कोमल झा| Navpravah.com
संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों ने रविवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को विदायी दी. संसद के सेंट्रल हॉल में मुखर्जी को विदायी दी गयी. अपने विदायी भाषण में मुखर्जी ने कहा कि ‘अगर मैं यह कहूं कि इस संसद ने मुझे बनाया है तो इसे अशिष्टता नहीं माना जाएगा.’ इस मौके पर लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन ने सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित एक पुस्तक मुखर्जी को भेंट की.
समारोह में राष्ट्रपति ने कहा, ”अगर मैं यह दावा करूं कि मैं इस संसद की रचना हूं तो शायद इसे अशिष्टता नहीं समझा जाएगा. मुझे लोकतंत्र के इस मंदिर ने, इस संसद ने तैयार किया है. 22 जुलाई 1969 को पहला राज्यसभा सत्र अटेंड किया था. संसद में 37 साल का सफर 13वें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने के बाद ख़त्म हुआ था, फिर भी जुड़ाव वैसा ही रहा. अगर मैं यह दावा करूं कि मैं इस संसद की रचना हूं तो शायद इसे अशिष्टता नहीं समझा जाएगा. संसद में पक्ष और विपक्ष में बैठते हुए मैंने समझा कि सवाल पूछना और उनसे जुड़ना कितना ज़रूरी है. जब संसद में किसी व्यवधान की वजह से कार्रवाई नहीं हो पाती तो लगता है कि देश के लोगों के साथ गलत हो रहा है. मैंने बहुत से बदलाव देखे, हाल ही में जीएसटी का लागू होना भी गरीबों को राहत देने की दिशा में बड़े कदम का उदाहरण है.”
राष्ट्रपति मुखर्जी को संसद की ओर से विदाई देते हुए लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा कि यह सभी सदस्यों के लिए अपना सम्मान व्यक्त करने का एक सुअवसर है.
इसके साथ ही उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की जमकर तारीफ की और कहा कि उन्होंने अपने कार्यकाल में राष्ट्रपति के पद की प्रतिष्ठा और गरिमा बढ़ाई. हामिद अंसापी ने कहा कि राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर राष्ट्रपति मुखर्जी के विचारों ने शीर्ष पद का कद बढ़ाया है.
अपने विदाई भाषण में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने भावपूर्ण विदाई के लिए सभी संसद सदस्यों और सेंट्रल में मौजूद सभी गणमान्य लोगों का शुक्रिया अदा किया. मुखर्जी ने इस मौके पर पूर्व पीएम इंदिरा गांधी को अपना मेनटॉर बताया. इसके साथ ही उन्होंने अतीत के दूसरे कई बड़े नेताओं को याद किया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, ” मेरे जेहन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जुड़ाव की खूबसूरत यादें रहेंगी और उनका मेरे प्रति स्नेही और विनम्र व्यवहार मुझे हमेशा याद रहेगा.” इस मौके पर राष्ट्रपति मुखर्जी ने ये भी कहा कि अध्यादेश का रास्ता केवल अपरिहार्य परिस्थिति में अपनाया जाना चाहिए.
आपको बता दें कि अपने 5 साल के कार्यकाल में प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति पद की गरिमा को नई ऊंचाईयों पर ले गए. एक शिक्षक से नेता और उसके बाद राष्ट्रपति तक का सफर तय करने वाले प्रणब मुखर्जी अपने शालीन व्यक्तिव और विद्वता के लिए जाने जाते हैं.
राष्ट्रपति पद के रूप में प्रणब दा का कार्यकाल कभी विवादों में नहीं रहा. प्रणब दा ने अपने कार्यकाल का तीन साल मोदी सरकार के साथ गुजारा लेकिन कभी राष्ट्रपति और सरकार के बीच टकराव की स्थिति नहीं आई.