बुंदेलखण्ड: सूखे और बाढ़ की वजह से क़र्ज़ में डूबे किसान

अनुज हनुमत,

सूखे के बाद बाढ़ से जूझते बुन्देलखण्ड की हालत ये है कि पिछले दो वर्षो में लगातार चार फसलें या तो बोई नही जा सकीं या मौसम के दुश्चक्र के कारण बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गईं।

पहले भीषण सूखे की मार ने बुन्देलखण्ड के किसानों को मारा, अब जल के जलजले ने बचा हुआ काम कर दिया। इस बाढ़ में बड़ी मात्रा में फसलों का नुकसान हुआ है। सरकारें आपसी नूराकुश्ती में उलझी हैं। किसान किसी की प्राथमिकता में नहीं, क्योंकि चुनाव तो दूर है। अभी फ़िलहाल चरों ओर सन्नाटा है। सूखे और बाढ़ के बाद बुन्देलखण्ड के किसानों की स्थिति दयनीय हो गई है। ऐसी स्थिति में अधिकांश किसानों का यही कहना है कि हमारा कर्ज माफ़ होना चाहिए।

बुन्देलखण्ड में हुए विकास की पोल तो बाढ़ के पानी ने खोल दी। इसका जीता जागता उदाहरण बुन्देलखण्ड के सबसे पिछड़े और गरीब इलाके पाठा में देखने को मिला, जहाँ बाढ़ से बही सड़कों, पुल, रपटों पर सरकारी लीपापोती का कार्य शुरू चुका है।

आपको बता दें कि यहां हाल ही में बनी सड़कों, पुलों और रपटों को पानी अपने साथ मिट्टी के ढेर जैसे बहाकर ले गई। अगर पाठा के इन गाँवों में हुए हालिया विकास की जाँच कराई जाए तो हो सकता है 2G, कोयला और चारा घोटाला जैसे देश के बड़े स्कैम भी शर्मा जाएँ। कुछ समाजसेवी संगठनों और क्षेत्र के विशेषज्ञों की माने तो पूरी गलती क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों की है, जिन्होंने क्षेत्र के संवेदनशील और असवेंदनशील होने का जमकर फायदा उठाया।

कागजों में पाठा पूर्ण विकसित होने वाला है, लेकिन सच्चाई ये है कि यहाँ के लोगों के पास देश की आजादी के 70 वर्ष बाद भी मूलभूत सुविधाएँ नही हैं। जिस जनता का प्रतिनिधित्व करते हुए ये जनप्रतिनिधि लोकसभा और विधानसभा में अपने झूठे दावों की हवा भरते हैं, वो गरीब और असहाय दो वक्त की रोटी के लिये संघर्ष कर रहे हैं।

बुन्देलखण्ड में बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों के हजारों ऐसे गांव हैं, जहाँ बाढ़ में लोगों के घर ढह गए हैं, ऐसे ग्रामीण सरकारी सहायता की आस लगाए गाँव से निकलने वाली पक्की सड़कों पर बैठने को मजबूर हैं। सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि क्या सूखे और बाढ़ का कहर झेलने वाले बुन्देलखण्ड के किसानों का कर्ज माफ़ होगा ?

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