बनती है। कांग्रेस ने जाट और जलेबी पर भरोसा किया, लेकिन बीजेपी ने जनता के मूड को समझते हुए उसे अपनी जीत में तब्दील कर लिया।

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