आहत और भटके लोगों को सही रास्ते पर लाना आवश्यक -प्रणब मुखर्जी

शिखा पाण्डेय,

70वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पांचवीं बार देश को संबोधित किया। राष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र का अर्थ केवल समय-समय पर सरकार को चुनना नहीं है। उन्होंने न्याय, स्वतंत्रता, भाईचारा लोकतंत्र को लोकतंत्र के स्तम्भ बताया। राष्ट्रपति ने जीएसटी, विदेश नीति, सदन में हुई चर्चा और जैसे कई अहम् मुद्दों पर चर्चा की।

अपने संबोधन के प्रारम्भ में राष्ट्रपति ने देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की बधाई देते हुए, उन वीरसपूतों को याद किया जिनके बलिदान से देश को आजादी मिली।

राष्ट्रपति ने कहा, “1947 में जब हमने स्वतंत्रता हासिल की, किसी को यह विश्वास नहीं था कि भारत में लोकतंत्र बना रहेगा, तथापि सात दशकों के बाद सवा अरब भारतीयों ने अपनी संपूर्ण विविधता के साथ इन भविष्यवाणियों को गलत साबित कर दिया। हमारे संस्थापकों द्वारा न्याय, स्वतंत्रता, समता और भाईचारे के चार स्तंभों पर निर्मित लोकतंत्र के सशक्त ढांचे ने अनेक जोखिम सहन किए हैं और यह मजबूती से आगे बढ़ा है।”

राष्ट्रपति ने कहा, “पिछले चार वर्षों के दौरान, मैंने संतोषजनक ढंग से एक दल से दूसरे दल को, एक सरकार से दूसरी सरकार को और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण करते देखा है। एक स्थिर और प्रगतिशील लोकतंत्र की पूर्ण सक्रियता को देखा है। राजनीतिक विचार की अलग-अलग धाराओं के बावजूद, मैंने सत्ताधारी दल और विपक्ष को देश के विकास, एकता, अखंडता और सुरक्षा के राष्ट्रीय कार्य को पूरा करने के लिए एक साथ कार्य करते हुए देखा है।”

राष्ट्रपति ने संसद के अभी सम्पन्न हुए सत्र में निष्पक्षता और श्रेष्ठ परिचर्चाओं के बीच वस्तु और सेवा कर लागू करने के लिए संविधान संशोधन बिल के पारित किए जाने को लोकतांत्रिक परिपक्वता का प्रतीक बताया।

राष्ट्रपति ने कहा कि महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा और हिफाजत देश और समाज की खुशहाली सुनिश्चित करती है। महिलायों, बच्चों के प्रति हिंसा की प्रत्येक घटना सभ्यता की आत्मा पर घाव कर देती है। यदि हम इस कर्तव्य में विफल रहते हैं तो हम एक सभ्य समाज नहीं कहला सकते।

राष्ट्रपति ने कहा कि समूहों और व्यक्तियों द्वारा विभाजनकारी राजनीतिक इरादे वाले व्यवधान, रुकावट और मूर्खतापूर्ण प्रयास से संस्थागत उपहास और संवैधानिक विध्वंस के अलावा कुछ हासिल नहीं होता है। उन्होंने कहा कि देश तभी विकास करेगा, जब भारत का प्रत्येक व्यक्ति विकास करेगा। उन्होंने कहा, “इस संपूर्ण विकास के लिए पिछड़े लोगों को विकास की प्रक्रिया में शामिल करना होगा। आहत और भटके लोगों को मुख्यधारा में वापस लाना होगा।”

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