डायबिटीज, स्ट्रोक और कैंसर – वायु प्रदूषण ने छीनी 21 लाख जिंदगियां

नृपेन्द्र कुमार मौर्य|navpravah.com 

नई दिल्ली | दिल्ली के वायु प्रदूषण ने एक बार फिर गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। अभी ठंड का मौसम पूरी तरह शुरू भी नहीं हुआ है, और दिल्ली के कई इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) का स्तर लाल निशान को पार कर 350 से ऊपर पहुँच चुका है। यह ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आता है और यह संकेत है कि राजधानी की हवा सांस लेने योग्य नहीं रह गई है। हर साल इस मुद्दे पर राजनीति होती है, लेकिन यह गंभीर समस्या केवल राजनीति तक सीमित नहीं है। आम इंसान की सेहत पर इसका सीधा असर पड़ता है, और यह प्रदूषण कई गंभीर बीमारियों का कारण बनता है।

वायु प्रदूषण से होने वाले जानलेवा खतरे

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया में सबसे अधिक मौतें दिल और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों के कारण होती हैं। हालिया सालों में भी इस दिशा में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण इस साल दुनियाभर में 81 लाख लोगों की मौत हुई है। अकेले भारत में इस साल करीब 21 लाख लोग प्रदूषण के कारण जान गंवा चुके हैं। यह केवल एक संख्या नहीं है; यह लाखों परिवारों की दुर्दशा है, जो इस प्रदूषण की चपेट में आ गए हैं। प्रदूषण का यह संकट न केवल स्वास्थ्य बल्कि जीवन स्तर पर भी गंभीर प्रभाव डाल रहा है।

वायु प्रदूषण और डायबिटीज का संबंध

पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 – एक ऐसा प्रदूषक है जो हवा में घुले हुए धूल, मिट्टी और रासायनिक कणों का मिश्रण है। PM 2.5 के कण इतने सूक्ष्म होते हैं कि इनका आकार लगभग 2.5 माइक्रोमीटर के बराबर होता है। तुलना के लिए, इंसान के बाल का औसतन व्यास 50 माइक्रोमीटर होता है। इस सूक्ष्म आकार के कारण PM 2.5 के कण आसानी से हमारे फेफड़ों तक पहुँच जाते हैं, फिर रक्तप्रवाह में मिलकर पूरे शरीर में फैल जाते हैं, और विभिन्न अंगों को क्षति पहुँचाते हैं।

इन महीन कणों का डायबिटीज जैसे रोगों से भी गहरा संबंध पाया गया है। हाल ही में, लैंसेट में प्रकाशित एक रिसर्च में बताया गया कि PM 2.5 और बढ़े हुए ब्लड शुगर लेवल में सीधा संबंध है। इसका मतलब यह है कि वायु प्रदूषण हमारे फेफड़ों के साथ-साथ ब्लड शुगर और मेटाबॉलिज्म को भी प्रभावित कर सकता है। इससे डायबिटीज का खतरा बढ़ता है, जो आगे चलकर हृदय रोग, गुर्दे की समस्याओं और अन्य कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है।

वायु प्रदूषण और मानसिक स्वास्थ्य

प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव केवल फेफड़ों तक ही सीमित नहीं हैं; यह मस्तिष्क को भी प्रभावित कर सकता है। न्यूरोलॉजी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, PM 2.5 कण दिमाग में प्रवेश कर सकते हैं और इसे क्षति पहुँचा सकते हैं। यह अल्जाइमर और अन्य प्रकार की मानसिक बीमारियों से भी जुड़ा हुआ पाया गया है। यानी कि वायु प्रदूषण मस्तिष्क के लिए भी एक खतरा बन गया है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि हम जो हवा में सांस ले रहे हैं, वह न केवल हमारे फेफड़ों बल्कि हमारे दिमाग को भी प्रभावित कर रही है।

हड्डियों पर प्रभाव

विभिन्न स्टडीज ने वायु प्रदूषण के कारण हड्डियों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को भी रेखांकित किया है। शोध के अनुसार, PM 2.5 कणों के कारण हड्डियों में कैल्शियम और अन्य खनिजों की कमी हो सकती है, जिससे हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं। बुजुर्गों में इसका प्रभाव ज्यादा गंभीर होता है और उनके फ्रैक्चर होने का जोखिम बढ़ जाता है। कमजोर हड्डियाँ न केवल शारीरिक अक्षमता का कारण बनती हैं, बल्कि वृद्धावस्था में जीवन की गुणवत्ता भी घटा देती हैं।

दिल की बीमारियाँ और स्ट्रोक का खतरा

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, दिल से जुड़ी बीमारियों के कारण हुई मौतों में से 19% मौतें वायु प्रदूषण के कारण होती हैं। वायु प्रदूषण में मौजूद विभिन्न रसायन दिल की धमनियों को सख्त बना सकते हैं, जिससे रक्तचाप बढ़ सकता है और दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। इस प्रकार की प्रदूषित हवा न केवल हमारे दिल के लिए बल्कि संपूर्ण शरीर के लिए भी हानिकारक है।

कैंसर का खतरा

वायु प्रदूषण फेफड़ों के कैंसर के खतरे को भी बढ़ाता है। इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) ने PM 2.5 और बाहरी वायु प्रदूषण को ‘कार्सिनोजेनिक’ यानी कैंसर पैदा करने वाले तत्वों के रूप में वर्गीकृत किया है। यह वही समूह है जिसमें तंबाकू और रेडियोएक्टिव तत्व शामिल होते हैं। PM 2.5 के कारण लंग कैंसर का खतरा सिगरेट पीने वालों और न पीने वालों दोनों पर होता है।

एक स्टडी के अनुसार, भारत के अधिकांश शहरों में PM 2.5 का स्तर WHO द्वारा निर्धारित सुरक्षित स्तर से कई गुना अधिक है। ऐसे में शहरों में रहने वाले लोगों में लंग कैंसर का खतरा निरंतर बढ़ता जा रहा है। यह स्थिति अत्यधिक चिंताजनक है, खासकर उन लोगों के लिए जो बड़े शहरों में लंबे समय तक रहते हैं और वहाँ की हवा में सांस लेते हैं।

प्रदूषण का अर्थव्यवस्था पर असर

वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य संबंधी प्रभावों का अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर होता है। जब लोग बीमार होते हैं, तो कार्यक्षमता घट जाती है, और अस्पताल में भर्ती होने, दवाइयों और इलाज पर खर्च बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त, समय से पहले हुई मौतों के कारण समाज में कुशल लोगों की कमी होती है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ता है।

प्रदूषण से बचने के उपाय

वायु प्रदूषण से बचने के लिए विभिन्न उपाय किए जा सकते हैं। घर के अंदर एयर प्यूरीफायर का उपयोग करना, N95 मास्क पहनना और घर के अंदर रहना प्रदूषण के असर को कम कर सकता है। इसके साथ ही, पेड़-पौधों का संरक्षण, वाहनों का सीमित उपयोग और सरकार द्वारा प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए सख्त नीतियाँ बनाने से भी वायु गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है।

इसके अलावा, सरकार और समाज के सभी लोगों को इस समस्या को गंभीरता से लेना होगा। इसके लिए पौधारोपण, सार्वजनिक परिवहन का उपयोग, और उद्योगों में प्रदूषण को नियंत्रित करने वाले उपायों को बढ़ावा देना आवश्यक है। स्कूल, कॉलेज और सामाजिक संगठन भी इस मुद्दे पर जागरूकता फैला सकते हैं ताकि आम लोग इस अनदेखे खतरे को समझें और प्रदूषण से बचने के लिए सक्रिय भूमिका निभाएं।

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