मणिपुर: प्रधानमंत्री मोदी की सम्भावित यात्रा, क्या अब प्रदेश में स्थापित हो जाएगी ‘शांति’ ?

अमित द्विवेदी | navpravah.com 
नई दिल्ली | प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर की सुध क्यो नहीं लेते? आरोप लगता रहा कि कठिन दौर में हमेशा साथ खड़े रहने वाले मोदी मणिपुर के साथ सौतेलों जैसा बर्ताव क्यों कर रहे हैं? खबर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12-13 सितंबर में से कभी भी मणिपुर के दौरे पर जा सकते हैं। हालांकि, अभी उनके इस दौरे का आधिकारिक एलान नहीं हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी को 13 सितंबर को मिजोरम से असम को जोड़ने वाली रेल लाईन का लोकार्पण करने जाना है। उससे पहले वो 12 सितंबर को मणिपुर के दौरे पर जा सकते हैं। वहां वे दो जन सभाओं को भी संबोधित कर सकते हैं।
पिछले दो सालों से जातीय हिंसा की आग में मणिपुर जल रहा है। अब तक हिंसा में आधिकारिक तौर पर राज्य में 260 लोगों की मौत हो गई है, लेकिन गैर-सरकारी आंकड़े इससे कहीं अधिक हैं। हजारों की संख्या में लोग हिंसा में घायल हो चुके हैं। न्यूज एजेंसी डी डब्ल्यू के मुताबिक, 50 हजार से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं। राज्य में स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। इन परिस्थितियों को नियंत्रित न कर पाने के कारण लोगों में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को लेकर नाराजगी थी। इसी कारण से उनसे इस्तीफा लेकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है। फरवरी से लागू राष्ट्रपति शासन को पिछले महीने फिर बढ़ा दिया गया है।
उनके इस दौरे से पहले दिल्ली में बृहस्पतिवार को कुकी जो-काउंसिल, केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच समझौता हुआ। इस त्रिपक्षीय समझौते की सबसे खास बात, हिंसा शुरू होने के बाद से ही बंद नेशनल हाइवे-2 को खोलने पर बनी सहमति है। इसे मणिपुर की जीवन रेखा माना जाता है। यह नागालैंड के व्यापारिक शहर दीमापुर को राजधानी इंफाल से जोड़ती है। राज्य को जरूरी वस्तुओं की सप्लाई में इसकी अहम भूमिका रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बीते मार्च में ही इसे मुक्त आवाजाही के लिए खोलने का एलान किया था। लेकिन कुकी संगठनों ने इस पर लगी पाबंदी हटाने से इंकार कर दिया था।
इस समझौते के तहत कुकी उग्रवादियों ने संवेदनशील इलाकों में बने अपने सात शिविरों को हटाने और अपने हथियार सुरक्षा बलों को सौंपने पर भी सहमति जताई है। तीनों पक्ष मणिपुर में स्थायी शांति बहाल करने के लिए बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने और इसके जरिए समस्या का समाधान करने पर भी सहमत हो गए हैं। यह समझौता अगले एक साल तक के लिया गया है। पहले भी यह समझौता हुआ था लेकिन फरवरी 2024 में हालात खराब होने के कारण इसे रद्द कर दिया गया था। हालांकि अब केंद्र सरकार ने इसे फिर से लागू करने का समझौता किया है, साथ ही कुछ शर्ते भी जोड़ दी हैं। सरकार ने कहा कि वह समय-समय पर इसकी समीक्षा भी करेगी।
हालांकि कुकी-जो काउंसिल की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि नेशनल हाइवे-2 को फिर से खोलने का सवाल ही नहीं उठता। उसका दावा है कि इस सड़क को कभी बंद ही नहीं किया गया था। इस परस्पर विरोधी दावे से असमंजस की स्थिति बनी है।
मोदी के दौरे का अनुमान तब लगा जब मणिपुर के मुख्य सचिव पुनीत कुमार गोयल ने एक बैठक बुलाई जिसे किसी वीवीआईपी मूवमेंट के लिए माना गया। उस बैठक में यह तय हुआ कि 7 से 14 सितंबर के बीच किसी भी पुलिस वाले को छूट्टी नहीं दी जाएगी। पुलिस को हर वक्त अलर्अ रहने को कहा गया है।
पीएम मोदी के इस दौरे को कुछ लोग बहुत देर से होने वाला कार्यक्रम बता रहे हैं, तो दूसरी तरफ कुछ लोग बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं। कुकी जो-कांउसिल के सदस्य गिंजा वुअलजोंग ने कहा कि मुझे उम्मीद है प्रधानमंत्री हमारे लोगों और समुदाय के बात को सुनेंगे। अगर वो हमारी समस्या को सुलझाने आ रहे हैं तो बहुत अच्छी बात होगी। हम यह उम्मीद करते हैं कि वो हमारे नेताओं के साथ मिलकर मामले को समझेंगे और उसका हल ढूंढने में मदद करेंगे।हम यह भी उम्मीद कर रहे हैं कि वो हमारे राहत शिविरों का दौरा करेंगे और देखेंगे कि हमें कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। 
वहीं कुछ नेताओं का मानना है कि मोदी के दौरे के बाद से राज्य के हालत में कुछ सुधार होगा। इंफाल स्थित कोकोमी के सलाहाकार जीतेंद्र निंगोम्बा ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि मोदी की यह यात्रा शांति के लिए पहल करेगी। ऐसा माना जा रहा है कि मणिपुर के मुख्यमंत्री लोगों की समस्याओं को सही से संभाल नहीं पाए, उनको लेकर मणिपुर के लोगों में गुस्सा है। राजग के घटक दल चाहते है कि जल्द ही राज्य में राष्ट्रपति शासन को हटा लोकप्रिय सरकार की स्थापना की जाए।
इस बीच, मैतेई और कुकी समुदाय के बीच शांति प्रक्रिया में शामिल एक आदिवासी नेता का शव बरामद होने से शांति बहाल करने की उनकी (कुकी उग्रवादियों की) मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं। नेखाम जोमाहो नामक उस आदिवासी नेता को बीते शनिवार को अपहरण कर लिया गया था। उनका शव असम के कार्बी आंग्लांग जिले में एक नदी से बरामद किया गया। इस हत्या से मैदानी इलाके के लोगों में भारी नाराजगी है। कार्बी आंग्लांग के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक संजीव कुमार सैकिया ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि इस मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है। मामले की जांच की जा रही है। उग्रवादी संगठन कुकी रिवोल्यूशनरी आर्मी (केआरए) ने इस हत्या की जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए कहा है कि वह इस मामले की आंतरिक जांच करेगी।
केआरए के महासचिव एल.एस. गांग्ते ने एक बयान में कहा है कि संगठन के नेतृत्व ने इस हत्या की मंजूरी नहीं दी थी। लेकिन इसके लिए जिम्मेदार पांच कैडरों को संगठन से निलंबित कर दिया गया है।
प्रधानमंत्री के दौरे से पहले राज्य में सवाल पूछा जा रहा है कि इतली देर के बाद प्रधानमंत्री के दौरे से क्या मणिपुर के हालत सुधरेंगे और शांति बहाल करने में मदद मिलेगी? राज्य की भाजपा का दावा है कि प्रधानमंत्री का दौरा शांति बहाली की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। पार्टी के एक नेता युमनाम खेमचंद ने मीडिया से कहा कि नेशनल हाइवे-2 को मुक्त आवाजाही के लिए खोलने का फैसला राज्य में सामान्य स्थिति बहाल करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे आम लोगों को काफी राहत मिलेगी। हिंसा शुरू होने के बाद यह पहला बड़ा सकारात्मक फैसला है।
वहीं कांग्रेस इससे उलट दावा कर रही है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अध्यक्ष कीशम मेघचंद्र ने कहा  कि अभी बहुत ज्यादा उम्मीद करना ठीक नहीं होगा। मणिपुर की समस्या उतनी आसान नहीं है, जितनी नजर आती है। प्रधानमंत्री ने अगर यही काम हिंसा शुरू होने के तुरंत बाद किया होता, तो हालात नहीं बिगड़ते।
जब राजनीतिक विश्लेषको से इस मुद्दे पर बात की गई तो उन्होने कहा कि उन्होंने कहा कि इतनी जल्दी किसी निष्कर्ष पर नहीं जा सकते। एक समझौता हो जाने से राज्य के हालात सुधर जाएंगे ऐसा कहना मुश्किल है। कुछ समय का इंतजार करना होगा। जमीनी स्तर पर हालत सुधरने के बाद ही कुछ कह पाना ठीक होगा।
राजनीतिक और सामाजिक हलकों में मणिपुर में दो साल से चल रही जातीय हिंसा के बाद प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अब देखना यह है कि मोदी के इस दौरे के बाद राज्य के हालात में कितना सुधार होता है!
मणिपुर में 3 मई 2023 से हिंसा की शुरुआत हो चुकी थी। मणिपुर में तीन मई को मैतेई (घाटी बहुल समुदाय- हिंदू) और कुकी जनजाति (पहाड़ी बहुल समुदाय- इसाई) के बीच हिंसा शुरू हुई थी। दरअसल, मणिपुर में मैतेई समाज की मांग है कि उसको कुकी की तरह राज्य में जनजाति का दर्जा दिया जाए। मणिपुर में तनाव तब और बढ़ गया जब कुकी समुदाय ने मैतेई समुदाय की आधिकारिक जनजातीय दर्जा दिए जाने की मांग का विरोध करना शुरू कर दिया। इसे लेकर कुकियों ने तर्क दिया कि इससे सरकार और समाज पर उनका प्रभाव और अधिक मजबूत होगा, जिससे उन्हें जमीन खरीदने या मुख्य रूप से कुकी क्षेत्रों में बसने की अनुमति मिल जाएगी। कुकियों का कहना है कि मैतेई के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा छेड़ा गया नशीली दवाओं के खिलाफ युद्ध उनके समुदाय को उखाड़ने का एक बहाना है। उसके बाद से ही हिंसा शुरू हो गई। कई बार ऐसी घटनाएं भी हुईं जिससे देश शर्मसार हो गया।

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