शिखा पाण्डेय,
ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय जिम्नास्ट दीपा कर्माकार प्रोदुनोवा को ‘वॉल्ट ऑफ डेथ’ नहीं मानतीं, हालांकि विशेषज्ञों का ऐसा ही मनना है। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ जिम्नास्ट भी ‘वॉल्ट ऑफ डेथ’ के नाम से मशहूर ‘प्रोदुनोवा वॉल्ट’ को परफॉर्म करने से बचते हैं, पर 23 वर्षीय दीपा उसका अपवाद हैं।
रियो में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर देश का नाम रोशन कर लौटी दीपा ने अपने शानदार स्वागत के बाद कहा, “मुझे नहीं लगता कि प्रोदुनोवा एक जानलेवा वॉल्ट है। अगर हम अभ्यास करें तो सबकुछ आसान हो जाता है और मेरे कोच ने मुझसे इसका बेहतरीन अभ्यास कराया। मैं इस समय किसी दूसरे वॉल्ट के बारे में नहीं सोच रही हूँ। मैं प्रोदुनोवा करती रहूंगी।”
दीपा ने अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा, “मैं अपने वॉल्ट के लिए ओलंपिक में मशहूर हो गयी। लोगों ने मुझे ‘प्रोदुनोवा गर्ल’ तथा ‘दीपा प्रोदुनोवा’ कहकर पुकारा और फाइनल में बहुत सारे लोगों ने मेरे लिए तालियां बजाईं। मुझे लगा कि मैंने यह वॉल्ट चुनकर सही फैसला किया।” दीपा ने कहा कि मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी है कि मेरी वजह से भारत में लोग जिम्नास्टिक को जानने लगे।
खेल रत्न के लिए अपने नाम की सिफारिश किए जाने पर दीपा ने कहा कि उन्हें अपने कोच को द्रोणाचार्य पुरस्कार दिए जाने पर अधिक खुशी होगी। उन्होंने कहा, ” मुझे ‘खेल रत्न’ दिए जाने से अधिक प्रसन्नता मुझे तब होगी जब मेरे गुरु को द्रोणाचार्य पुरस्कार मिलेगा।”
द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए नामांकित कोच बिश्वेश्वर नंदी ने भी अपनी शिष्या की खूब तारीफ की और साथ ही कहा कि उन्हें हमेशा से पता था कि दीपा फाइनल के लिए क्वालीफाई करेंगी। उन्होंने कहा,” मैं दीपा के प्रदर्शन से संतुष्ट हूं। अगर हम पदक जीत जाते तो मुझे और अच्छा लगता लेकिन पदक न जीतने पर भी मैं उसके परफॉरमेंस से बहुत खुश हूं।”