आज जनप्रतिनिधि कानून की धारा 123 (3) में ‘राष्ट्रीय प्रतीक’ और ‘राष्ट्रीय चिन्ह’ शब्दों का जिक्र करते हुए चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि किसी को भी चुनावों में वोट हासिल करने के लिए उनके प्रयोग की अनुमति नहीं हो सकती। सुनवाई के दौरान पीठ ने सवाल भी किया है कि क्या कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय चिन्ह के आधार पर वोट मांग सकता है और कह सकता है कि लोग सीमा पर मर रहे हैं और इसलिए किसी खास पार्टी के लिए वोट कीजिए। क्या इसे अनुमति दी जा सकती है? वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा है कि यह इस प्रावधान में विशेष रूप से वर्जित है।
आपको बता दें कि सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि संसद ‘अलगाववादी और सांप्रदायिक’ प्रवृत्तियों पर काबू पाने के लिए चुनाव संबंधी कानून में ‘भ्रष्ट क्रियाकलाप’ शब्द के दायरे को जानबूझकर ‘बढ़ाया’ है। पीठ के अनुसार, जन प्रतिनिधित्व कानून के वर्तमान उपबंध में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि संसद ने चुनावों के दौरान अलगाववादी और सांप्रदायिक प्रवृत्तियों को काबू पाने के लिए ‘भ्रष्ट क्रियाकलाप’ शब्द के दायरे को बढ़ाने के बारे में सोचा।
इस पीठ में जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस एसए सोब्दे, जस्टिस एके गोयल, जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एल नागेश्वर राव शामिल थे। इसके बाद पीठ ने एक काल्पनिक सवाल उठाया और पूछा कि क्या एक ‘सिख ग्रंथी’ किसी खास हिंदू उम्मीदवार के लिए वोट मांग सकता है, क्या यह कहा जा सकता है कि यह अपील संबंधित प्रावधान से उलझती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता दीवान ने जवाब दिया कि कानून के इस प्रावधान के तहत संभवत: यह ‘भ्रष्ट क्रियाकलाप’ नहीं होगा। उन्होंने कहा कि प्रावधान में प्रयुक्त ‘उनका धर्म’ शब्द से मतलब उम्मीदवार के धर्म से है, वोट मांगने वाले धार्मिक नेता के धर्म से नहीं।
सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इस बीच, तीन सामाजिक कार्यकर्ताओं तीस्ता सीतलवाड़, शामसुल इस्लाम और दिलीप मंडल ने ‘राजनीति से धर्म को अलग करने’ की मांग को लेकर वर्तमान सुनवाई में हस्तक्षेप के लिए आवेदन दायर किया। कोर्ट की सुनवाई के दौरान दी गई ये प्रतिक्रिया काफी अहम मानी जा रही है।