एनपी न्यूज़ डेस्क | Navpravah.com
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शनिवार को सूरत में एक कार्यक्रम में उपस्थित हुए, वहाँ उनसे जब पूछा गया कि पीएम मोदी की तरह आप लोगों को अपनी पुरानी निजी जिंदगी के बारे में क्यों नहीं बताते हैं? इसके जवाब में मनमोहन सिंह ने कहा, ‘मैं अपनी निजी जिंदगी को सार्वजनिक नहीं करना चाहता, मैं नहीं चाहता कि मेरे सादगी भरे जिंदगी पर देश में कोई रहम खाएं।’
पीएम मोदी और बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान कई बार कह चुके हैं कि उनके जैसा गरीब इंसान बीजेपी जैसी पार्टी में ही इस पद तक पहुंच सकता है, कांग्रेस में ऐसा कोई नहीं है। कांग्रेस लगातार कह रही है कि मनमोहन सिंह कभी भी जनसभाओं में अपनी गरीबी वाले दिनों को बयां नहीं करते हैं, कांग्रेस पार्टी ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचाया है, जबकि वे भी बेहद गरीब परिवार से आते हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि, यह कहना जल्दबाजी होगी कि जुलाई-सितंबर तिमाही में जीडीपी की 6.3 फीसदी वृद्धि दर के रूप में आर्थिक मंदी का रुख उलट गया है, क्योंकि इसमें छोटे और मझौले क्षेत्रों के आंकड़े नहीं हैं, जिसे नोटबंदी और जल्दबाजी में लागू किए गए जीएसटी के कारण बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है।
सूरत में व्यापारियों को संबोधित करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा, “यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी कि अर्थव्यवस्था में गिरावट का रुख खत्म हो गया है। जो पिछली पांच तिमाहियों से देखा जा रहा था, कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय, जो इन आकंड़ों को जारी करता है, वह अनौपचारिक क्षेत्र पर जीएसटी और नोटबंदी के प्रभाव का सही आकलन नहीं करता है। जबकि अनौपचारिक क्षेत्र हमारी अर्थव्यवस्था का करीब 30 फीसदी है।
नौजवान हुए बेरोजगार-
मनमोहन सिंह ने राव के हवाले से कहा, “इसमें छोटे और मझौले क्षेत्र की गणना नहीं की जाती है, जो नोटबंदी और जीएसटी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है, अभी भी बड़ी समस्याएं बरकरार हैं, कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर गिरकर 1.7 फीसदी हो चुकी है, जोकि पिछली तिमाही में 2.3 फीसदी थी।
उन्होंने कहा, “हमारी जीडीपी की विकास दर में हरेक फीसदी की गिरावट से देश को 1.5 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है, इस गिरावट का देशवासियों के ऊपर पड़े असर के बारे में सोचें, उनकी नौकरियां खो गईं और नौजवानों के लिए रोजगार के अवसर खत्म हो गए। व्यवसायों को बंद करना पड़ा और जो उद्यमी सफलता की राह पर थे, उन्हें निराशा हाथ लगी है।”
मनमोहन सिंह ने आगे कहा कि कृषि और विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट इस तथ्य के बावजूद आई है कि सरकार अपनी परियोजनाओं पर खूब खर्च कर रही है, यहां तक कि इसके कारण राजकोषीय घाटा पूरे वित्त वर्ष के लक्ष्य का महज सात महीनों में ही 96.1 फीसदी तक जा पहुंचा है, जबकि पूरे साल का लक्ष्य 5,46,432 करोड़ रुपये तय किया गया है।