मौकापरस्त राजनेताओं के चलते कश्मीर में हाहाकार, 20 हज़ार श्रद्धालु फंसे

अनुज हनुमत,
भारत का सिरमौर कहे जाने वाले कश्मीर की खूबसूरत धरती एक बार फिर हिंसा की आग में धधक उठी है। इस पाक धरती के दुश्मन कोई और नहीं, बल्कि इसी देश में रहने वाले अलगाववादी नेता और उनका साथ दे रहे हैं, मौकापरस्त घाटी के कुछ राजनेता । जिन्हें शायद अपनी माटी से कुछ खास प्रेम नही रह गया।
अभी हाल ही में हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकी बुरहान वानी के एनकाउंटर में मारे जाने के बाद पुलवामा, अनंतनाग और श्रीनगर समेत 10 जिलों में कर्फ्यू के बावजूद हिंसक विरोध प्रदर्शन जारी है। इस हिंसा में अब तक 200 पुलिसवालों के घायल होने की खबर है । सिक्युरिटी फोर्सेस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़प में अब तक 23 लोगों की मौत हो चुकी है।  इस तनाव के कारण लगातार तीसरे दिन भी अमरनाथ यात्रा रुकी हुई है और बीच यात्रा में फ़ंसे यात्रियों को इंतजार है कि जल्दी ही सब ठीक हो और उन्हें सरकार से यात्रा शुरू करने की अनुमति मिल सके। न्यूज चैनल्स के अनुसार अलग-अलग जगहों पर करीब 20,000 श्रद्धालु फंसे हैं।
हिजबुल मुजाहिद्दीन के पोस्टर ब्वॉय और कमांडर बुरहान को शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर पुलिस और राष्ट्रीय राइफल्स के जवानों ने एक एनकाउंटर में मार गिराया था। जिसके बाद से हिंसा भड़क उठी। अगर हम बुरहान की बात करें तो 22 साल का बुरहान महज 15 साल की उम्र में ही आतंकी बन गया था।  पिछले कुछ महीनों से बुरहान साउथ कश्मीर में बहुत सक्रिय था। उसने यहां के कई पढ़े-लिखे जवानों को बहला-फुसलाकर कर आतंकी बनाया था।जानकारों की मानें तो कश्मीरी जवानों को रिक्रूट करने के लिए वह फेसबुक-वॉट्सऐप पर वीडियो और फोटो पोस्ट करता था। इसके बाद वो हथियारों के साथ सिक्युरिटी फोर्सेस का मजाक उड़ाते हुए नजर आता था। वानी को भड़काऊ स्पीच देने और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने में एक्सपर्ट माना जाता था।
एक बात और गौर करने वाली है ,’कश्मीर की सबसे बड़ी बदक़िस्मती ये रही है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों अपने किरदार बदलते रहते हैं। जब मन आया बयान बदलकर पाला तक बदल देते हैं। अब उमर अब्दुल्ला को ही ले लीजिये, जिन्होंने आज अपने बयान से ये साबित कर दिया की वह भी कश्मीर में धधकी इस आग में अपनी राजनीतिक रोटी सेंकना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि, ‘बुरहान अपनी क़ब्र से युवाओं को चरमपंथ की ओर आकर्षित करेंगे, अब बुरहान युवा आइकॉन हैं। कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने आज कहा कि राज्य के असंतुष्ट लोगों को हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी के रूप में एक नया आदर्श मिल गया है। उन्होंने यह आशंका भी जताई कि बुरहान वानी ने सोशल मीडिया से जितनी संख्या में युवकों को आतंकवाद में शामिल होने के लिए आकर्षित किया था, उससे कहीं ज्यादा युवक उसकी मौत के बाद आतंकवाद की तरफ बढ़ सकते हैं।’
उमर ने ट्विटर पर लिखा, ‘मेरी बात याद रखिये, बुरहान की कब्र में जाने के बाद लोगों को आतंकवाद की तरफ आकर्षित करने की क्षमता उसके सोशल मीडिया पर इस दिशा में किए गए प्रयासों से कहीं ज्यादा होगी।’ नेशनल कांफ्रेंस के नेता ने कहा, ‘कई वर्षों के बाद, मैंने श्रीनगर में मेरे इलाके की मस्जिद से आजादी के नारे सुने। कश्मीर के असंतुष्ट लोगों को कल एक नया आदर्श मिल गया।’
एक बात तो है कि जो भी विपक्ष में होता है, वो कश्मीरियत की बात करता है लेकिन वास्तव में कहानी कुछ और ही होती है। अब मौजूदा मुख्यमंत्री जी को ही ले लीजिये। कल महबूबा विपक्ष में थीं, तब वो ऐसे बयान देती थीं, जो आज उमर दे रहे हैं। कहीं ये देश के विरुद्ध खेला जा रहा किसी प्रकार का खेल तो नही, जिसमे बारी बारी से ये क्षेत्रीय राजनैतिक दल अपना अपना दांव खेल रहे हैं,  कही ये अलगाववादियों को छिपकर समर्थन तो नही कर रहे हैं? इसकी भी जाँच होनी चाहिए कि आखिर ऐसे सवेंदनशील मौके पर भी ये सभी दल अपनी दलगत राजनीती से ऊपर उठकर देशहित के विषय में क्यों नही सोंच पाते ?
वर्तमान में उमर अब्दुल्ला विपक्ष में हैं तो वो ऐसे बयान दे रहे हैं, जैसे बयान महबूबा देती थी। उधर केंद्र सरकार ने भी कड़े शब्दों में चेताया है कि किसी भी तरह के चरमपंथ से समझौता नहीं किया जा सकता । हालांकि राज्य सरकार ने हालात सामान्य करने के लिए सभी राजनीतिक पक्षों और अलगाववादियों से सहयोग मांगा है। उधर पाकिस्तान भी पहले की तरह ही है, उन्होंने भारत प्रशासित कश्मीर में ताज़ा हिंसा की निंदा की है। सब जानते हैं कि कश्मीर में माहौल बिगाड़ने के खातिर पाकिस्तान द्वारा अलगावादी ताकतों को लगातार धन मुहैया कराया जा रहा है, जिसका प्रयोग ऐसी ताकतें अशांति फ़ैलाने में करती हैं। कुछ भी हो पर ऐसे हालात से निपटने के लिए केंद्र की मोदी सरकार को अपना रवैया थोडा और बदलने की आवश्यकता है। कुछ कठिन और सटीक निर्णय लेने होंगे, तभी घाटी में पुनः शांति स्थापित हो पायेगी।

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