अनुज हनुमत|Navpravah.com
अमर शहीद सरदार भगत सिंह का नाम विश्व में 20वीं शताब्दी के अमर शहीदों में बहुत ऊँचा है। भगतसिंह अपने देश के लिए ही जीए और उसी के लिए शहीद हो गए। फिलहाल अधिकांश लोगो द्वारा 27 सितंबर को ‘शहीद भगत सिंह’ का जन्म-दिवस होता है। लेकिन कुछ विवरणों में भगत सिंह का जन्म-दिवस 28 सितंबर भी दिया गया है। आज भगत सिंह हमारे बीच नही हैं लेकिन कुछ ऐसे प्रश्न आज भी जिंदा हैं जिनके जवाब हम आज तक नही ढूढ़ पाये । सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि अभी भी भगत सिंह को शहीद का दर्जा क्यों नही दिया गया है ? आज उनकी जयंती के दिन इस पर सबसे अधिक बात होनी चाहिए ।
जी हां क्योंकि जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उनसे भगत सिंह को शहीद घोषित करवाने के बारे में शहीद भगत सिंह के परिवार वालों ने समर्थन मांगा था और उन्होंने भरोसा दिया था कि केंद्र में भाजपा की सरकार आई तो वह भगत सिंह को शहीद का दर्जा दिला देंगे। अब उनकी सरकार के तीन साल से अधिक हो चुके हैं लेकिन इस बारे में कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी है।
भगत सिंह के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू शहीद भगत सिंह ब्रिगेड के बैनर तले उन्हें शहीद घोषित करवाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। बड़े आश्चर्य का विषय है कि जिसने देश की आजादी के खातिर अपनी जान देने में तनिक भी देर नही लगाई । आज उसी को हम शहीद नही घोषित पा रहे हैं । ये बहुत शर्मनाक है ।
जानकारी के लिए आपको बता दें कि दरअसल, जिन्हें हम शहीद-ए-आजम कहते हैं वह भारत सरकार के रिकॉर्ड में शहीद ही नहीं हैं। भगत सिंह को अब भी किताबों में ‘क्रांतिकारी आतंकी’ कहा जा रहा है। इस बात का खुलासा अप्रैल 2013 में एक आरटीआई के जवाब से हुआ था। तब से भगत सिंह के वंशज भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को सरकारी रिकॉर्ड में शहीद घोषित करवाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
शहीद भगत सिंह का सपना था की आजादी के बाद एक ऐसा मुल्क बनाएंगे की कोई एक व्यक्ति इतना अमीर नही होगा की किसी को खरीद सके और कोई इतना गरीब न हो की खुद को बेच सके । कुछ वर्ष पहले ही इलाहाबाद में मेरी मुलाकात शहीद ए आजम भगत सिंह के प्रपौत्र अभितेज सिंह से हुई थी । भगत सिंह जी के जीवन से सम्बंधित कई बातों और उनसे लंबी बातचीत हुई । अफ़सोस की बात ये है कि पिछले वर्ष अभितेज सिंह एक सड़क दुर्घटना के शिकार हो गए थे और आज वो हमारे बीच नही हैं ।
उनसे साक्षात्कार के दौरान मैंने पूछा था कि , ‘ अभी हाल ही में एक आर टी आई द्वारा जानकारी मांगने पर यह पता लगा था की सरकार आज भी भगत सिंह को शहीद नही मानती ।इस पर आपका क्या कहना है ?’
उनका कहना था कि , ‘देखिये आज की तारीख में मुद्दा ये नही है की भगत सिंह हैं या नही । भगत सिंह की आत्मा रोती भी होगी या हसती भी होगी । भगत सिंह ने देश के लिए जो शहादत दी थी वो किसी दर्जे के लिए नही दी थी । शहीद भगत सिंह का जो नाम है वो किसी टाइटल का मोहताज नही । वो आज भी सबके दिलों में राज करते हैं । मुद्दा ये है की भगत सिंह ने जिस कारण के लिए कुर्बानी दी थी क्या हमारी सरकार ने उस तरफ कदम बढ़ाये हैं । जरूरी है कि उन्हें शहीद का दर्जा दिया जाये ।’
संसद में मंत्री ने माना था भगत सिंह को शहीद
इस मामले को लेकर संसद में उठाने वाले राज्य सभा सांसद केसी त्यागी का कहना है कि यह विवाद पैदा होने के बाद 2013 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सामने एक मंत्री ने घोषणा की थी कि सरकार भगत सिंह को शहीद मानती है। संसद में की गई इस घोषणा पर अब तक अमल हो जाना चाहिए था, लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ है तो दुर्भाग्यपूर्ण है। उससे भी दुखद यह कि भगत सिंह के वंशजों को इसके लिए आंदोलन करना पड़ रहा है। मैं खुद मामले का पता करुंगा कि संसद में दिए बयान के बावजूद भगत सिंह को शहीद क्यों नहीं माना जा रहा। क्योंकि संसद में दिया गया वक्तव्य बेकार नहीं जाता। फिलहाल सरकार से लोगो को आस है कि वह जल्दी ही भगत सिंह को शहीद का दर्जा देने का निर्णय लेगी । नही तो कुछ दिनों में लोगो को अब ज्यादा फर्क नही पड़ेगा । क्योंकि आम जनमानस के लिए तो भगत सिंह शहीद ए आजम हैं और रहेंगे ।
सबसे खास बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट के वकील पदमश्री ब्रह्मदत्त कहते हैं कि भगत सिंह को सरकारी दस्तावेजों में शहीद घोषित करने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है। फिर भी सरकार आनाकानी करती रहती है, जो गलत है। जिसे पूरा देश शहीद-ए-आजम बोलता और मानता है उसे सरकार क्यों शहीद नहीं मानती यह समझ से परे है।
डीयू की किताब में भगत सिंह को बताया था ‘क्रांतिकारी आतंकी’-
दिल्ली यूनिवर्सिटी में पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाई जा रही ‘भारत का स्वतंत्रता संघर्ष’ नामक पुस्तक में शहीद भगत सिंह को जगह-जगह क्रांतिकारी आतंकी कहा गया था। यादवेंद्र सिंह संधू ने यह मामला उठाया। इसके बाद राज्यसभा सांसद एवं जनता दल-यू के महासचिव केसी त्यागी ने संसद में इसे उठाया तो सरकार ने पुस्तक को प्रतिबंधित कर दिया। बाद में इसमें से क्रांतिकारी आतंकी शब्द हटा दिया गया।
आज भले ही देश के ये वीर हमारे बीच नही है , लेकिन वह कल भी देश के लिए मिसाल थे और आज भी मिसाल हैं । भगत सिंह चाहते तो माफ़ी मांगकर फांसी की सजा से बच सकते थे, लेकिन मातृभूमि के इस सच्चे सपूत को झुकना पसंद नहीं था । इसलिए महज 23 की उम्र में इस वीर सपूत ने हंसते हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया ।