फडणवीस की राह नहीं आसान, ये होंगी बड़ी चुनौतियां

नृपेन्द्र कुमार मौर्य| navpravah.com 

नई दिल्ली | देवेंद्र फडणवीस आज मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। उनके साथ प्रदेश के उपमुख्यमंत्री के तौर पर एकनाथ शिंदे और अजीत पवार शपथ लेंगे। ये ताजपोशी न केवल महायुति के प्रचंड जीत का प्रमाण है बल्कि यह भी दिखाता है कि फडणवीस की रणनीतिक क्षमता और चुनावी कौशल ने भाजपा को महाराष्ट्र में अब तक की सबसे बड़ी राजनीतिक सफलता दिलाई है। हालांकि चुनाव जीतना एक उपलब्धि है, असली परीक्षा अब राज्य की सरकार चलाने और जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने में है।

बीते विधानसभा चुनावों में महायुति ने कई महत्वाकांक्षी वादे किए हैं, जिन्हें पूरा करना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। साथ ही, सहयोगी दलों के साथ संतुलन साधना, विपक्षी दलों के हमलों का सामना करना और राज्य के विकास को नई ऊंचाइयों तक ले जाना फडणवीस के लिए प्रमुख प्राथमिकताएं होंगी।

तो आइए समझते है फडणवीस के सामने क्या क्या चुनौतियां होंगी –

1. लड़की बहन योजना की धनराशि बढ़ाना –

विधान सभाव चुनावों से पहले महायुति ने बड़े बड़े वादे किए थे जिन में से एक था लड़की बहन योजना की धनराशि को 1500 रुपए से बढ़ाकर 2100 रुपए करना। और किसान सम्मान निधि की राशि ₹12,000 से ₹15,000 करना प्रमुख हैं। इसके अलावा, किसानों की कर्जमाफी, वृद्धावस्था पेंशन, और कई अन्य कल्याणकारी योजनाओं को भी लागू करने की बात कही गई है।

हालांकि इन योजनाओं को लागू करने के लिए राज्य सरकार को बड़ी धनराशि की आवश्यकता होगी, लेकिन महाराष्ट्र पहले से ही ₹7.82 लाख करोड़ के कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि वित्तीय स्थिति स्थिर नहीं हुई, तो कर्मचारियों का वेतन देना भी मुश्किल हो सकता है।

2. गठबन्धन के साथ शक्ति संतुलन –

महायुति में राजनीतिक स्थिरता केवल विधायी बहुमत पर निर्भर नहीं करती। सहयोगी दलों के असंतोष और विपक्ष के हमलों से निपटना भी महत्वपूर्ण है। महायुति के दो प्रमुख सहयोगी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी, सरकार में अपनी भूमिका को लेकर काफी संवेदनशील हैं।

शिंदे गुट मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने से पहले ही असंतुष्ट था। वहीं, अजित पवार की महत्वाकांक्षा भी किसी से छिपी नहीं है। फडणवीस को कुशलता से इन दोनों दलों को संतुलित करना होगा। यह सुझाव दिया गया है कि सरकार को एक “एडवायजरी त्रिमूर्ति” के माध्यम से चलाया जाए, जिसमें दोनों सहयोगियों को नीतिगत निर्णयों में प्रमुख भूमिका मिले।

अगर यह संतुलन नहीं साधा गया, तो सरकार के स्थायित्व पर संकट आ सकता है।

3. बीएमसी चुनावों में झंडे गाड़ना –

महाराष्ट्र सरकार की दूसरी बड़ी परीक्षा मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव जीतने की होगी। बीएमसी को जीतना महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव जितना ही महत्वपूर्ण माना जाता है। पिछले तीन दशकों से बीएमसी पर शिवसेना का नियंत्रण रहा है। शिवसेना अब दो धड़ों में बंट चुकी है—एकनाथ शिंदे गुट और उद्धव ठाकरे गुट (शिवसेना यूबीटी)।

शिंदे गुट, जो महायुति का हिस्सा है, बीएमसी चुनावों तक मुख्यमंत्री पद बनाए रखने का इच्छुक था, लेकिन फडणवीस को सीएम चुना गया। इससे शिंदे गुट असंतुष्ट हो सकता है। इस असंतोष का फायदा उठाने के लिए उद्धव ठाकरे पूरी कोशिश करेंगे।

अगर महायुति यह चुनाव हारती है, तो इससे फडणवीस की साख पर सवाल उठेंगे। ऐसे में फडणवीस के लिए जरूरी है कि वह अपनी रणनीति मजबूत रखें और बीएमसी पर कब्जा जमाकर विपक्ष को करारा जवाब दें।

4. मराठा आरक्षण: राजनीति का बड़ा मुद्दा

महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा समुदाय की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। मराठा आरक्षण आंदोलन एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे जरांगे पाटिल ने पहले भी फडणवीस सरकार का विरोध किया था।

विपक्ष इस मुद्दे को भुनाने की पूरी कोशिश करेगा। उद्धव ठाकरे भी इसे अपनी रणनीति का हिस्सा बनाएंगे। वह शिंदे गुट को कमजोर कर शिवसेना (यूबीटी) को मजबूत करने का प्रयास करेंगे।

फडणवीस को इस मुद्दे पर संवेदनशीलता और समझदारी से काम लेना होगा। मराठा समुदाय की भावनाओं का ध्यान रखते हुए उन्हें ऐसा समाधान निकालना होगा, जिससे सरकार पर राजनीतिक दबाव न बढ़े।

5.  छोटे व्यवसायों और रोजगार सृजन पर ध्यान

राज्य में छोटे और मझोले उद्योग रोजगार सृजन का मुख्य आधार हैं। इन उद्योगों के लिए नियमों को सरल बनाना और नौकरियों के नए अवसर पैदा करना सरकार की प्राथमिकताओं में होना चाहिए।

इसके अलावा, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास, कानून व्यवस्था में सुधार, और औद्योगिक निवेश आकर्षित करना भी फडणवीस के एजेंडे में शामिल होना चाहिए।

देवेंद्र फडणवीस के सामने एक ओर जहां महायुति की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की चुनौती है, वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों के हमलों का सामना करने का दबाव भी है। उनकी रणनीतिक कुशलता ही यह तय करेगी कि महाराष्ट्र की राजनीति में उनका नेतृत्व कितने लंबे समय तक सफल रहता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.