एनपी न्यूज़ नेटवर्क्स | Navpravah.com
‘विवा एजुकेशन’ और ‘अंतर्राष्ट्रीय हिंदी प्रचार परिषद’ के संयुक्त तत्त्वावधान में शनिवार को हिंदी कार्यशाला आयोजित की गई। आईसीएससी का हब माने जाने वाले बेंगलुरु शहर में तकरीबन 150 अध्यापकों ने इस आयोजन का लाभ उठाया।
राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित लर्नर्स अकादमी मुंबई के प्राचार्य राम नयन दूबे और जाने-माने समीक्षक, शिक्षाविद एवं सेंट पीटर्स संस्थान पंचगनी के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. जितेंद्र पाण्डेय बतौर रिसोर्स पर्सन के रूप में मौजूद थे। प्राचार्या कलाई सेल्वी, जनरल मैनेजर अशेक मुर्शीद, राजेश देवराजन समेत अन्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी प्रचार परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेंद्र कुमार शर्मा ने आमंत्रित अतिथियों का स्वागत और परिचय दिया।
प्रश्नकाल के दौरान राम नयन दूबे ने बताया, “काउंसिल ने सभी शैक्षणिक संस्थाओं को अपना कैरिकुलम भेज दिया है। सभी अध्यापक अपने-अपने विद्यालयों से उसकी मांग करें, अथवा बोर्ड की वेबसाइट पर देखें। वहां आप पाएंगे कि हिंदी का पाठ्यक्रम (प्री स्कूल से आठवीं तक) नितांत व्यवहारिक और पारदर्शी है। आप लोगों को पुस्तकों के चयन का मानक भी वहाँ उपलब्ध कराया गया है। भाषा के अंतर्गत जिन नए बिंदुओं को प्रस्तावित किया गया है, उनकी यहाँ विस्तृत, स्पष्ट, सटीक और सार्थक चर्चा की गई।”
कार्यशाला में वर्ण-विचार से लेकर पत्र-लेखन तक की शंकाओं का समाधान किया गया, किंतु पाठ्यक्रम में शामिल किए गए ‘डायरी लेखन’, ‘विज्ञापन लेखन’, ‘प्रतिवेदन’, ‘नोटिस लेखन’ जैसे मुद्दों पर विशेष प्रकाश डाला गया।
आश्वस्त नज़र आए हिंदी शिक्षक-
सैकड़ों प्रश्नों की बौछार करते हुए शिक्षकों ने खेल-विधि जैसी गतिविधियों को जाना, समझा और अपने को उनमें शामिल किया। हिंदी कक्षा को रुचिकर और मनोरंजक बनाने के कई सूत्र कार्यशाला के मार्गदर्शकों द्वारा साझा किए गए। अद्यतन तकनीकी पर ज़ोर देते हुए डॉ. जितेंद्र पाण्डेय ने कहा, “आजकल शिक्षण में तकनीकी का प्रयोग आम हो गया है। लोग यूट्यूब से संबंधित टॉपिक पर वीडियो लोड कर बच्चों को दिखा देते हैं और मान लेते हैं कि उनकी जिम्मेदारी समाप्त हो गई। यहाँ पर उन्हें अपने विवेक का प्रयोग करते हुए लेक्चर पद्धति, गतिविधि और तकनीकी के बीच संतुलन साधना होगा। तकनीकी का प्रयोग करते समय सावधानी और दूरदर्शिता की ज़रूरत होती है। कट-पेस्ट की आदत मुश्किल पैदा कर सकती है। आवश्यकता है कि तकनीकी को सृजनात्मक ढंग से इस्तेमाल किया जाए। सृजन और तकनीकी एक दूसरे के पूरक बनें।” इस अवसर पर डॉ. पाण्डेय ने ‘नेता जी का चश्मा’ नामक पाठ को तकनीकी से जोड़कर दर्शकों को दिखाया और बताया ।
हिंदी की विराट संभावनाओं को पहचानने और जानने की ज़रूरत-
विदेशी भाषाओं के प्रति अभिभावकों की ललक और हिंदी भाषा के लिए उदासीनता हिंदी जगत के लिए चिंता का विषय है। ऐसी स्थिति में हिंदी अध्यापकों की भूमिका अधिक बढ़ जाती है। दोहरी जिम्मेदारी निभानी होगी। इस विषय पर प्राचार्य रामनयन ने शिक्षकों के कर्त्तव्य बोध पर बल देते हुए बताया, “आज वैश्विक स्तर पर हिंदी की मजबूत पकड़ है। इसे बोलने और समझने वालों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। देश-विदेश में हिंदी का प्रचुर साहित्य लिखा जा रहा है। समूची दुनिया अपने व्यवसाय के लिए हिन्द की ओर बड़ी उम्मीद से देख रही है। बच्चों और उनके माता-पिता में हिंदी के प्रति अनुराग और सम्मान जगाने के लिए हम अध्यापकों को हिंदी जगत में होने वाली पल-पल की हलचल पर अपनी पैनी नज़र बनानी होगी। तब जाकर हम स्वयं गौरव का अनुभव करेंगे और आने वाली पीढ़ी को करवाएंगे।”
इस अवसर पर नीलम गुप्ता, विमला देव, सुधा मिश्रा, ज्योति चड्ढा, मीनाक्षी चौधरी, सीमा उपाध्याय, डॉ. विश्वेश उपाध्याय ‘प्रभु’, शमी श्रीवास्तव, दीपाली मल्होत्रा, नविदा भानु आदि शिक्षा जगत की जानी-मानी हस्तियाँ मौजूद थीं। विवा एजुकेशन के टेरिटरी मैनेजर राकेश राय ने आभार प्रदर्शन की औपचारिकी निभाई।