धर्म डेस्क। माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या या माघी अमावस्या कहा जाता है। माघ की अमावस्या के कारण इसे माघी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और पूजापाठ के साथ ही दान का विशेष महत्व है। सनातन धर्म के अनुसार, इस बार माघ मास की अमावस्या तिथि शुक्रवार 24 जनवरी को सुबह 02 बजकर 17 मिनट पर प्रारंभ हो रही है, जो अगले दिन शनिवार सुबह 03 बजकर 11 मिनट तक है।
हालांकि अमावस्या 23 जनवरी की रात्रि 01:40 मिनट से लग रही है और यह 24 जनवरी को रात्रि 02:06 मिनट तक रहेगी। इसके चलते 24 जनवरी को पूरे दिन स्नान दान पर अमावस्या का पुण्य फल प्राप्त होगा। पीपल की जड़ में श्रीहरि विष्णु, तने में भगवान शिव तथा अग्रभाग में ब्रह्माजी का निवास माना जाता है। मौनी अमावस्या को पीपल की पूजा करने से सौभाग्य में बढ़ोत्तरी होती है।
जैसा कि नाम से ज्ञात होता है। मौनी अमावस्या की तिथि पर मौन रहकर पूजा पाठ और स्नान-दान करने का विशेष महत्व है। इस दिन त्रिवेणी या गंगातट पर स्नान-दान से विशेष पुण्य मिलता है। मौनी अमावस्या पर स्नान करके तिल, तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए।
धर्म शास्त्रों के अनुसार मौनी अमावस्या की उत्पत्ति मुनि शब्द से हुई है। मौनी अमावस्या पर विधिविधान पूर्वक किये व्रत से व्यक्ति का आत्मबल मजबूत होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मौनी अमावस्या या माघी अमावस्या के दिन गंगा का जल अमृतमय होता है, इसलिए इस दिन गंगा स्नान का सर्वाधिक महत्व है। इस दिन गंगा स्नान के अलावा अन्य नदियों के जल में स्नान किया जाता है।
मौनी अमावस्या को महात्मा तथा ब्राह्मणों को तिल, तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, वस्त्र आदि दान करते हैं। उनको कम्बल, गरम वस्त्र आदि भी दान करना चाहिए। ऐसी भी मान्यताएं हैं कि अमावस्या के दिन गंगा स्नान के बाद पितरों को जल देने से उनको तृप्ति मिलती है। इस दिन तीर्थस्थलों पर पिंडदान करने का भी विशेष महत्व माना जाता है।