सौम्या केसरवानी | Navpravah.com
सुप्रीम कोर्ट ने आज तीन जजों की विशेष बेंच ने जम्मू कश्मीर को प्राप्त विशेषाधिकार अनुच्छेद 35A पर सुनवाई की। इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने हलफनामा देकर नोटिस पर जवाब देने के लिए आठ हफ्ते का वक्त मांगा है।
अनुच्छेद 35ए भारतीय संविधान में एक ‘प्रेसिडेंशियल ऑर्डर’ के जरिये 1954 में जोड़ा गया था, यह राज्य विधानमंडल को कानून बनाने की कुछ विशेष शक्तियां देता है। इसमें वहां की विधानसभा को स्थायी निवासियों की परिभाषा तय करने का अधिकार मिलता है, जिससे अन्य राज्यों के लोगों को कश्मीर में जमीन खरीदने, सरकारी नौकरी करने या विधानसभा चुनाव में वोट करने पर रोक है।
याचिककर्ता ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 यानी समानता के अधिकार का हनन बताया है, ऐसा इसलिए क्योंकि 35A के तहत गैर कश्मीरी से शादी करने वाले कश्मीरी पुरुष के बच्चों को स्थायी नागरिक का दर्जा और तमाम अधिकार मिलते हैं, लेकिन राज्य के बाहर रहने वाले यानी गैर कश्मीरी पुरुष से शादी करने वाली महिलाओं पर संपत्ति में हिस्सा न देने की पाबंदी लगाई गई है।
इस मामले की सुनवाई शुरू होने से पहले राज्य में हालात तनावपूर्ण होते दिख रहे हैं, जहां तीन अलगाववादी नेताओं सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक और मोहम्मद यासिन मलिक ने एक संयुक्त बयान जारी कर लोगों से अनुरोध किया कि अगर सुप्रीम कोर्ट राज्य के लोगों के हितों और आकांक्षा के खिलाफ कोई फैसला देता है, तो वे लोग एक जनआंदोलन शुरू करेंगें।