अनुज हनुमत,
पिछले एक दशक से भारतीय जनता पार्टी के लिए अहम भूमिका निभा रहे मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह एक बार फिर प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के लिए चाणक्य की भूमिका में नजर आ रहे हैं। कल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पणजी में आयोजित इंडिया आईडिया कॉन्क्लेव में भाग लिया। उन्होंने इस दौरान कहा कि लोकतंत्र के अंदर विकास और असहमति दोनों ही बेहद अहम हैं। अगर ये नहीं, तो लोकतंत्र नहीं।
कॉन्क्लेव में अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी विरोध इस लोकतंत्र में कर सकते हैं। हर कोई पॉलिसीज को लेकर भी विरोध कर सकता है, पर देश के विरोध का हक किसी को नहीं।
आगे अमित शाह ने कहा कि आजादी के बाद से देश में अगर किसी नेता की सर्वाधिक कटु आलोचनाएं हुईं है, तो वो नरेंद्र मोदी हैं। आलोचना सहन करना चाहिए, पर उनके विरोध की आड़ में कोई देश का विरोध करने लग जाए, तो इसे अभिव्यक्ति की आजादी भी नहीं कही जाएगी।
शाह ने कहा कि हमारे देश की सामाजिक चेतना बेहद उच्च स्तर की है। देश 800 साल गुलाम रहा, फिर भी हमारी सामाजिक चेतना कभी नहीं सिकुड़ी। किसी ने हमारी सामाजिक चेतना से छेड़छाड़ की कोशिश की भी, तो वो सफल नहीं हुआ। उन्होंने धर्म-जाति आधारित राजनीति पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि देश के विभाजन के अपराधबोध से ग्रस्त होकर तब के शासन ने तुष्टिकरण की नीति शुरु कर दी थी। इसी वजह से लोकतंत्र की छति हुई।
अमित शाह ने प्रश्न पूछते हुए कहा कि साल 2014 में देश की हालत क्या थी? लोग चिंतित थे कि भारत का भविष्य क्या है। देश पर अनिश्चितता का घेरा था। जिसके बाद देश की जनता ने नरेंद्र मोदी पर भरोसा करने का फैसला लिया।