सौम्या केसरवानी / नवप्रवाह.काम
गुजरात में बने लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल के ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ को लेकर कई तरह की बातें सामने आ रही है, भारत की न आने से ज्यादा जनता ये कह रही है कि, जितने रुपये इस विशाल स्मारक को बनाने में खर्च किए गए हैं, उतने में कई बड़े काम किये जा सकते थे।
इंडिया स्पेंड डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरदार पटेल की प्रतिमा बनाने में आई 2989 करोड़ रुपये की लागत में दो नए इंडियन इंस्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) परिसर, पांच इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) परिसर तैयार किए जा सकते हैं और 6 बार मंगल ग्रह के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) मिशन का चलाया जा सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, स्टेच्यू ऑफ यूनिटी में आई लागत केंद्र सरकार द्वारा 2017-18 में गुजरात की राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के लिए आवंटित 365 करोड़ रुपये से आठ गुना ज्यादा है और राज्य सरकार के द्वारा मंजूर 602 करोड़ रुपये की 56 नई योजनाओं और योजनाओं के अंतर्गत जारी 32 परियोजनाओं की करीब पांच गुना है।
इस रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में 1114 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को शामिल करने के लिए कहा है, मूर्ती की रकम उसके दोगुने से भी ज्यादा है, गुजरात सरकार के द्वार दिए गए प्रस्ताव के मुताबिक 40192 हेक्टेयर जमीन की सिंचाई, 162 लघु सिंचाई योजनाओं में मरम्मत, नवीनीकरण और बहाली के लिए बीमा कवर लेना और 425 छोटे चेक डैम्स का निर्माण करना अभी बाकी है।
गुजरात के सरदार सरोवर बांध के पास भारत रत्न सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा का पीएम मोदी ने कल (31 अक्टूबर) को इसका अनावरण किया था।
पर सोचने वाली बात यह है कि अगर सरदार पटेल आज होते तो क्या वह इस प्रतिमा को बनाने के पक्ष में होते? करता वे 2989 करोड़ के इस अनावरण खर्च को होने देते? शायद वो ये कहते कि इन पैसों का इस्तेमाल उनके लिए करो जो लोग समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े हैं।
“मेरी एक ही इच्छा है कि भारत एक अच्छा उत्पादक देश हो और इस देश में कोई भूखा ना हो अन्न के लिए आंसू बहाता हुआ” – सरदार वल्लभभाई पटेल
सरदार पटेल की ये बातें हमें भली-भांति बताती हैं कि, वो गरीबों और किसानों के दर्द को भली-भांति समझते थे, वो नहीं चाहते थे कि कोई भी भारतीय भूखे सोने को मजबूर हो, लेकिन आज मौजूदा समय में हर रोज़ लाखों लोग भूखे सो रहे हैं।
मौजूदा सरकार ने 2014 की लोकसभा चुनाव के बाद गरीबों को घर देने और गरीबी मिटाने का संकल्प लिया था, जिसे 2022 तक के लिए छोड़ दिया गया और 33 महीनों में 2989 करोड़ की ये प्रतिमा खड़ी कर दी गई, सरदार पटेल तो कहते थे कि, मेरे सपनों का भारत ऐसा हो जहां किसी की आंखों में भूख की वजह से आंसू ना निकले, लेकिन हालात तो ये है कि यहां लोगों को दो वक्त की रोटी भी सही से नसीब नही हो पा रही है।
हमें ये सोचना चाहिए कि, क्या इस दौर में राजनेता को तब ही याद किया जाएगा जब उनकी बड़ी सी प्रतिमा बनवा दी जाएगी? इतने पैसों से बनी प्रतिमा का भारत जैसे देश में क्या काम? क्योंकि यहां आज भी गरीबों को दो वक्त की ही फिक्र होती है।